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Friday, March 29, 2024

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Azadi Ka Amrit Mahotsav: राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर गिरफ्तार किये गये थे अतुलचंद्र घोष

Azadi Ka Amrit Mahotsav: अतुलचंद्र और लावण्या दोनों पति-पत्नी महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर राजनीतिक आंदोलन में कूद पड़े थे.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी की लड़ाई में कई ऐसे स्वाधीनता सेनानी हैं, जिन्होंने अपने कार्य से अंग्रेज हुकूमत की नींव हिला दी थी. इनमें से अतुलचंद्र घोष (Atul Chandra Ghosh) का नाम उल्लेखनीय है. श्री घोष न केवल स्वाधीनता सेनानी थे बल्कि लोकसेवक संघ के संस्थापक और पुरुलिया जिले को बंगाल में शामिल कराने के आंदोलन के भी प्रमुख थे. 2 मार्च 1881 में बंगाल के पूर्व बर्दवान के खंडघोष में जन्में अतुलचंद्र घोष के पिता माखनलाल घोष थे.

पुरुलिया के अयोध्या में बीता बचपन

अतुलचंद्र का बचपन पुरुलिया जिले के अयोध्या में गुजरा था. 1901 में एफए पास करने के बाद कोलकाता के मेट्रोपोलिटन कॉलेज में बीए में उन्होंने दाखिला लिया. बाद में पुरुलिया में अपना कारोबार उन्होंने शुरू किया और वहीं लावण्या प्रभा के साथ उनका विवाह हुआ था. अतुलचंद्र और लावण्या दोनों पति-पत्नी महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर राजनीतिक आंदोलन में कूद पड़े थे.

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नमक सत्याग्रह के बाद भारत छोड़ो आंदोलन में भी लिया भाग

अतुलचंद्र ने बिहार प्रादेशिक कांग्रेस कमेटी के सचिव (1921-1935) तथा मानभूम जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष (1935-1947) पद पर कार्य किया. अतुलचंद्र ने नमक सत्याग्रह और बाद में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में हिस्सा लिया. इसके बाद राष्ट्रीय सप्ताह का पालन करने और राष्ट्रीय ध्वज फहराने के जुर्म में उन्हें 1945 में कारावास जाना पड़ा.

बिहार सरकार की नीतियों का किया विरोध

मानभूम में कांग्रेस सरकार से मतविरोध होने पर उन्होंने 1947 में कांग्रेस छोड़ दिया और उसी वर्ष लोकसेवक संघ की स्थापना करके बिहार सरकार की प्रशासनिक, आर्थिक व शिक्षा संबंधी नीतियों का विरोध करते हुए आंदोलन शुरू किया. उन्हें मानभूम केसरी की उपाधि भी मिली. 1950-1952 के बीच उन्होंने कई बार सत्याग्रह किया. 1956 में पुरुलिया जिले का गठन हुआ.

बंगालभुक्ति आंदोलन के भी प्रमुख कहे जाते हैं अतुलचंद्र घोष

उन्हें ‘बंगालभुक्ति’ आंदोलन का प्रमुख भी कहा जाता है. महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित होकर वह पंचायती सारज, ग्रामीण उद्योग विकास, निरक्षरता को दूर करने में विश्वास रखते थे. वह साप्ताहिक अखबार ‘मुक्ति’ के संपादक भी थे. उनका निधन 15 अक्तूबर 1962 में हुआ.

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