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बिहार का पहला अभिनेता, जिसे मगही, मैथिली व भोजपुरी फिल्मों में मिला हीरो बनने का मौका

श्रीगोपाल बिहार के पहले कलाकार हैं जिन्हें न केवल पहली बार रूपहले पर्दे पर नायक बनने का मौका मिला, बल्कि मैथिली, भोजपुरी और मगही तीनों भाषाओं में हीरो की भूमिका निभानेवाले श्रीगोपाल इकलौते कलाकार हैं.

आशीष झा. पटना. गया कॉलेज में आयोजित नाटकों से अपनी अभिनय यात्रा की शुरुआत करनेवाले श्रीगोपाल बिहार के पहले कलाकार हैं जिन्हें न केवल पहली बार रूपहले पर्दे पर नायक बनने का मौका मिला, बल्कि मैथिली, भोजपुरी और मगही तीनों भाषाओं में हीरो की भूमिका निभानेवाले श्रीगोपाल इकलौते कलाकार हैं. श्रीगोपाल मैथिली भाषा में प्रदर्शित पहली फिल्म कन्यादान के हीरो थे. जिसका निर्माण 1963 में हुआ था.

मुंबई में गुमनामी की जिंदगी जी रहे श्रीगोपाल अपने अभिनय सफर को याद करते हुए कहते हैं कि पटना में इंटर कॉलेज स्तर पर नाटक प्रतियोगिता आयोजित हुई थी. उसमें जज बनकर मुंबई से इब्राहिम अल्काजी आये थे. मैं भी उस प्रतियोगिता में भाग लिया था. मेरा अभिनय देख इब्राहिम अल्काजी ने मुझे अपने पास बुलाया और कहा कि तुम यहां क्या कर रहे हो, मुंबई आओ.

उस वक्त हमारी उम्र करीब 18 साल रही होगी. हीरो बनने का सपना लेकर मैं पटना से मुंबई आ गया. मुंबई आने के लिए दोस्तों से मदद ली. टिकट का पैसा और सूट दोस्तों ने ही दिया. गया के चाँद चौरा के रहनेवाले श्रीगोपाल 1962 में मुंबई आये. मात्र दो साल के संघर्ष के बाद श्रीगोपाल का सपना सच हो गया. जीवन के 20वें वर्ष में वो हीरो बन गये.

मुंबई आने पर श्रीगोपाल सबसे पहले प्रकाश स्डूडियो गये. वहां बिहारी मुंशी जी का ऑफिस था. जहानाबाद के मुंशी जी उस समय सिनेमा के बड़े निर्माता थे. श्री गोपाल कहते हैं कि मैं उनके यहां एकाउंट का काम देखने लगा. उस समय मुंशी जी फनी मजुमदार,अशोक कुमार और नलिनी जयवंत को लेकर फिल्म डायमंड हार्बर बना रहे थे. तब तक मैंने किसी से नहीं कहा था कि मुझे अभिनेता बनना है. मैंने फनी दा से कहा कि मैं निर्देशन सीखना चाहता हूं. इस पर उन्होंने अगले दिन मुझे सेट पर बुलाया और मुझे सहायक के रूप में काम करने का मौका मिल गया.

बतौर हीरो भोजपुरी फिल्म से हुई शुरुआत

श्री गोपाल को हीरो बनने का मौका एक नाटक ने दिलाया. वो बताते हैं कि मुंबई आने के एक साल बाद यहां भोजपुरी सम्मेलन हुआ उसमें वीर कुँवर सिंह को लेकर एक नाटक का मंचन हुआ. दिल्ली से कुछ बड़े मंत्री आये थे. उसी कार्यक्रम में हिन्दी सिनेमा के निर्देशक पंकज पराशर के पिता निर्माता जेएन पराशर आये थे.

उन्होंने नाअक देखकर मुझे बुलाया और एक पेपर पर अपना नंबर लिख कर मुझे मिलने को कहा. मैं उनसे मिला और उन्होंने कहा कि तुम मेरी भोजपुरी फिल्म के हीरो हो. उसी दिन फिल्म नइहर छुटल जाए का मुहूर्त शाट हुआ. स्डूडियो में सबको पता चल गया कि मैं हीरो बनने जा रहा हूं. बतौर हीरो भोजपुरी फिल्म से मेरी शुरुआत हुई.

मगही फिल्म भैया का निर्माण

नालंदा पिक्चर्स के मालिक मुंशी जी मगही भाषी थे. उन्होंने अपनी भाषा में फिल्म की योजना बनायी. फनी मजुमदार निर्देशक के रूप में साइन किये गये. तब तक मैं भोजपुरी में हीरो बन चुका था और मगही मेरी भाषा थी. ऐसे में मुझे फिल्म का नायक बनाया गया. विजया चौधरी मेरी हीरोइन थी. लता बोस ने मेरी बहन का किरदार निभाया. बिहार के कई जगहों पर इसकी शूटिंग हुई. फिल्म भी खूब चली थी.

रेणु के अनुरोध पर बनी कन्यादान

कन्यादान एक बड़ी फिल्म थी और सबको इस फिल्म से बहुत उम्मीद थी. इस फिल्म को याद करते हुए श्रीगोपाल कहते हैं कि रेणु जी का उपन्यास मैला आँचल हिन्दी साहित्य में लोकप्रिय हो चुका था. मुंशी जी उस पर फिल्म बनाना चाह रहे थे. निर्देशक फनी मजुमदार से बात हुई और सहमति बनने पर नवेंदु घोष को पटकथा लिखने को कहा गया. मुझे हीरो के रूप में कास्ट किया गया था.

मेरा फोटो शूट हुआ. चूँकि उपन्यास का कैनवास बहुत बड़ा था, इसलिए राइटिंग में अधिक समय देने की जरुरत थी. इसमें देरी हो रही थी, तो रेणु जी ने मुंशी जी से कहा कि आपने भोजपुरी में फिल्म बनाई, मगही में फिल्म बनाई तो क्यों नहीं तब तक मैथिली में एक फिल्म बनाया जाये. मुंशी जी तैयार हो गये. एक अच्छी कहानी की तलाश हरिमोहन झा पर जाकर खत्म हुई. उनका दो उपन्यास कन्यादान और द्विरागमन बेहद लोकप्रिय था.

फनी दा ने दिया मुझे मौका

दोनों में से कन्यादान का चुना गया और नवेंदु घोष जी को पटकथा के लिए और फनी मजुमदार को निर्देशन का जिम्मा दिया गया. मैं बिहार से था और नायक उस उपन्यास में हिन्दी बोलता है, तो फनी दा ने मुझे हीरो का रोल दिया. भैया जी में बहन का किरदार निभानेवाली इसमें मेरी हीरोइन कास्ट की गयी.

कन्यादान मेरी लगातार तीसरी हिट फिल्म थी

श्रीगोपाल कहते हैं कि इस फिल्म की शूटिंग मिथिला के कई इलाकों में हुई थी. कुछ शूटिंग मुंबई में हुई. चंद्रनाथ मिश्र अमर को संवाद सीखाने के लिए रखा गया था. हम लोगों के लिए मैथिली बोलना काफी मुश्किल रहा. रामायण तिवारी लड़की के बाप बने थे. वो मैथिली में संवाद नहीं बोल पा रहे थे. चाहकर भी सही तरह से उच्चारण नहीं बोल पा रहे थे तो उन्होंने स्वयं इस किरदार को न करने का फैसला किया. अंत में यह रोल अमर जी को मिला और हीरोइन के पिता के किरदार में अमर जी परदे पर आये.

मराठी अभिनेत्री दुलारी जी और हीरोइन की माँ जो बंगाली अभिनेत्री थी, इन दोनों का संवाद अदायगी बहुत सही था. भाभी के किरदार में चाँद उस्मानी ने बहुत सही तरीके से मैथिली में संवाद बोला.श्रीगोपाल कहते हैं कि कन्यादान मेरी तीसरी हिट फिल्म थी. कन्यादान पटना के वीणा सिनेमा में लगी थी. वीणा सिनेमा हाल के मालिक हीरा बाबू कन्यादान के फाइनेंसर भी थे. फिल्म को दर्शकों ने काफी सराहा.

मुझे हटाकर धर्मेन्द्र को लिया गया

श्रीगोपाल कई फिल्म नहीं मिल पाने का दुख आज तक नहीं भूल पाये हैं. वो कहते हैं कि सी परमानन्द से मेरी काफी दोस्ती थी, लेकिन ममता गाबै गीत के लिए उन्हें शुद्ध मैथिली में बोलनेवाला कलाकार चाहिए. इसलिए मैं उस फिल्म में काम नहीं कर पाया. इधर जब मैला आँचल की बात हुई तो मुंशी जी अचानक अपने गांव जहानाबाद चले गये. वहां उनकी जमीन पर नक्सली कब्जा कर लिये थे.

इधर फनी दा की फिल्मे असफल होने लगी थी. उन्होंने मुझसे कहा कि अब तुम भोजपुरी फिल्म मत करो. मैं तुमको और अपर्णा सेन को लेकर हिन्दी फिल्म बनाऊंगा, लेकिन यह सपना साकर नहीं हो पाया. कई वर्षों बाद जब मुंशी जी लौटे तो वक्त बदल चुका था. मैला आँचल पर फिल्म बनाने की बात हुई तो निर्देशक फनी दा नहीं थे, पटकथा लेखक नवेंदु घोष को निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी गयी और वो मेरी जगह धर्मेद्र को हीरो के रूप में कास्ट किया. फिल्म की शूटिंग हुई, लेकिन फिल्म डाक्यूमेंट्री बन गई. डाकडर बाबू फिल्म नहीं चली.

श्रीगोपाल ने कई भोजपुरी फिल्मों में काम किया, लेकिन हिन्दी सिनेमा से सरोकार नहीं बना पाये. इस पर वो कहते हैं कि मैं हीरो बन चुका था .छोटा रोल नहीं करना चाह रहा था. परीक्षित साहनी, विद्या सिन्हा मैं और रीता भादूडी की जोड़ी बनी थी, लेकिन फिल्म रीलीज हो पाती उससे पहले परीक्षित और विद्या जी की कई फिल्में फ्लाप हो गयी, इसका खामियाजा हमारी फिल्म को भुगतना पड़ा. होनहार नहीं चल पायी. मैं उसे अपनी किस्मत मानता हूं.

सिनेमा को लेकर बिहार सरकार का रवैया सही नहीं

श्रीगोपाल कहते हैं कि सिनेमा को लेकर बिहार सरकार का रैवया कभी सहयोगात्मक नहीं रहा. उपकार सफल हो चुकी थी और सारे राज्यों ने उसे टैक्स फ्री किया. मुझे निर्मताओं ने कहा कि तुम बिहार जाओ और सरकार से बात करो कि उसे टैक्स फ्री किया जाये. दारोगा राय उस समय की सीएम थे. उनसे बात हुई. वो मान गये. उनकी पत्नी ने कहा कि मैं धरती कहे पुकार के फिल्म देखना चाहती हूं वो भी अपने घर में.

अब क्या कि जाये. तो मैंने उनके घर में ही फिल्म दिखाने के सारी व्यवस्था की. दारोगा राय ने कहा कि आप जाइये, आपको चिठ्ठी मिल जाएगी. मैं खुश होकर लौटा. कुछ दिनों बाद चिठ्ठी आयी कि बिहार के वित्तीय हालत ठीक नहीं है, इसलिए हम टैक्स फ्री नहीं कर पायेंगे. क्या कहूं, यहां मेरी कितनी बेइज्जति हुई. बिहार सरकार का सिनेमा के प्रति आज भी एप्रोच नकारात्मक ही है. इसलिए बिहार में न फिल्में बन रही हैं ना फिल्में देखी जा रही है.

इनपुट- जितेंद्रनाथ “जीतू’

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