इस महोत्सव के आयोजन का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त व्यभिचारों-बुराईयों को दूर करना और इंसान-समाज-संसार को अपने धर्म से रू-ब-रू कराना है. आचार्यश्री का दावा है कि ‘सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति से ही संसार सभी बुराइयों से मुक्त होगा.’ जब इंसान इन तीन सद्विचारों को अपने में आत्मसात कर लेगा, सृष्टि से स्वतः ही मारकाट, हिंसा, अत्याचार, अन्याय, आतंकवाद, धोखाधड़ी, घोटाला जैसी सभी बुराइयां समाप्त हो जायेंगी और एक नयी सृष्टि का उद्भव होगा. आचार्यश्री का कहना है कि इंसान जैसा सोचता है प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से वैसा ही कर्म करता है. अगर इंसान में सद्विचार का उद्भव होगा तो उसके मन में सद्भावना और नैतिकता का सृजन होगा. साथ ही वह कर्म भी अपने सद्विचारों जैसा ही करेगा.
नशामुक्ति से इंसान केवल शारीरिक रूप से मजबूत ही नहीं बल्कि मानसिक व आर्थिक रूप से भी मजबूत होगा. शराब की लत इंसान को व्यभिचारों और मोह-माया के जाल में जिंदगी भर फंसाती चली जाती है. एक सवाल के जवाब में आचार्यश्री ने कहा कि जो धर्म का चोला पहनकर खुद को धर्मगुरु कहने का दावा करते हैं और स्वंय मोह-माया में फंसे होते हैं तो ऐसे में सच्चे धर्मगुरु की पहचान इंसान को अपने मन के विचार से करना चाहिए. सच्चे मन के विचार इंसान को सही राह और सही-गलत की असलियत से पहचान कराता है. आचार्यश्री ने धर्मगुरुओं और इंसानों को भी धर्म के नाम पर आडंबर से भी बचने की बात कही. साथ ही उन्होंने सबों को सच्चाई, इमानदारी और अहिंसा के राह पर चलने का संदेश दिया.