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स्वास्थ्य के लिए क्रांतिकारी पहल

गांव से शहर तक के गरीब, कम शिक्षित लोग अपना तथा देश का भला और बुरा समझने लगे हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य की नयी क्रांति से देश का भविष्य अधिक सुरक्षित और खुशहाल हो सकेगा.

आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार

alokmehta7@hotmail.com

सचमुच जादुई बात लगती है. आपके पास एक निश्चित नंबर वाला छोटा-सा पुर्जा हो और आप अपनी या परिजन की जान जल्दी से जल्दी बचाने का इंतजाम कर लें. अभी नंबरवाला कागज न होने के कारण बीमारियों से अनेक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. कितने ही लोग दिल्ली या मुंबई में 25 से 50 लाख रुपयों के खर्च से पांच सितारा अस्पताल में ऑपरेशन और इलाज के बाद, किसी अन्य शहर या विदेश में जाकर बीमार हो जाएं, तो समुचित रिकॉर्ड नहीं होने से स्वास्थ्य के नये संकट का सामना नहीं कर पायेंगे. ऐसे हालात से निबटने के लिए हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहचान पत्र योजना के सही ढंग से क्रियान्वित होने पर सामाजिक स्वास्थ्य की नयी क्रांति हो सकेगी.

यह केवल राजनीतिक वायदा या भाषणबाजी नहीं है. महीनों के उच्च स्तरीय विचार-विमर्श तथा तैयारियों के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर पर स्वतंत्रता की रक्षा के संकल्प के साथ इसकी घोषणा की है. कुछ हफ्तों पहले सरकार ने नयी शिक्षा नीति की घोषणा भी कर दी है. हाल के वर्षों में भारत के श्रेष्ठतम डॉक्टरों ने दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ायी और दूसरी तरफ सरकारी आयुर्विज्ञान संस्थान के अलावा निजी क्षेत्र में भी अत्याधुनिक अस्पताल स्थापित हुए.

निजी हों या सरकारी, सबसे गंभीर समस्या रही है कि एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाने या देश-विदेश में दोबारा स्वास्थ्य समस्या आने पर व्यक्ति के पास केवल कुछ कागज और रिकॉर्ड होते हैं. निजी क्षेत्र में तो दोबारा टेस्ट, एक्स-रे आदि के लिए आदेश हो जाता है. हमारे देश में कई अच्छे डॉक्टर रोगी से जिज्ञासा के लिए भी सवाल पूछने पर नाराज हो जाते हैं. उनके लिखे पर्चे को दूसरे डॉक्टर या केमिस्ट मुश्किल से पढ़ पाते हैं. अमीर हो या गरीब, गंभीर स्वास्थ्य समस्या के दौरान थैले में पिछले आधे-गले-फटे रिकॉर्ड लिये दौड़ते रहते हैं.

उत्तर प्रदेश के अस्पतालों की हालत पर लगभग पांच वर्ष पहले सीएजी की एक रिपोर्ट में इस बात पर ध्यान दिलाया गया था कि उन अस्पतालों में रोगियों की चिकित्सा तक का समुचित रिकॉर्ड नहीं मिलना अनुचित है. इसके बाद केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के तहत लगभग 10.75 करोड़ गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य कवर उपलब्ध करने के लिए डिजिटल व्यवस्था की. इसके अलावा 2022 तक डेढ़ लाख स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र स्थापित करने का कार्यक्रम बना है. वहीं टेलीमेडिसिन के प्रावधान और डॉयग्नोस्टिक लेबोरेटरी सुविधाओं को उपलब्ध कराया जायेगा.

कोरोना काल में ऐसी लेबोरेटरी बनने का काम युद्ध स्तर पर भी हुआ है. बड़े निजी अस्पतालों ने चिकित्सा के डिजिटल रिकॉर्ड बनाने का काम पहले शुरू किया हुआ है, लेकिन वे यह रिकॉर्ड अन्य अस्पतालों को नहीं देते हैं. मरीजों को उन पर ही निर्भर रहने को मजबूर होना पड़ता है. मोदी सरकार ने 2019 में नेशनल हेल्थ ब्लूप्रिंट बना कर सार्वजनिक किया, ताकि उस पर अधिकाधिक राय- सुझाव सामने आ सकें. इससे राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सुरक्षा के कार्यक्रम बनाने में सुविधा हो रही है.

सरकार ने कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में परीक्षण के तौर पर स्वास्थ्य पहचान पत्र के लिए काम शुरू कर दिया है. नेशनल डिजिटल हेल्थ इको सिस्टम के अंतर्गत हेल्थ मास्टर डायरेक्टरी एंड रजिस्ट्री बनेगी. वेब हेल्थ पोर्टल, मोबाइल के लिए माइ हेल्थ एप, कॉल सेंटर, हेल्थ सूचना एक्सचेंज स्थापित होंगे. इस योजना को लेकर अभी से निजता के अधिकार और गोपनीयता के सवाल उठने लगे हैं. हालांकि आधार कार्ड की अनिवार्यता ही नहीं, जनगणना को लेकर भी ऐसी आपत्तियां उठायी जा रही हैं. निश्चय ही निजता के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए, लेकिन सरकार और भारत के विशेषज्ञ स्वयं यह सुनिश्चित करेंगे. केवल भ्रम फैलाने और ऐसी क्रांतिकारी योजना को कानूनी दांव-पेंच में फंसाने से करोड़ों भारतीयों के हितों को नुकसान पहुंच सकता है.

आजादी के 73 वर्षों में शिक्षा और स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं मिलने से शिक्षा और चिकित्सा के सरकारी केंद्र दयनीय स्थिति में रहे हैं. नयी योजना के क्रियान्वयन के लिए सरकारों को अधिकाधिक बजट का प्रावधान करना होगा. राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहचान पत्र होने पर आप सोचिए, नागरिक को कितनी सुविधा हो जायेगी. उसके स्वास्थ्य का रिकॉर्ड उस कार्ड के एक नंबर से देश के किसी भी हिस्से में देखा जा सकेगा. आप गांव में जन्मे हों या महानगर में अथवा नौकरी, काम-धंधे से किसी उम्र में कहीं भी हों, कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या होने पर उस कार्ड के साथ जिस डॉक्टर के पास या अस्पताल पहुंचेंगे, उसे यह जानकारी मिल सकेगी कि कभी आपको मलेरिया, बुखार, पेट, सांस, दिल की कोई परेशानी हुई या नहीं.

हुई है, तो किन दवाइयों से उपचार हुआ है. दुर्घटना की स्थिति में तो और भी आसानी होगी, क्योंकि आप बोलने की हालत में भी नहीं होते. इससे तत्काल चिकित्सा के सभी उपाय किये जा सकेंगे. याद करें, जन-धन योजना में खाता खोलने और आधार कार्ड से जोड़ने पर एक वर्ग ने आपत्ति की थी, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान 20 करोड़ परिवारों के खातों में तत्काल छोटी ही सही, आवश्यक धनराशि मिल सकी.

आयुष्मान भारत के तहत लाखों लोगों को लाभ मिल रहा है. यदि आप कोई अपराध नहीं कर रहे हैं, तो करोड़ों लोगों के साथ आपकी सेहत का विवरण भी दर्ज हो जायेगा, तो क्या कोई नुकसान हो जायेगा? जो अति ज्ञानी लोग गरीब लोगों की निजता की बात करते हैं, वे अमेरिका, चीन, रूस, यूरोप या दुबई की यात्रा के वीजा के लिए पूरे खानदान का ब्योरा देने, हेल्थ चेक अप के सारे रिकॉर्ड पेश करने में शान समझते हैं. अब भारत के गांव से शहर तक के गरीब, कम शिक्षित लोग अपना तथा देश का भला और बुरा समझने लगे हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य की नयी क्रांति से देश का भविष्य अधिक सुरक्षित और खुशहाल हो सकेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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