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Friday, March 29, 2024

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Cleanest City : “कचरे की छंटाई” और “कचरे से कमाई”, इंदौर ऐसे छठी बार बना चैंपियन

Cleanest City : अपशिष्ट की प्राथमिक स्रोत पर ही सुव्यवस्थित छंटाई से मध्यप्रदेश का यह सबसे बड़ा शहर न केवल स्वच्छ बना रहता है और आबो-हवा सुरक्षित रहती है, बल्कि इस "कीमती" कचरे से शहरी निकाय को करोड़ों रुपये की कमाई भी हो रही है.

Cleanest City : मध्य प्रदेश का इंदौर शहर इन दिनों सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है. आइए हम आपको बताते हैं आखिर क्यों ? दरअसल केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर लगातार छठी बार देश भर में अव्वल रहा. शहर ने ये कामयाबी हर रोज औसतन 1,900 टन कचरे को हर दरवाजे से छह श्रेणियों में अलग-अलग जमा करने के बाद इसका सुरक्षित निपटान के मजबूत मॉडल पर टिकी है. वर्ष 2022 की बात करें तो इस सर्वेक्षण में अलग-अलग श्रेणियों में कुल 4,355 शहरों के बीच मुकाबला हुआ था.

यह सम्मान मिलने के बाद इंदौर नगर निगम (आईएमसी) के अधिकारियों ने सारी प्रक्रिया को बताया है. उन्होंने कहा है कि अपशिष्ट की प्राथमिक स्रोत पर ही सुव्यवस्थित छंटाई से मध्यप्रदेश का यह सबसे बड़ा शहर न केवल स्वच्छ बना रहता है और आबो-हवा सुरक्षित रहती है, बल्कि इस “कीमती” कचरे से शहरी निकाय को करोड़ों रुपये की कमाई भी हो रही है. ‘‘कचरा पेटी मुक्त शहर” की 35 लाख की आबादी से औसत आधार पर हर रोज तकरीबन 1,200 टन सूखा कचरा और 700 टन गीला कचरा बाहर आता है.

850 गाड़ियों की ली जाती है मदद

आईएमसी की स्वच्छता इकाई के अधीक्षण इंजीनियर महेश शर्मा ने इस बाबत जानकारी दी कि शहर भर में लगातार चलने वाली 850 गाड़ियों की मदद से हम लगभग हर घर एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान के दरवाजे से गीला और सूखा कचरा छह श्रेणियों में अलग-अलग एकत्रित किया जाता है. इन गाड़ियों में बनाये गये विशेष कम्पार्टमेंट में डायपर और सैनिटरी नैपकिन जैसे जैव अपशिष्ट भी अलग से एकत्र किए जाते हैं. प्राथमिक स्रोत पर ही कचरे को अलग-अलग जमा करने से प्रसंस्करण के लिए इसकी गुणवत्ता उत्तम रहती है.

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बायो-सीएनजी बनाने का एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र

शर्मा ने बताया कि “शहरी क्षेत्र से निकलने वाले गीले कचरे से बायो-सीएनजी बनाने का एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र” लगाने के बाद इंदौर ने देश के अन्य शहरों को सफाई के मुकाबले में काफी पीछे छोड़ दिया है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 फरवरी को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये आयोजित कार्यक्रम में 150 करोड़ रुपये की लागत से बने इस ‘‘गोबर-धन” संयंत्र को लोकार्पित किया था और विश्व बैंक भी इस इकाई का अध्ययन कर रहा है. अधिकारियों ने बताया कि शहर के देवगुराड़िया ट्रेंचिंग ग्राउंड पर 15 एकड़ पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर एक कम्पनी द्वारा चलाया जा रहा संयंत्र हर दिन 550 टन गीले कचरे (फल-सब्जियों और कच्चे मांस का अपशिष्ट, बचा या बासी भोजन, पेड़-पौधों की हरी पत्तियों, ताजा फूलों का कचरा आदि) से 17,000 से 18,000 किलोग्राम बायो-सीएनजी और 100 टन जैविक खाद बना सकता है.

बायो-सीएनजी से 150 सिटी बसें चलाई जा रही हैं

अधिकारियों के मुताबिक इस संयंत्र में बनी बायो-सीएनजी से 150 सिटी बसें चलाई जा रही हैं जो निजी कम्पनी द्वारा शहरी निकाय को सामान्य सीएनजी की प्रचलित बाजार दर से पांच रुपये प्रति किलोग्राम कम दाम पर बेची जाती है. इस बीच, कचरे से होने वाली कमाई से आईएमसी का खजाना लगातार बढ़ रहा है. आईएमसी के अधीक्षण अभियंता महेश शर्मा ने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में शहरी निकाय को कचरे से अलग-अलग स्रोतों से करीब 14.50 करोड़ रुपये की आय हुई थी. शर्मा के मुताबिक इस आय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कार्बन क्रेडिट बेचने से मिले 8.5 करोड़ रुपये और बायो-सीएनजी संयंत्र को कचरा मुहैया कराने के बदले शहरी निकाय को निजी कम्पनी द्वारा दिया जाने वाला 2.52 करोड़ रुपये का सालाना प्रीमियम शामिल है.

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