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राज्य की स्वास्थ्य परिसेवा से डॉक्टर भी संतुष्ट नहीं हैं

डॉक्टरों व प्राइवेट अस्पतालों पर इलाज में लापरवाही व गफलत के आरोप तो रोजाना सामने आते रहते हैं. स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि प्राइवेट अस्पतालों व डॉक्टरों की लापरवाही पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार को सख्त कानून बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा है. पर मजे की बात यह है कि […]

डॉक्टरों व प्राइवेट अस्पतालों पर इलाज में लापरवाही व गफलत के आरोप तो रोजाना सामने आते रहते हैं. स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि प्राइवेट अस्पतालों व डॉक्टरों की लापरवाही पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार को सख्त कानून बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा है. पर मजे की बात यह है कि केवल आम लोग ही नहीं, स्वयं डॉक्टर भी राज्य की स्वास्थ्य परिसेवा से संतुष्ट नहीं हैं. जिसका सबूत है राज्य उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़े.
जो यह बताते हैं कि वर्ष 2011 से 2015 के बीच चिकित्सा में लापरवाही के जो 641 मामले विभाग के पास दायर किये गये हैं, उनमें से 10-15 प्रतिशत स्वयं उन डॉक्टरों ने दर्ज कराये हैं, जिनके रिश्तेदारों को कथित तौर पर दूसरे डॉक्टरों के हाथों इलाज के दौरान नुकसान उठाना पड़ा है. इलाज में लापरवाही व अधिक पैसे वसूलने का इलजाम लगानेवालों में ठाकुरपुकुर के डॉ दुर्गादास भट्टाचार्य भी शामिल हैं, जिन्होंने पित्ताशय (गाॅल ब्लाडर) के ऑपरेशन के लिए एक प्राइवेट अस्पताल में 22 हजार का पैकेज तय किया था, पर उन्हें 40 हजार का बिल थमा दिया गया. हद तो यह है कि अस्पताल ने यह नहीं बताया कि उनसे अधिक पैसे क्यों लिए जा रहे हैं. उन्होंने अलीपुर स्थित एक हार्ट अस्पताल के खिलाफ अपने पिता की इलाज में लापरवाही का मामला भी दर्ज करा रखा है. यह तालिका काफी लंबी है. पिछले पांच वर्षों में उपभोक्ता मामलों के विभाग में डॉक्टरों द्वारा इलाज में लापरवाही के दायर मामलों के आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं.
वर्ष दायर मामलों की संख्या
2011 43
2012 80
2013 142
2014 121
2015 117
2016 141

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