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तृणमूल के कारण बंगाल में मजबूत हुआ आरएसएस, भाजपा के विरोध का प्रमुख चेहरा नहीं हैं ममता बनर्जी, बोलीं मालिनी

ममता अपने राजनीतिक जीवन में महज एक बार चुनाव हारी हैं. वह वर्ष 1989 में कांग्रेस के टिकट पर जादवपुर सीट से हारीं थीं.

कोलकाता : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 1989 लोकसभा चुनाव में जादवपुर सीट से हरा चुकी माकपा की पूर्व सांसद प्रोफेसर मालिनी भट्टाचार्य के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विरोध करने वाला प्रमुख चेहरा नहीं हैं. उनका मानना है कि ममता के शासन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को राज्य में बढ़ने का मौका मिला.

गौरतलब है कि ममता अपने राजनीतिक जीवन में महज एक बार चुनाव हारी हैं. वह वर्ष 1989 में कांग्रेस के टिकट पर जादवपुर सीट से हारीं थीं. प्रमुख शिक्षाविद मालिनी भट्टाचार्य मानती हैं कि ममता बनर्जी का ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा के साथ अपशब्द कहने की होड़ में शामिल होने के बावजूद आज भी आरएसएस से करीबी रिश्ता है.’

मालिनी भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल में भाजपा की लहर होने संबंधी दावे से भी सहमत नहीं हैं. उनका आरोप है कि भगवा पार्टी का राज्य में उदय तृणमूल कांग्रेस सरकार के खिलाफ भावना की वजह से हुआ है. मालिनी भट्टाचार्य को माकपा ने वर्ष 1989 में ममता बनर्जी के खिलाफ उतारा था. इससे पहले के चुनाव में ममता बनर्जी माकपा के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर से हराकर चर्चा में आयीं थी, जिसे वाम दलों का गढ़ माना जाता था.

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सुश्री भट्टाचार्य ने कहा, ‘ऐसे कुछ उग्र मित्र हैं, जो कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता भाजपा विरोध का प्रमुख चेहरा हैं और हमें उनके साथ जाना चाहिए. लेकिन, हमें नहीं भूलना चाहिए कि ‘चेहरा’ और वास्तविकता दो अलग चीजें हैं.’

उन्होंने कहा, ‘अपनी पार्टी बनाने के बावजूद वह (ममता बनर्जी) आरएसएस एवं उसके संगठनों के बहुत करीब रही हैं. मैं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार में मंत्री के रूप में उनकी भागीदारी के विषय में नहीं जाती, लेकिन यहां तक कि आज भी मोदी-शाह के साथ अपशब्द की होड़ में शामिल होने के बावजूद उनके आरएसएस के साथ करीबी रिश्ते हैं.’

मालिनी भट्टाचार्य ने कहा कि बनर्जी द्वारा पश्चिम बंगाल में विपक्ष से वाम को खत्म किये जाने से आरएसएस को बहुत फायदा हुआ. उन्होंने कहा, ‘किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी (ममता बनर्जी) राज्य में वाम विपक्ष को राजनीतिक और भौतिक रूप से खत्म करने की प्रबल इच्छा और लोकतांत्रिक संस्थानों के ध्वंस करने से राज्य में उनके शासन के दौरान आरएसएस को कई गुना बढ़ने का मौका मिला.’

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ममता के शासन में उभरा सांप्रदायिक संघर्ष

माकपा नेता का मानना है कि सांप्रदायिक संघर्ष ममता बनर्जी के शासन काल में दोबारा उभरा है, जिससे वाम मोर्चा ने कड़ाई से निबटा था. पश्चिम बंगाल महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मालिनी भट्टाचार्य ने कहा, ‘रोजगार, कृषि, शिक्षा के मामले में बनर्जी मोदी के औद्योगिक घरानों के हित साधने के रास्ते का अनुसरण कर रही हैं. वह भाजपा की तरह ही विरोधियों को नियंत्रित करने के लिए व्यवहार कर रही हैं.’

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मालिनी भट्टाचार्य का मानना है कि इस चुनाव में तीन सकारात्मक पहलुओं की वजह से वाम मोर्चा को बढ़त मिलेगी. उन्होंने कहा, ‘पहली, हमने पश्चिम बंगाल में भाजपा के खिलाफ राजनीतिक ताकतों को लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मोर्चे पर एकजुट किया है. दूसरा, युवा कार्यर्ताओं ने फासीवादी ताकतों से लड़ने की चुनौती स्वीकार की है और तीसरा हमारे कार्यकर्ताओं ने वैकल्पिक नीति के लिए स्थान बनाया है, जिसकी हम बात कर रहे हैं.’

वामदलों के समर्थन से फिर सत्ता में आयेंगी ममता!

जादवपुर विश्वविद्यालय की पूर्व शिक्षाविद ने कहा, ‘अगर वह (ममता) इस बार भी सत्ता में आती हैं, तो संभव है कि हमारे समर्थन से आयेंगी. वह वही काम करेंगी. हम निश्चित नहीं हैं कि क्या वह भाजपा के साथ दोबारा जायेंगी.’

Posted By : Mithilesh Jha

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