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पुण्यतिथि स्मरण : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एक जीवन-प्रेमी व्यक्ति

आज हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक, उपन्यासकार और निबंधकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की पुण्यतिथि है. बनारस में नामवर सिंह और विश्वनाथ त्रिपाठी के गुरु रहे हजारी प्रसाद ने तकरीबन बीस साल शांतिनिकेतन में भी अध्यापन किया. विश्वनाथ त्रिपाठी अपने गुरू आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पर केंद्रित अपनी किताब ‘व्योमकेश दरवेश’ में लिखते हैं- द्विवेदी जी के चलते शांतिनिकेतन हिंदी साहित्यकारों, हिंदी प्रेमियों और हिंदी विद्यार्थियों का प्रमुख स्थल बन गया.

आज हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक, उपन्यासकार और निबंधकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की पुण्यतिथि है. बनारस में नामवर सिंह और विश्वनाथ त्रिपाठी के गुरु रहे हजारी प्रसाद ने तकरीबन बीस साल शांतिनिकेतन में भी अध्यापन किया. विश्वनाथ त्रिपाठी अपने गुरू आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पर केंद्रित अपनी किताब ‘व्योमकेश दरवेश’ में लिखते हैं- द्विवेदी जी के चलते शांतिनिकेतन हिंदी साहित्यकारों, हिंदी प्रेमियों और हिंदी विद्यार्थियों का प्रमुख स्थल बन गया. काव्यतीर्थ तो वह गुरुदेव के चलते था ही, लोग वहां रवींद्रनाथ ठाकुर के दर्शन करने आते, साथ में द्विवेदी जी का सत्संग लाभ भी करते. बाद में तो द्विवेदी जी के साहित्यिक व्यक्तित्व के कारण शांतिनिकेतन हिंदीवालों का भी कुछ वर्षों तक तीर्थ बना रहा.बलराज साहनी भी उन दिनों शांतिनिकेतन में थे और द्विवेदी जी के आत्मीय मित्रों में से एक थे. बाद में प्रसिद्ध अभिनेता बन गये बलराज साहनी को शांतिनिकेतन, द्विवेदी जी के पास अज्ञेय लेकर गये थे.

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अपने एक संस्मरण में बलराज साहनी ने लिखा है- द्विवेदी जी जीवन-प्रेमी व्यक्ति हैं और एक जीवंत व्यक्ति की तरह वे जीवन स्थितियों को तटस्थ होकर देख सकते हैं. दूसरों पर भी हंस सकते हैं और अपने पर भी. उनमें जीवन के चरम उद्देश्य साहित्य-कला की आर्यता के प्रति गहरी श्रृद्धा है. ज्ञान और अनुभव के लिए अतोषणीय भूख है. सुई से लेकर सोशलिज्म तक सभी वस्तुओं का अनुसंधान करने के लिए उत्सुक रहते हैं. किसी विषय पर उनकी धारणाएं अचल नहीं होतीं.

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लेकिन, द्विवेदी जी में एक दोष है, ढीलम-ढालम रहते हैं. हजामत हफ्ते में एक बार से अधिक नहीं करते. तिस पर जो व्यक्ति पहली नजर में उन्हें जंच जाये उसकी खैर, जो न जंचे उसे सामने बिठाकर उसके मुंह की ओर देखते रहते हैं. इसलिए कई महानुभाव शांतिनिकेतन से यह धारणा बनाकर लौटते कि द्विवेदी जी बैरागी आदमी हैं. प्रशंसात्मक पत्रों को फाड़कर फेंक देते हैं. अखबारों में तस्वीरें छपवाना बुढ़ापे के लिए स्थगित कर रखा है. रुपये-पैसे की परवाह नहीं करते. ऐसा आदमी न हंसे, तो कौन हंसे. इसका प्रमाण है कि जिस मंडली के साथ शाम को सैर पर निकलते हैं, उसका अट्टहास मील के घेरे में कान को चीरता है. उनके शुभचिंतक शांतिनिकेतन से आनेवाले बटोहियों से प्राय: यही सवाल-जवाब करते संतुष्ट हो जाते हैं- ‘पंडितजी हंस रहे हैं ना?’, ‘हां हंस रहे हैं.’मतलब, पंडित जी हंस रहे हैं, तो शांतिनिकेतन में सबकुछ ठीक ठाक है.

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