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ऑनलाइन खाना मंगाना पड़ सकता है महंगा, जीएसटी के दायरे में लाने पर हो रहा विचार

अगर आप रेस्तरां में बैठकर खाना खाते हैं, तो कम लेकिन घर पर खाना मंगाते हैं तो ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं. अगर आप स्विगी, जोमैटो, या किसी दूसरे ऐप से खाना मंगवाते हैं, तो अब महंगा पड़ सकता है.

घर में खाना बनाने का मन नहीं हुआ तो झट से मोबाइल निकालकर खाना आर्डर कर दिया. अब ऑनलाइन खाना मंगाना महंगा पड़ सकता है. जीएसटी परिषद इस पर विचार कर रही है. कमेटी ने फूड डिलीवरी एप्स को कम से कम पांच फीसदी जीएसटी के दायरे में लाने की सिफारिश की है. 17 सितंबर, 2021 को जीएसटी परिषद की 45वीं बैठक होगी. इस बैठक में इस मुद्दे पर अहम फैसला लिया जा सकता है.

अगर आप रेस्तरां में बैठकर खाना खाते हैं, तो कम लेकिन घर पर खाना मंगाते हैं तो ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं. अगर आप स्विगी, जोमैटो, या किसी दूसरे ऐप से खाना मंगवाते हैं, तो अब महंगा पड़ सकता है.

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यह फैसला एक जनवरी 2022 से लागू हो सकता है. 2019-20 और 2020-21 में दो हजार करोड़ रुपये के जीएसटी घाटे का अनुमान लगाया है और फिटमेंट पैनल ने सिफारिश की है कि फूड एग्रीगेटर्स को ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के रूप में अलग कर रेस्तरां की ओर से जीएसटी का भुगतान किया जायेगा. कई रेस्तरां ऐसे हैं जो जीएसटी का भुगतान नहीं कर रहे और रजिस्टर्ड भी नहीं हैं.

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ना सिर्फ रेस्तरां से खाना मंगवाना बल्कि पेट्रोलियम पदार्थ जिनमें पेट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस और एविएशन टर्बाइन फ्यूल (विमान ईंधन) को भी जीएसटी के तहत लाया जा सकता है. केरल हाईकोर्ट की ओर से पेट्रोल व डीजल को जीएसटी के दायरे में लाए जाने के निर्देश के बाद जीएसटी परिषद के सामने यह मामला आया है.

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