कोलकाता : डायलिसिस के दौरान मरीज एचआईबी व हैपेटाइटिस ए, बी जैसी जानलेवा बीमरियों से ग्रसित होने के विषय में ज्यादा जानकारी लेने के लिए हमने एसएसकेएम (पीजी) के नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो डॉ राजेंद्र पांडेय, इएनटी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ कुंतल माइती व स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी डॉ सजल विश्वास से बात की. डायलिसिस से पहले रक्त की जांच को लेकर सभी डॉक्टरों की राय एक है. प्रो डॉ राजेंद्र पांडेय को हमने जलपाईगुड़ी के सदर अस्पताल की उक्त घटना से अवगत करवाया.
इस पर उन्होंने कहा कि आम तौर पर डायलिसिस से पहले मरीज का रक्त परीक्षण किया जाता है, लेकिन नियमित रूप से डायलिसिस करवानेवाले मरीज की हर बार रक्त जांच संभव नहीं है. ऐसे मरीज की तीन महीने के अंतराल पर रक्त जांच करायी जाती है. अगर जलपाईगुड़ी सदर अस्पताल में डायलिसिस के दौरान कोई मरीज संक्रमित हुआ है, तो यह अस्पताल की बड़ी लापरवाही है. इस विषय में मरीज के परिजनों द्वारा स्वास्थ्य भवन में शिकायत दर्ज कराये जाने पर विभाग द्वारा मामले की छानबीन की जायेगी और दोषी पाये गये व्यक्ति की खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकती है.
डायलिसिस के बाद मशीन को किया जाता है जिवाणु मुक्त : पीजी अस्पताल के वरिष्ठ इएनटी सर्जन डॉ कुंतल माइती ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि हर बार डायलिसिस से पहले रक्त की जांच की जाये, क्योंकि आम तौर पर किडनी की समस्या से जूझ रहे मरीजों के जीवन के अंतिम पड़ाव में डायलिसिस किया जाता है. ऐसे अधिकतर मरीजों को सप्ताह में दो से तीन बार इस चिकित्सकीय प्रक्रिया से हो कर गुजरना पड़ता है. इस स्थिति में हर बार डायलिसिस से पहले मरीज की रक्त की जांच की जाये यह संभव नहीं, क्योंकि हर बार डायलिसिस से पहले रक्त जांच से मरीज का इलाज खर्च बढ़ जायेगा. उन्होंने बताया कि हैपेटाइटिस बी, सी व एचआईवी से संक्रमित मरीज का भी डायलिसिस किया जाता है. ऐसा नहीं है कि उक्त जानलेवा बीमारियों से ग्रसित मरीजों के डायलिसिस के लिए अलग मशीन का उपयोग किया जाता. एक ही मशीन से सभी मरीजों का डायलिसिस किया जाता है, लेकिन हर मरीज के डायलिसिस किये जाने के बाद चिकित्सकीय उपकरण व इंजेक्शन सह अन्य मशीन को जिवाणु मुक्त किया जाता है.
उन्होंने कहा कि जलपाइगुड़ी सदर अस्पताल में चिकित्सकीय उपकरणों को जिवाणु मुक्त नहीं किये जाने की स्थिति में मरीज हैपेटाइटिस व एचआईवी से संक्रमित हुए होंगे. स्वास्थ्य भवन के वरिष्ठ डॉ सजल विश्वास ने कहा कि डायलिसिस के लिए उपयोग किये जाने वाले मशीन व इंजेक्शन को विभिन्न प्रकार के केमिकल में डाल कर जिवाणु मुक्त किया जाता है. जिवाणु मुक्त करना अनिवार्य है. ऐसे नहीं करने पर डायलिसिस के बाद मरीज संक्रमित हो सकते हैं.