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बिहार सरकार और नगर निगम की कार्यशैली पर हाइकोर्ट की सख्त टिप्पणी, कहा- दोनों को फिर से कानून पढ़ने की आवश्यकता

पटना हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश के जरिये पटना नगर निगम की वित्तीय स्वायत्तता पर सवाल खड़ा करते हुए निगम के आयुक्त से पूछा है कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में सरकार से निगम को कितना फंड मिला है और उसमें कितना और कहां- कहां खर्च किया गया है.

पटना. पटना हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश के जरिये पटना नगर निगम की वित्तीय स्वायत्तता पर सवाल खड़ा करते हुए निगम के आयुक्त से पूछा है कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में सरकार से निगम को कितना फंड मिला है और उसमें कितना और कहां- कहां खर्च किया गया है.

चीफ जस्टिस संजय करोल व न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने हाइकोर्ट की अधिवक्ता मयूरी द्वारा दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त जानकारी मांगी है.

हाइकोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकार व नगर निगम की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों को संविधान व नगरपालिका कानून को फिर से पढ़ने की आवश्यकता है, ताकि जल्द पटना वासियों को सारी सुविधाएं उपलब्ध करायी जा सके.

मामला पटना बाइपास के दक्षिणी सिरे पर बनी कॉलोनियों की बदहाल सड़कों और सीवरेज की समस्या का है. राज्य वित्तीय आयोग की अनुशंसा पर नगर निकायों को राजस्व में अपनी हिस्सेदारी मिलती है.

नगर निकायों को कई मामलों में खुद से राजस्व उगाही की शक्ति मिली है. नगर निकायों को ऐसी वित्तीय स्वायत्तता मिलने पर भी निगम राज्य सरकार पर ही निर्भर है. इसका उदाहरण है पटना नगर निगम के कुछ टैक्स जो वर्ष 1993 (74वें संविधान संशोधन ) के बाद भी नहीं बढ़े हैं.

निगम उसके लिए भी राज्य सरकार पर निर्भर है. इन इलाकों के लोग टैक्स देते भी हैं, लेकिन उन लोगों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल पा रही हैं. हाइकोर्ट ने इस पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि निगम को वित्तीय तौर पर ऐसा जकड़ कर रख दिया गया है, मानो वह भुखमरी के कगार पर आ गया हो.

कोर्ट ने हैरानी जतायी कि संविधान से मिली सारी वित्तीय शक्तियां बिहार नगरपालिका कानून में रहते हुए भी न तो राज्य सरकार और न ही निगम के मेयर व पार्षदों का इस ओर कोई ध्यान है? कोर्ट ने कहा कि क्या यह माना जाये की निगम के पार्षद , मेयरों ने इसलिए अब तक शक्तियों के लिए आवाज नहीं उठायी, क्योंकि वे खुद अधिकार व शक्तियों का इस्तेमाल करने में फेल हो गये हैं या इन लोगों को अपनी संवैधानिक शक्तियों की जानकारी ही नहीं हैं.

हाइकोर्ट ने नगर आयुक्त को निर्देश दिया कि वो फौरन मेयर के साथ बैठक कर यह तय करें कि नगरपालिका कानून के तहत पटना वासियों को बुनियादी नागरिक सुविधाएं कैसे दी जा सकती हैं, ताकि उन्हें कोई परेशानी नहीं हो. इस मामले पर अगली सुनवाई 22 दिसंबर को फिर होगी.

नालंदा के एडीजे पर हुए हमले को लेकर डीजीपी से 23 तक मांगा जवाब

नालंदा के एडीजे पर कोर्ट से घर लौटते समय रास्ते में की गयी पत्थरबाजी और फायरिंग की घटना को गंभीरता से लेते हुए पटना हाइकोर्ट ने राज्य के पुलिस महानिदेशक से 23 दिसंबर तक जवाब तलब किया है.

कोर्ट ने इस मामले को लेकर समाचार पत्र में छपी खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए यह निर्देश दिया. कोर्ट ने हाइकोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि इस खबर को एक जनहित मामले में तब्दील कर उसे पंजीकृत करे.

मुख्य न्यायाधीश संजय करोल व न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने उक्त निर्देश देते हुए महाधिवक्ता को भी कहा है की वे डीजीपी से बात कर इस मामले में कई गयी करवाई की पूरी रिपोर्ट कोर्ट को उपलब्ध कराएं. मामले की अगली सुनवाई 23 दिसंबर को होगी .

Posted by Ashish Jha

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