कोलकाता: थैलेसीमिया एक ऐसा जानलेवा रोग है, जिसका अभी तक कोई इलाज सामने नहीं आया है. यह बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है. इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं.
इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है. इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है. जानकारों के अनुसार दुनिया में थैलेसीमिया रोगियों की संख्या लगभग 15 लाख है. वहीं भारत में यह संख्या एक लाख है. पर गंभीर बात यह है कि रोजाना नौ से दस हजार थैलेसीमिया के नये मामले सामने आते हैं. रिकॉर्ड के अनुसार पश्चिम बंगाल में थैलेसीमिया रोगियों की संख्या 26 हजार के करीब है. पर सबसे गंभीर विषय यह है कि थैलेसीमिया कैरियर की संख्या तेजी से बढ़ रही है.
स्वयंसेवी संस्था मेडिकल बैंक के सचिव डी आशिष के अनुसार पश्चिम बंगाल में थैलेसीमिया कैरियर की संख्या 93 लाख है, जो राज्य की कुल आबादी का 10-15 प्रतिशत है. श्री आशिष के अनुसार कैरियर होने का अर्थ पूरी तरह रोग की चपेट में आना नही है. इस रोग की एक विशेषता यह है कि अगर मां-बाप दोनों ही में थैलेसीमिया का लक्षण हो अर्थात दोनों ही अगर कैरियर हों तभी उनका बच्चा थैलेसीमिया से ग्रस्त हो सकता है. उदाहरण के रुप में बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन थैलेसीमिया के कैरियर हैं, पर उनकी पत्नी जया बच्चन में थैलेसीमिया का कोई लक्षण नहीं है. इसलिए उनके बच्चे अभिषेक बच्चन व श्वेता नंदा इस रोग से पूरी तरह सुरक्षित हैं.
श्री आशिष के अनुसार बच्चों काे थैलेसीमिया से बचाने के लिए कैरियर टेस्ट कराना जरूरी है. इस टेस्ट को एचपीएलसी कहते हैं. बच्चा जब कक्षा पांच या छह में हो तो उस वक्त यह टेस्ट करवाना बेहतर है. इस टेस्ट से पता चल जाता है कि बच्चे में थैलेसीमिया का कोई लक्षण है या नहीं. उनका कहना है कि स्मार्टफोन लोगों को दुनिया भर की खबरों से पल-पल अपडेट कर रहा है, पर ताज्जूब की बात है कि इतने बड़े खतरे से आज की स्मार्ट जनरेशन सही से वाकिफ नहीं है. हर वक्त स्मार्टफोन लेकर घूमने वाले युवाआें में विशेष रुप से इस रोग एवं इसके टेस्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है. जागरूकता की कमी के कारण यह रोग तेजी से अपने पांव पसार रहा है.