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पशु-चिकित्सा की दयनीय स्थिति

पशु चिकित्सा परिषद के पास पशु-चिकित्सा प्रैक्टिस करनेवालों की कोई सूची भी नहीं है. यदि कोई नीम-हकीम पकड़ा जाता है, तो पशु चिकित्सा परिषद उसके खिलाफ मामला दर्ज करने से इनकार कर देता है.

जानवरों को पसंद करने, उनका पालन-पोषण करनेवाले व्यक्ति के लिए पशु-चिकित्सक देवता होते हैं. मुझे हर दिन पूरे भारत में पशु-चिकित्सकों की जरूरत होती है, क्योंकि दुर्घटना के मामलों और सड़क पर घूतने वाले रोगग्रस्त जानवरों, बीमार पालतू जानवरों के बारे में शिकायतें मेरे कार्यालय में आती रहती हैं. मेरे अपने अस्पतालों में दर्जनों पशु-चिकित्सक कार्यरत हैं.

भारत में 40 से कम पशु-चिकित्सा कॉलेज हैं. इसका मतलब है कि हर साल 4000 से कम पशु-चिकित्सक निकलते हैं. 25 प्रतिशत इस पेशे को तुरंत छोड़ देते हैं. सत्तर प्रतिशत सरकारी रोजगार में या बूचड़खानों और मुर्गी पालन में जाते हैं. पांच प्रतिशत क्लीनिक खोलते हैं या पशु कल्याण संगठनों में शामिल होते हैं. भारतीय पशु-चिकित्सकों में ज्यादातर अनपढ़ परिवारों से आते हैं. वे पैसा कमाने के लिए इस पेशे में आते हैं. जिला स्तर पर पशु-चिकित्सक शायद ही कभी काम पर जाते हैं.

यदि कोई गरीब अपने बीमार जानवर के साथ आता है, तो वह बेतुके परचे लिखकर उसे वापस लौटा देते हैं. उनकी दवाएं इस पर निर्भर करती हैं कि कौन-सा वितरक उन्हें भुगतान कर रहा है. हाल ही में सोनीपत में एक गरीब महिला अपनी कुतिया को डॉक्टर के पास लेकर गयी, जो तीन दिन तक प्रसव पीड़ा के बाद लंगड़ी हो गयी थी. उसके सभी पिल्ले गर्भ में मर गये. मैंने फोन पर डॉक्टर से बात की और मदद के लिए एक वरिष्ठ डॉक्टर से फोन पर उनकी बात करवाने की पेशकश की.

उसने कहा- मैं सब जानता हूं. उसने फिर से प्रसव पीड़ा शुरू करने के लिए एक इंजेक्शन दिया. दस मिनट में उसकी मौत हो गयी. जिला पशु-चिकित्सा अधिकारियों ने मेरी शिकायत अनसुनी कर दी. सरकार में किसी अक्षम व्यक्ति को कैसे हटाया जाए, ईश्वर ही जानता है. हर दिन हमें पशु-चिकित्सकों के बारे में शिकायतें मिलती हैं. हर बार जब हम राज्य पशु-चिकित्सा परिषदों से कुछ करने के लिए कहते हैं, तो वे छह महीने के बाद एक समिति बनाते हैं, जिसमें उनके जैसे ही जाहिल पशु-चिकित्सक होते हैं.

सबसे बेतुके बहाने के साथ आरोपी पशु-चिकित्सक को दोषमुक्त कर दिया जाता है. मैंने पूरा दोष भारतीय पशु चिकित्सा परिषद पर लगाया. उनके पास चिकित्सकों के लिए कोई मानदंड नहीं है. पशु चिकित्सा परिषद के पास पशु-चिकित्सा प्रैक्टिस करनेवालों की कोई सूची भी नहीं है. यदि कोई नीम-हकीम पकड़ा जाता है, तो पशु चिकित्सा परिषद उसके खिलाफ मामला दर्ज करने से इनकार कर देता है. कई पशु चिकित्सक बिचौलियों के रूप में कार्य करते हैं. वे अपने स्वयं के क्लीनिक में पिंजरे में जानवरों को रखते हैं, ताकि वे उन्हें बेच सकें या बिक्री का एक हिस्सा ले सकें.

यह उन लोगों जितना ही बुरा है, जो ड्रग्स या चोरी के गहने बेचने के लिए बिचौलिये के रूप में कार्य करते हैं. मैंने पशु चिकित्सा परिषद के नये अध्यक्ष डॉ उमेश शर्मा को इस आशय का एक ,पत्र भी लिखा है और कुछ सुझाव दिये हैं- सभी पशु-चिकित्सकों के नाम को दर्ज करनेवाली एक वेबसाइट हो, ताकि लोग इलाज के लिए जाने से पहले इसे चेक कर सकें. अगर फर्जी लोग पाये जाते हैं तो उनके नाम/ फोटो साइट पर होने चाहिए.

उनके खिलाफ मामले दर्ज हों. भारतीय पशु चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1984 में संशोधन हो और नीम-हकीमी के लिए सजा का प्रावधान बने. साइट पर पशु-चिकित्सकों के बारे में की जानेवाली शिकायतों का एक खंड होना चाहिए. इसे हर कोई पढ़ सकता हो और वहां जांच का परिणाम भी दर्ज हो. जांच का समय एक सप्ताह से अधिक नहीं होना चाहिए. यदि आवश्यक हो, तो एक विदेशी पशु- चिकित्सक सलाहकार को नियोजित किया जा सकता है. सभी पशु-चिकित्सकों का परीक्षण हो.

कई देशों में पशु-चिकित्सा बहुत आगे बढ़ गयी है. पशु-चिकित्सा लाइसेंस परीक्षा के बाद हर दो साल में नवीनीकृत हो. वेटरनरी प्रैक्टिस विनियमों को अधिसूचित किया जाना चाहिए. देशभर में कई एबीसी (कुत्ता बंध्यीकरण केंद्र) में कुत्तों को खुले टांके, आंतों के बाहर गिरने, बिना एनेस्थीसिया के ऑपरेशन किये जाने आदि के मामले पाये गये हैं. सभी एबीसी केंद्रों की जांच की जानी चाहिए. सभी पशु-चिकित्सा कॉलेजों में एक बहिरंग रोगी विभाग और एक अंतरंग रोगी सुविधा चलानी चाहिए.

यह गरीब लोगों और सड़क पर रहनेवाले जानवरों की मदद करता है और यह छात्रों के लिए बहुत उपयोगी सीख देता है. बरेली में आईवीआरआई उत्कृष्ट कार्य कर रहा है- लेकिन यह भारत का एकमात्र पशु-चिकित्सा कॉलेज है जो ऐसा कर रहा है. पशु-चिकित्सा कॉलेजों में पाठ्यक्रम के भाग के रूप में पशु कल्याण विषय होना चाहिए. निम्नलिखित पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की जा सकती हैं. जेम्स येट्स द्वारा एनिमल वेल्फेयर इन वेटरेनरी प्रैक्टिस, डॉ एडवर्ड एन एडी द्वारा अंडरस्टैंडिंग एनिमल वेल्फेयर, माइकल एपल्बी, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग, यूके द्वारा एनिमल वेल्फेयर, इनग्रिड न्यूकिर्क, जीन स्टोन द्वारा एनिमल काइंड: रिमार्केबल डिस्कवरीज अबाउट एनिमल्स एंड रिवोल्यूशनरी न्यू वेस टू शो देम कंपैशन, मेनका गांधी द्वारा भारत के पशु कानून.

पूर्वा जोशीपुरा द्वारा फॉर ए मोमेंट ऑफ टेस्ट जर्नल: द वेल बींग इंटरनेशनल स्टडीज रिपॉजिटरी (एएसआर) पशु अध्ययन और पशु कल्याण विज्ञान के क्षेत्रों के भीतर विभिन्न विषयों से संबंधित शैक्षणिक, अभिलेखीय और मिश्रित अन्य सामग्रियों का एक संग्रह है. सभी पशु चिकित्सा छात्रों को अपनी छुट्टियों में हर साल किसी पशु चिकित्सा संगठन के साथ इंटर्नशिप करनी चाहिए. मैं आशा कर रही हूं कि डॉ शर्मा ये सब करेंगे. ये बहुत आवश्यक सुधार हैं जो हजारों असहाय जीवों को बचायेंगे.

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