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Jharkhand: सिक्योरिटी एजेंसी को पारा मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति का ठेका, जांच रिपोर्ट से इतर DC ने बताया योग्य

सिक्योरिटी एजेंसी को इस काम के लिए अयोग्य बताया था, लेकिन रांची के उपायुक्त ने कमेटी की ओर से दिये गये सभी मंतव्यों को सिरे से खारिज करते हुए एजेंसी को योग्य ठहरा दिया.

रांची, बिपिन सिंह : सिक्योरिटी गार्ड मुहैया करानेवाली बिहार की एजेंसी ‘समानता सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड’ को पारा मेडिकल स्टाफ मुहैया कराने का ठेका दे दिया गया. उक्त एजेंसी को लाभ पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के उच्चाधिकारियों ने सभी नियमों और झारखंड हाइकोर्ट के निर्देश ताक पर रख दिये. अनुमंडल पदाधिकारी की अध्यक्षता में बनी जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में मंतव्य देते हुए उक्त एजेंसी को इस काम के लिए अयोग्य बताया था, लेकिन रांची के उपायुक्त ने कमेटी की ओर से दिये गये सभी मंतव्यों को सिरे से खारिज करते हुए एजेंसी को योग्य ठहरा दिया.

अंतिम जांच रिपोर्ट में अनुमंडल पदाधिकारी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं. स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गयी अंतिम जांच रिपोर्ट में अपर समाहर्ता और उपायुक्त के हस्ताक्षर हैं. इस रिपोर्ट में उपायुक्त ने कई जगहों पर बीच का रास्ता निकालते हुए अपना मंतव्य लिखा, लेकिन ‘क्यों’ और ‘कैसे’ का जिक्र नहीं किया है. नतीजन एजेंसी ने न सिर्फ ठेका हासिल किया, बल्कि सदर अस्पताल समेत कई अन्य सरकारी अस्पतालों व विभागों में कॉन्ट्रैक्ट पर पारा मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति भी कर दी. जिनकी नियुक्त की गयी है, वे संबंधित पद के लिए प्रशिक्षित (हाइली स्किल्ड) हैं या नहीं, इसमें भी संदेह है.

ई-टेंडर में गड़बड़ी को लेकर हाइकोर्ट में अब भी चल रही सुनवाई

इस पूरे मामले में सबसे खास बात यह है कि उक्त एजेंसी को ठेका देने का मामला अब भी झारखंड हाइकोर्ट में लंबित है. एजेंसी के पटना स्थित ऑफिस में हाइकोर्ट की ओर से दस्ती नोटिस भी भेजा गया है. इस मामले में अगली सुनवाई एक फरवरी 2023 को होनी है. गौरतलब है कि पारा मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति करनेवाली वाली एजेंसी के चयन के लिए निकाले गये ई-टेंडर में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों की शिकायत करते हुए हाइकोर्ट में रिट दायर कर की गयी थी. सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव ने 14 अक्तूबर को पत्र लिखकर रांची उपायुक्त को तत्काल केवल प्रशासनिक व पदाधिकारियों की कमेटी का गठन कर जांच रिपोर्ट देने को कहा था. इसके बाद उपायुक्त ने अनुमंडल पदाधिकारी दीपक कुमार दुबे (आइएएस) के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया. चूंकि यह आर्थिक बिंदुओं से जुड़ा मामला था, इसलिए इसमें शिकायतकर्ताओं के साथ ही ट्रेजरी ऑफिसर सुनील कुमार सिन्हा और कार्यपालक दंडाधिकारी के तौर पर संजय प्रसाद को भी शामिल किया गया था.

इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्डस के तहत होनी थी नियुक्ति

रांची समेत राज्य के अन्य सदर अस्पतालों, सीएचसी और पीएचसी में मैनपावर की कमी को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से आउटसोर्सिंग के जरिये पारा मेडिकल स्टाफ की बहाली की जानी थी. इसके तहत इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्डस (आइपीएचएस) के हिसाब केवल तकनीकी रूप से प्रशिक्षित (हाइली स्किल्ड और स्किल्ड) पारा मेडिकल स्टाफ को ही नियुक्त किया जाना था. लेकिन, इस मौजूदा घटनाक्रम के तहत सीएचसी-पीएचसी के अलावा रांची सदर अस्पताल के सुपरस्पेशियलिटी विंग, ओटी, आइसीयू और लैब में महत्वपूर्ण पदों पर अनट्रेंड कर्मचारियों को नियुक्त कर दिया गया है.

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800 से ज्यादा कर्मियों को नियुक्त कर चुकी है एजेंसी

समानता सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड का चयन निविदा (ई-टेंडर) के जरिये किया गया है. लेकिन, अब तक टेंडर फाइनल कर लेने से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गयी है. पिछली एजेंसी को करीब 150 पारा मेडिकल स्टाफ को ही नियुक्ति का अधिकार था. लेकिन इस बार समानता को काम मिला, तो उसे करीब 800 कर्मचारियों को नियुक्ति की जिम्मेदारी दी गयी. इदर एजेंसी अब तक 800 से ज्यादा कर्मचारियों की नियुक्ति कर चुकी है.

कैसे एसडीओ के मंतव्य को डीसी ने बदला

  • पहला आरोप : जून में ई-टेंडर निकालने के एक महीने बाद बीच में ही ‘अनुभव’ सहित निविदा की कई शर्तों को बदल दिया गया, जबकि शुरुआत में निविदा की शर्तों में साफ लिखा गया था कि सिक्योरिटी और हाउसकीपिंग सर्विस से जुड़ी कंपनी को स्वास्थ्य सेवा के लिए कुशल (स्किल्ड) कर्मियों को नियुक्ति का अधिकार नहीं दिया जा सकता.

  • सिविल सर्जन का जवाब : प्री-बिड बैठक के दौरान टेंडर में शामिल विचारों के आधार पर क्रय समिति ने इसे बदला है.

  • जांच समिति का मंतव्य : निविदा पैरा 6.1.1 और 6.1.2 की मूल शर्तों को बदल कर निविदा के मूल स्वभाव को बदल दिया गया. सिविल सर्जन का जवाब संतोषप्रद नहीं. जांच के क्रम में किसी प्री-बिड बैठक का सबूत नहीं दिया जा सका. नियम व शर्तों को किसी भी सूरत में नहीं बदला जा सकता है.

  • रांची उपायुक्त का मंतव्य : पारा मेडिकल सहित अस्पताल के हेल्थ केयर सेक्टर में कर्मियों की नियुक्ति के लिए निकाली गयी निविदा (ई-टेंडर) की शर्त में टाइपिंग एरर (कतिपय भूलवश) हो गया होगा. कुछ बदलाव उचित नहीं.

  • दूसरा आरोप : क्या शर्तों में ऐसे संशोधन से पूर्व विभागीय अनुमति की जरूरत नहीं?

    सिविल सर्जन का जवाब : नहीं, क्रय समिति खुद में सक्षम.

  • जांच समिति का मंतव्य : सभी पक्षों और सिविल सर्जन से 11 नवंबर को पूछताछ करने पर लिखित जवाब प्रस्तुत किया गया. इसमें कोई भी जवाब संतोषप्रद नहीं पाया गया. बैठक का तो जिक्र है, लेकिन इसमें साक्ष्य के तौर पर 11 कंपनियों के शामिल होने के हस्ताक्षर गायब हैं. बैठक हुई या नहीं, इसके कागजी साक्ष्य नहीं हैं.

  • रांची उपायुक्त का मंतव्य : ई-टेंडर को बीच में बदलने के लिए कोई विभागीय मंजूरी की जरूरत नहीं, क्रय समिति सक्षम.

  • तीसरा आरोप : क्या समानता सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड अनुभव की नयी (ई-टेंडर में संशोधित बाद में जोड़ी गयी) शर्तों को भी पूरा करता है?

  • सिविल सर्जन का जवाब : इसमें हेल्थ सेक्टर की जगह पर डायरेक्टरेट जनरल आफ रिसेटलमेंट मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस गवर्नमेंट ऑफ इंडिया वेस्ट ब्लॉक, नयी दिल्ली की अधिसूचना का जिक्र है, जिसमें सिक्योरिटी गार्ड्स विदाउट आर्म्स को स्किल्ड एवं सिक्योरिटी गार्ड्स विद आर्म्स को हाइली स्किल्ड श्रेणी में रखा गया है.

  • जांच समिति का मंतव्य : इस संबंध में झारखंड सरकार की नीतियों को लिया जाना चाहिए था. विस्तृत व सटीक जानकारी के लिए यहां के श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग की 24 अक्तूबर को जारी अधिसूचना का अवलोकन किया जाना चाहिए था.

  • रांची उपायुक्त का मंतव्य : समानता सिक्योरिटी द्वारा हाइली स्किल्ड श्रेणी में अनुभव प्रमाण पत्र (एक्सपीरियंस लेटर) नहीं लगाया गया है, जो निविदा की शर्तों को आंशिक रूप से ही पूरा करते हैं.

  • चौथा आरोप : ई-टेंडर में यहां कंपनी से संबंधित चरित्र प्रमाण पत्र डीएम स्तर से लगाया जाना था. जबकि, समानता सिक्योरिटी के मामले में वरीय पुलिस अधीक्षक पटना के स्तर से जारी प्रमाण पत्र को स्वीकार कर लिया गया, क्यों?

  • सिविल सर्जन का जवाब : एसपी स्तर से जारी चरित्र प्रमाण पत्र को ई-टेंडर में स्वीकार किया गया. इससे संबंधित अभिलेख जिला कार्यालय में जांच के लिए भेजा गया है.

  • जांच समिति का मंतव्य : ई-टेंडर में अगर चरित्र प्रमाणपत्र डीएम स्तर से मांगा गया, तो केवल वही मान्य होना चाहिए था. सिविल सर्जन का जवाब स्वीकार नहीं. अगर कंपनी का कार्यालय झारखंड में है, तो यहां डीसी या डीएम स्तर से कैरेक्टर सर्टिफिकेट प्राप्त किया जा सकता था. ऐसा प्रतीत होता है कि शर्तों को लचीला बनाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया, जो टेंडर के नियमों के प्रतिकूल है.

  • रांची उपायुक्त का मंतव्य : महज चरित्र प्रमाण पत्र (कैरेक्टर सर्टिफिकेट) को आधार बनाकर समानता सिक्योरिटी को निविदा (ई-टेंडर) में अयोग्य घोषित करना सही नहीं.

  • पांचवां आरोप : टेंडर में भाग लेने के लिए झारखंड में कार्यालय होना या झारखंड का होना अनिवार्य शर्त थी.

  • सिविल सर्जन का जवाब : कोई एक स्थानीय पता अनिवार्य है.

  • जांच समिति का मंतव्य : जब इसी मामले में टेंडर में भाग लेने वाली एक अन्य कंपनी का झारखंड के भौगोलिक सीमा के अंदर का पता अंकित है, उसके बाद भी उसे बाहर कर दिया गया. यह उचित प्रतीत नहीं होता, जबकि ई-टेंडर में भाग लेने के लिए उक्त कंपनी द्वारा स्थानीय पता का जीएसटी नंबर दिया गया था. इसके बावजूद अयोग्य ठहराया गया, जो नियम के हिसाब से गलत है. एक जगह गलत, तो फिर दूसरी जगह सही कैसे?

  • रांची उपायुक्त का मंतव्य : उक्त कंपनी को अयोग्य ठहराये जाने के सिविल सर्जन के जवाब से संतुष्ट, इसे आगे जांच का विषय नहीं माना जाना चाहिए.

  • छठा आरोप : सामान्यता सिक्योरिटी द्वारा निविदा टेंडर में खुद को झारखंड से जोड़ने का जो कागजात (पार्टनर के नाम से) सरायकेला-खरसावां के श्रम विभाग से समर्पित किये गये थे, उसका लीज या रेंट एग्रीमेंट पहले ही समाप्त हो गया था.

  • सिविल सर्जन का जवाब : कोई एक स्थानीय पता अनिवार्य. (लीज-रेंट एग्रीमेंट समाप्त होने के बाद भी समानता के आधार को सही पाया.)

  • जांच समिति का मंतव्य : टेंडर का चयन करते वक्त ऐसा ही नियम या अहर्ता दूसरी कंपनियों के मामले में गलत कैसे, फिर उसे भी सही माना चाहिए था. एक ही जगह दो अलग-अलग नियम नहीं लागू हो सकते.

  • रांची उपायुक्त का मंतव्य : समानता सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को सरायकेला-खरसावां के लेबर सुपरींटेंडेंट द्वारा जारी प्रमाण पत्रों के आधार पर निविदा की शर्तों (जो पूर्व में ही फेल) के आधार पर सफल घोषित किया गया है.

  • सातवां आरोप : समानता सिक्योरिटी के टेंडर में शामिल होने के लिए इएसआइसी के इसीआर की ऑनलाइन और ऑफलाइन हार्ड कॉपी अलग-अलग.

  • सिविल सर्जन का जवाब : ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रिंट निकालने के बाद हार्ड पेपर में कर्मचारियों का क्रम संख्या दिखाई नहीं दे रही थी.

  • जांच समिति का मंतव्य : सिविल सर्जन द्वारा दी गयी जानकारी गलत है. जांच के दौरान समानता सिक्योरिटी द्वारा ऑनलाइन समर्पित इएसआइसी के इसीआर की प्रति पूरी तरह से पठनीय है. इसमें हस्ताक्षर और मुहर भी नहीं हैं, जो संदेह उत्पन्न करता है. दिये गये पेपर में अप्रैल माह में 358 स्टाफ, मई माह में 257 स्टाफ और जून 2022 में 130 स्टाफ का पेड चालान लगाया गया है. क्रम संख्या स्पष्ट पर इसमें दोनों में अंतर होने के कारणों का उल्लेख नहीं है. इसमें राशि की भुगतान किया गया है, जो निविदा के शर्तों को कहीं से भी पूरा नहीं करता है. ऑनलाइन रिपोर्ट नहीं पठनीय होने संबंधी जानकारी भी झूठी है. रिपोर्ट पूरी तरह से पठनीय थी. बाद में हार्ड कॉपी के तौर पर लिया जाना नियम के खिलाफ है.

  • रांची उपायुक्त का मंतव्य : इस मामले में जिला क्रय समिति द्वारा स्पष्टीकरण स्वीकार योग्य प्रतीत होता है.

  • आठवां आरोप : बिना कार्यादेश के कंपनी ने नियुक्ति शुरू कर दी. समानता सिक्योरिटी को काम सौंपने की जानकारी संबंधी अपडेट ऑनलाइन नहीं जारी किया गया.

  • सिविल सर्जन का जवाब : चयन (एल-1) की सूचना संबंधित कंपनी को उपलब्ध करा दी गयी है. मामला न्यायालय में है, लिहाजा प्राइस संबंधी अन्य जानकारियां ऑनलाइन अपलोड नहीं की गयी है और न ही यहां नियुक्ति संबंधी किसी तरह का कोई कार्यादेश जारी किया गया है.

  • जांच समिति का मंतव्य : 20 सितंबर को टेंडर फाइनल होकर एल-1 घोषित किया गया. सिविल सर्जन ने इसके अगले ही दिन ऑफलाइन समानता को कार्य आदेश जारी कर दिया है. कार्य आदेश जारी करने के पूर्व प्राइस बिड ऑनलाइन अपलोड कर देना चाहिए था, क्योंकि निविदा से संबंधित मामले को न्यायालय में 21 सितंबर के बाद दायर किया गया है.

  • रांची उपायुक्त का मंतव्य : मामला न्यायालय में विचाराधीन है, लिहाजा प्राइस संबंधी ऑनलाइन अपडेशन लंबित रखा गया है.

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संबंधित विभागों के निर्देश पर टीम गठित कर जांच करायी जाती है. टीम की अनुशंसा पर रिपोर्ट तैयार कर भेजा जाती है. इस मामले में रिपोर्ट क्या है, वह याद नहीं है. रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जा सकती है.

-राहुल कुमार सिन्हा, उपायुक्त रांची

रांची जिले में आउटसोर्सिंग एजेंसियों को उच्च न्यायालय में रिट फाइल होने के पहले ही वर्कआर्डर थमा दिया गया था. मामला हाईकोर्ट में होने के चलते समानता सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विस से जुड़ी उपायुक्त की जांच रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है.

-डॉ विनोद कुमार, सिविल सर्जन रांची

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