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झारखंड के एक और बड़े हॉस्पिटल SNMMCH पर भी ध्यान दें स्वास्थ्य मंत्री और सचिव, 13 साल से सीटी स्कैन मशीन कमरे में है बंद, कई समस्याएं आज भी बरकरार

Jharkhand News (धनबाद) : झारखंड के स्वास्थ्य सचिव अरुण कुमार ने 21 जून को रांची स्थित रिम्स का निरीक्षण कर एम्स की तर्ज पर सुविधाएं बढ़ाने की बात कही थीं. अगर इस पर अमल हो जाये, तो राज्य के हजारों मरीजों को फायदा होगा. लेकिन, सचिव महोदय को पता नहीं कि धनबाद और इसके आसपास के कई जिलों के लिए सबसे बड़े हॉस्पिटल के रूप में पहचान रखने वाले शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SNMMCH) में भी सुविधाएं बेहाल हैं जबकि सूबे के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता जिले के प्रभारी मंत्री हैं.

Jharkhand News (मनोज रवानी, धनबाद) : झारखंड के स्वास्थ्य सचिव अरुण कुमार ने 21 जून को रांची स्थित रिम्स का निरीक्षण कर एम्स की तर्ज पर सुविधाएं बढ़ाने की बात कही थीं. अगर इस पर अमल हो जाये, तो राज्य के हजारों मरीजों को फायदा होगा. लेकिन, सचिव महोदय को पता नहीं कि धनबाद और इसके आसपास के कई जिलों के लिए सबसे बड़े हॉस्पिटल के रूप में पहचान रखने वाले शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SNMMCH) में भी सुविधाएं बेहाल हैं जबकि सूबे के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता जिले के प्रभारी मंत्री हैं.

SNMMCH में रेडियोलॉजिस्ट नहीं है. इस वजह से अल्ट्रासाउंड नहीं होता है. सीटी स्कैन मशीन 13 साल से कमरे में बंद है. इन जांचों के लिए मरीजों को पीपीपी मोड में चल रहे जांच घर पर निर्भर रहना पड़ता है. MRI की सुविधा भी आज तक हॉस्पिटल में शुरू नहीं हो पायी है. कई गंभीर बीमारियों जैसे न्यूरो, गैस्ट्रो, हार्ट आदि का इलाज अब तक शुरू नहीं हो पाया. स्थिति यह है कि क्षेत्र के सबसे बड़े हॉस्पिटल में लिफ्ट तक नहीं है. वैसे गत मंगलवार को ही धनबाद विधायक राज सिन्हा ने लिफ्ट की आधारशिला रखी है.

हर साल खर्च होता है 20 करोड़ रुपये

SNMMCH में हर साल करीब 20 करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं. बावजूद यहां सीटी स्कैन, एमआरआई, बायोवेस्ट मैनेजमेंट की व्यवस्था नहीं हो सकी है. हाॅस्पिटल में साल 2006 में सीटी स्कैन की सुविधा शुरू हुई थी. वर्ष 2004 में एक करोड़ 63 लाख की लागत से मशीन खरीदी गयी थी. मशीन चालू होने के बाद दो साल भी नहीं चली. वर्ष 2008 में मशीन में खराबी आने के बाद यह बंद पड़ी है. आज भी हॉस्पिटल के एक कमरे में मशीन बंद है. सीटी स्कैन कराने के लिए मरीजों को पीपीपी मोड में चल रहे सेंटर पर ही निर्भर रहना पड़ता है. यहां लाल कार्ड धारकों को नि:शुल्क सुविधा मिलती है. वहीं, दूसरे मरीजों को तय रकम अदा करनी पड़ती है.

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साल 2017 में हुई थी MRI सुविधा की पहल

मरीजों को MRI जैसी महंगी जांच की सुविधा सरकारी दर पर उपलब्ध कराने को लेकर सरकार के स्तर पर साल 2017 में पहल शुरू हुई थी. हॉस्पिटल प्रबंधन ने सरकार को प्रस्ताव भेजा था, पर सुविधा आज तक नहीं मिल पायी. प्राइवेट जांच घरों में MRI कराने के एवज में मरीजों को 6 से 12 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

कैथ लैब पर 15 करोड़ रुपये खर्च

SNMMCH में इमरजेंसी के समीप कैथ लैब की बिल्डिंग बनी है. इसके निर्माण पर करीब 15 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. जी प्लस थ्री बिल्डिंग में योजना के अनुसार हर फ्लोर को व्यवस्थित किया गया है. लेबोरेट्री, डॉक्टर्स चेंबर, मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड, जरूरत के अनुसार ओटी का निर्माण कराया गया, पर यह चालू नहीं हो सका. कैथ लैब बना भी नहीं. फिलहाल इस भवन का उपयोग कोविड-19 हॉस्पिटल में रूप में किया जा रहा है.

कैथ लैब के संचालन के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक, प्रशिक्षित पारा मेडिकल कर्मचारी, टेक्नीशियन सहित विभिन्न पदों के लिए कुल 100 कर्मियों की जरूरत थी. जुलाई 2017 में हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने विभिन्न पदों और कर्मचारियों की संख्या का उल्लेख करते हुए मैनपावर की मांग सरकार और स्वास्थ्य विभाग से की थी, पर इनकी बहाली लटकी हुई है.

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SNMMCH में स्थिति ऐसी है कि यहां पेसमेकर तक नहीं लगाया जा सकता है. ह्रदय रोगियों के इलाज के लिए सरकारी स्तर पर अब तक सिर्फ रिम्स में कैथ लैब है. यहां का कैथ लैब चालू होता, तो धनबाद और आसपास के जिलों के लोगों को भी ह्रदय संबंधी बीमारियों का इलाज संभव होता.

यही नहीं वर्ष 2015 में CCU के बगल में हार्ट के मरीजों को पेसमेकर लगाने की कवायद शुरू की गयी थी. इसके लिए अलग से रूम भी बनाया गया था लेकिन आज तक यहां यह सुविधा चालू नहीं हुई. यहां 45 लाख रुपये की लागत से मार्च 2017 में ही बर्न यूनिट भी बनायी गयी. यह भी वर्षों से उद्घाटन की बाट जोह रहा है.

Posted By : Samir Ranjan.

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