कोलकाता: किशोरों के मामले में हाल की घटनाएं बताती हैं कि उनमें आक्रोश व अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. छोटी-छोटी बात पर उनका हिंसात्मक हो जाना या आक्रामक हो जाना अब आम बात हो गयी है. हाल ही में नदिया में इंगलिश स्कूल में पढ़नेवाले दो किशोरों ने 150 रुपये के लिए अपने 14 साल के मित्र को मार डाला. इससे पहले पार्टी में गये कुछ किशोरों के अपने साथी पर शराब की बोतल से हमला कर हत्या करने की घटना भी चौंकानेवाली थी. ऐसी घटनाओं से जहां माता-पिता सकते में हैं, वहीं स्कूल प्रशासन भी सहमे हैं.
कई प्रिंसिपलों का कहना है कि एकाकीपन व तनाव में आकर भी बच्चे उग्र हो रहे हैं. कई बार बच्चे पीयर प्रेशर या माता-पिता की अनदेखी के कारण कुंठित होकर अपराध कर बैठते हैं. इससे सतर्क होने की जरूरत है. उनके स्कूलों में बच्चों की नियमित काउंसेलिंग की जा रही है.
वहीं मनोविज्ञानियों का मानना है कि कम से कम 15 से 20 प्रतिशत बच्चे बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर की समस्या से पीड़ित हैं. इससे उनमें एकाकीपन बढ़ता है, वे उत्तेजक बनते जाते हैं. सामाजिक मूल्यों में आ रही गिरावट या माता-पिता के एक्सट्रा मैरिटल अफेयर्स के कारण भी बच्चे आक्रामक हो रहे हैं. कुछ टीनएजर्स पीयर प्रेशर में आकर अलग-थलग (एक्सट्रा-ऑडिनरी) करने या नशे की ओर बढ़ते जा रहे हैं. इस तरह के कई मामले सामने आये हैं, जिसमें बच्चों के व्यवहार बदलने की समस्या बढ़ी है. नकारात्मक रूप से यह आक्रोश लड़के व लड़की दोनों में बढ़ रहा है. ऐसे बच्चों की काउंसेलिंग व इलाज करवाने की जरूरत है. इस विषय में जानते हैं कुछ विशेषज्ञों की राय.
बच्चे आज आक्रामक हो रहे हैं, क्योंकि उनको भरपूर स्नेह या अटेंशन नहीं मिल रहा है. उनको उपेक्षा झेलनी पड़ रही है. उन पर पढ़ाई का स्ट्रेस है, पैरेंट्स की महत्वाकांक्षाएं पूरी करने का दबाव है. इससे कुंठित होकर वे आक्रामक हो रहे हैं या गलत आदतों के शिकार हो रहे हैं. इस स्थिति में वे या तो अपने प्रति हिसांत्मक होते हैं या दूसरों के प्रति हिंसात्मक बन जाते हैं. अपने प्रति हिंसात्मक होने का मतलब है कि वे शराब, हुक्का आदि पीने लगते हैं या कोई अपराध की तरफ बढ़ने लगते हैं. बहुत जरूरी है, बच्चों के साथ क्वालिटी समय बिताना. उन्हें योग व मेडीटेशन से जोड़ने के साथ उनकी पोजेटिव एनर्जी को आउटडोर गेम्स में लगाया जाये.
एससी दूबे, ऑक्सफर्ड हाइस्कूल के रेक्टर व काउंसेलिंग ट्रेनर
पहले संयुक्त परिवार होते थे, तो बच्चों को पैरेंट्स के अलावा दादा-दादी या घर के अन्य सदस्यों का भी प्यार मिलता था. अब ऐसा माहाैल खत्म हो गया है. माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं है. दोनों इतने व्यस्त रहते हैं कि बच्चों को मेड के हवाले कर देते हैं. बच्चा घर पर या अपने रूम में क्या कर रहा है, उसको कोई देखने वाला ही नहीं है. दूसरे बच्चे डोरेमान, छोटा भीम, कार्टून फिल्म या अपने पैरेंट्स के झगड़े को देख-देखकर वही मारधाड़ व हिंसा सीख रहे हैं. सबसे चिंताजनक बात यह है कि बच्चों पर पैरेंट्स द्वारा ज्यादा मार्क्स लाने का दबाव है. वे अपने बचपन या किशोरावस्था को ठीक से इनजॉय भी नहीं कर पा रहे हैं. सुबह स्कूल, फिर ट्यूशन या अन्य कोचिंग करते-करते वे थक जाते हैं या कुंठित होने लगे हैं. उनके आक्रामक रवैये के पीछे कई कारण हैं. पति-पत्नी के रिश्ते में आ रही गिरावट का भी बच्चे पर असर पड़ रहा है. बच्चों की डाइट में जंक फूड के बढ़ने से भी उनका शारीरिक संतुलन बिगड़ रहा है. उनको प्यार के साथ काउंसेलिंग व सही देखभाल की भी जरूरत है, नहीं तो नयी पीढ़ी नशे के अंधेरे में खोती जायेगी.
डॉ संजय गर्ग, प्रसिद्ध मनोविज्ञानी, फोर्टिस हॉस्पिटल
बदलती जीवन शैली व माता-पिता का व्यस्त रहना, इसमें बहुत बड़ा कारण है. बच्चों को जिस समय प्यार या अटेन्शन की जरूरत होती है, वह उनको नहीं मिलता है. इसकी तलाश में बच्चे दूसरे विकल्प खोजने लगते हैं. दूसरे बच्चों में स्ट्रेस का स्तर भी बढ़ गया है. पैरेंट्स कई बार बच्चों पर टॉप में आने का या हाइयेस्ट अंक लाने का इतना दबाव डालते हैं कि वे कुंठित होने लगते हैं. बच्चों की भावनाओं को समझने के साथ उनकी काउंसेलिंग, उनके साथ नियमित संवाद भी होना चाहिए, ताकि वे अपनी तकलीफ शेयर कर सकें. हमारे स्कूल में प्रतिदिन इस तरह के सत्र होते हैं.
मुक्ता नैन, प्रिंसिपल, बिरला हाइ स्कूल