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Thursday, March 28, 2024

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मुंबई में फिराक गोरखपुरी ने दिलीप कुमार को पहचानने से कर दिया था इंकार, आज है 126वीं जयंती

फिराक प्रो. वसीम से काफी प्रभावित थे.इसलिए अंतिम समय में लिखी गई अपनी किताब "यादों के झरोखे"में काफी तारीफ की. प्रो. वसीम बरेलवी बरेली कॉलेज के उर्दू विभाग के एचओडी से रिटायर हो चुके हैं. वह कला संकाय के भी डीन भी रहे.

Bareilly News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जन्मे फ़िराक़ गोरखपुरी का नाम बीसवीं सदी के मशहूर शायरों में शुमार होता है. उनकी 28 अगस्त यानी आज 126वीं जयंती हैं. उनके नाम से चित्रांशी आगरा ने 2008 में फ़िराक़ इंटरनेशनल अवार्ड का ऐलान किया था. यह पहला अवार्ड 15 जून 2008 को अंतराष्ट्रीय शायर प्रो. वसीम बरेलवी को दिया गया था. फिराक अवार्ड में 51,000 रुपए का नकद पुरस्कार और एक प्रशस्ती पत्र प्रदान किया.

चीफ गेस्ट थे दिलीप कुमार

फिराक प्रो. वसीम से काफी प्रभावित थे. इसलिए अंतिम समय में लिखी गई अपनी किताब “यादों के झरोखे”में काफी तारीफ की. प्रो. वसीम बरेलवी बरेली कॉलेज के उर्दू विभाग के एचओडी से रिटायर हो चुके हैं. वह कला संकाय के भी डीन भी रहे. उर्दू शायरी पर आधा दर्जन से ज्यादा किताबे लिखने वाले शायर वसीम के गीत कई फिल्म और टीवी धारवाहिकों में भी गाएं गए हैं. प्रो. वसीम बरेलवी को भी फिराक गोरखपुरी से काफी लगाव था. वह बताते हैं करीब 1970 में मुंबई में एक बड़ा कार्यक्रम था. उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दिलीप कुमार थे.

फिराक गोरखपुरी नहीं उठे

उस वक्त उनको भारत के साथ ही दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में गिना जाता था. उन्हें अब भी दर्शकों द्वारा ‘अभिनय सम्राट’ के नाम से पुकारा जाता है. वे आज़ादी से लेकर 1960 के दशक तक भारत के सबसे लोकप्रिय अभिनेता थे. त्रासदी या दु:खद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ‘ट्रेजिडी किंग’ भी कहा जाता था. मगर, उस कार्यक्रम में दिलीप कुमार के आते ही भीड़ का हुजूम लग गया. मंच के सभी शायरों ने भी खैरमखदम किया. मगर, फिराक गोरखपुरी नहीं उठे. दिलीप कुमार ने आते ही फिराक गोरखपुरी के बारे में पूछा क्योंकि उनको फिराक के कार्यक्रम में आने की जानकारी आयोजक दे चुके थे.

दिलीप कुमार को गले लगा लिया

इसके बाद दिलीप कुमार उनके पास गए. मगर,फिराक ने दिलीप कुमार से पूछा, आप कौन. हालांकि, दिलीप कुमार को मालूम था, कि वह उन्हें जानते हैं, लेकिन दिलीप कुमार उनकी बात सुनकर नाराज नहीं हुए. उन्होंने अपने बारे में बताने के बाद मंच से फिराक गोरखपुरी के कलाम की काफी तारीफ की. इसके बाद फिराक गोरखपुरी ने दिलीप कुमार को गले से लगा लिया.

जंग-ए-आजादी के लिए छोड़ दी नौकरी

उर्दू साहित्य संसार का बड़ा हिस्सा रूमानियत से बंधा-बसा है. मगर, फिराक इसे लोक संस्कृति से जोड़ने के लिए भी जाने जाते हैं. फ़िराक़ का असल नाम रघुपत सहाय था.मगर, उनकी पहचान फिराक गोरखपुरी के नाम से है. उच्च शिक्षा के दौरान ही इनका चयन आईसीएस (वर्तमान में यूपीएससी) के लिए हुआ, लेकिन जंग- ए- आजादी के दौरान महात्मा गांधी का भाषण सुनने के बाद ब्रिटिश हुकूमत की नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया. इसके बाद स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए.अंग्रेजों ने सजा देने के साथ ही जुर्माने भी डाला.उनका इस बीच लेखन भी चलता रहा. कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य पढ़ाते हुए फ़िराक़ ने उर्दू शायरी में बड़ा योगदान दिया. इन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया. फिराक ने शायरी के अलावा एक उपन्यास साधु और कुटिया और कई कहानियां भी लिखी हैं. उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी भाषा में कई गद्य भी प्रकाशित हुए हैं.

जवाहर लाल नेहरू से थी काफी करीबी

फिराक गोरखपुरी का जन्म 28 अगस्त 1896 को गोला तहसील के बनवारपार में हुआ था.फिराक इलाहाबाद चले गए. वह प्रसिद्द अधिवक्ता गोरख प्रसाद इबरत के पुत्र थे. श्री प्रसाद पंडित मोतीलाल नेहरू के बेहतरीन दोस्तों में शुमार थे.फिराक का आनंद भवन आना-जाना शुरू हो गया. उनकी मुलाकात पं. जवाहरलाल नेहरू से हुई और फिर वे उनके मित्र बन गए. पिता की मृत्यु के बाद फिराक पर घर का खर्च, बहनों की शादी और पढ़ाई की जिम्मेदारी आ गई.उनका घर तक बिक गया.पंडित नेहरू ने इसे भांप लिया और उन्हें कांग्रेस कार्यालय का सचिव बना दिया, लेकिन फिराक इसे अपनी मंजिल नही माने. समाजवादी नेता शिब्बन लाल सक्सेना के कहने पर फिराक गोरखपुरी आजादी के बाद पहले चुनाव 1951 में गोरखपुर से लोकसभा चुनाव लड़ गए.एक सभा में उन्होंने खुद ही कांग्रेस उम्मीदवार सिंहासन सिंह की तारीफ कर दी.फिराक वह चुनाव हार गए, लेकिन अपनी बेबाकी और शायरी के जरिए जनता के दिलों पर तब भी राज करते रहे, आज भी छाये हुए हैं. फिराक गोरखपुरी देश सेवा और साहित्य साधना करते हुए 3 मार्च 1982 को इस दुनिया को अलविदा कह गए.

1972 में आए थे बरेली

बरेली में शायर प्रो.वसीम बरेलवी के सम्मान में 1972 में हिंद टाकीज के ग्राउंड में जश्न- ए- वसीम बरेलवी का आयोजन हुआ था.इसमें फिराक गोरखपुरी शामिल हुए.हालांकि, वह उससे पहले भी बरेली आएं थे.उन्होंने शायर प्रो. वसीम बरेलवी को अदबी दुनिया का मशहूर शायर बताया था.इसके साथ ही नई पीढ़ी के मुकाम पाने के लिए साधना और समर्पण की सीख देने की बात कही थी. इस कारक्रम के मुख्य अतिथि उस वक्त के केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा थे.शायर वसीम बरेलवी उस वक्त को फैज और फिराक की जोड़ी का जमाना बताते हैं.

युद्ध के दौरान लिखी शायरी…

भारत चीन युद्ध के समय लिखी ये गजल,सुखन की शम्मां जलाओ बहुत उदास है रात.नवाए मीर सुनाओ बहुत उदास है रात.कोई कहे ये ख्यालों और ख्वाबों से,दिलों से दूर न जाओ बहुत उदास है रात. पड़े हो धुंधली फिजाओं में मुंह लपेटे हुए,सितारों सामने आओ बहुत उदास है रात. इसके साथ ही उन्होंने बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की, सौ बात बन गई है ‘फ़िराक़’ एक बात की.

स्पेशल रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

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