सिलीगुड़ी. देश में कानून का पचड़ा ऐसा है कि आमलोगों को तो छोड़िये, जानवरों तक को राहत नहीं मिलती. आलम यह है कि तस्करी के शिकार होने वाली गायों और अन्य बेजुबान मवेशियों को भी अदालत का चक्कर काटना पड़ रहा है. इस दौरान ना तो कोई उनकी देखरेख करता है और ना ही उनके खाने-पीने की कोई व्यवस्था होती है.
वो गो-भक्त भी ना जानें कहां गायब हो जाते हैं, जो आये दिन गोरक्षा के नाम पर मार-काट मचाते हैं. हम यहां उन गोवंशीय मवेशियों की बात कर रहे हैं,जिन्हें तस्करों की चंगुल से छुड़ा लिया जाता है. जुर्म के शिकार इन जानवरों को भी अदालत में पेश होना पड़ता है. सभी कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही जब्त मवेशियों को स्थायी ठिकाना मिल पाता है.
अधिकारियों का कहना है कि हम कानून के दायरे के बाहर कदम नहीं बढ़ा सकते हैं. निर्दोष जानवरों को उनके मालिक तक पहुंचाने की कानूनी प्रक्रिया में कुछ समय तो लगता ही है. लेकिन इस दौरान होनेवाली मवेशियों की फजीहत के बारे में अधिकारियों का कहना है कि कानूनी प्रक्रिया के दौरान इन मवेशियों के भोजन, देखरेख, चिकित्सा की कोई व्यवस्था सरकार की ओर से किये जाने का प्रावधान नहीं है. उत्तर बंगाल में गायों की तस्करी का मामला काफी बढ़ता जा रहा है. केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही गाय और गोमांस सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है. तस्करी की गायों की बड़े पैमाने पर जब्ती हो रही है. गायों को तस्करी से बचाने के लिये पुलिस व सीमा पर तैनात सीमा सुरक्षा बल के जवान भी पूरी ताकत लगा रहे हैं. इस दौरान आये दिन सैकड़ों की तादाद में गायों को सीमा पार पहुंचाने से बचाया जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि खेती के मशीनीकरण के बाद बैलों की जरूरत खत्म हो गयी है. बूढ़ी गायें भी पशुपालकों के लिए बोझ बन जाती हैं. फलस्वरूप इन्हें हाट, बाजार या दलालों के मार्फत बेच दिया जाता है. उत्तर बंगाल की सीमा से सटे बांग्लादेश में मवेशियों खासकर गोवंशीय पशुओं की काफी अधिक मांग है. फलस्वरूप उत्तर बंगाल के कई स्थानों सिलीगुड़ी, कूचबिहार आदि से मवेशियों को सीमापार पहुंचाये जाने का गोरखधंधा काफी फल-फूल रहा है. हालांकि मवेशियों की तस्करी को रोकने के लिए सरकार चाक-चौबंद है. पुलिस और सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों को हरसंभव प्रयास कर तस्करी पर पाबंदी लगाने का खास निर्देश केंद्र सरकार ने जारी किया है.
हाल तस्करों से छुड़ायी गयी गायों का: अब सवाल यह है कि आखिरकार इन जब्त गायों का क्या होता है? क्या इन्हें उनके असली मालिक के पास पहुंचाया जाता है, या किसी गोशाला में रखा जाता है? जिन मवेशियों की तस्करी होती है उनकी दास्तां बड़ी ही दर्दनाक है. यहां तक कहा जाता है कि जब्त पशु फिर से तस्करों के चंगुल में चले जाते हैं. सीमा सुरक्षा बल, कस्टम और स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा मवेशियों की तस्करी के खिलाफ अभियान चलाया जाता है. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) अपने दायरे के सीमांत इलाकों में ही अभियान चला सकती है. जबकि पुलिस सीमावर्ती इलाकों को छोड़कर. अधिकांश इलाकों में कार्रवाई करती है. बीएसएफ द्वारा अपने अभियान में कस्टम विभाग को शामिल किया जाता है. विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीएसएफ द्वारा जब्त मवेशियों के मामले में कस्टम एक्ट के तहत मामला दर्ज होता है, क्योंकि मवेशियों को सीमा पार पहुंचाने की कोशिश की गयी है. वहीं यदि पुलिस मवेशियों को जब्त करती है, तो गैरकानूनी रूप से मवेशियों की ढुलाई का मामला दर्ज होता है. अदालती प्रक्रिया पूरी होने के बाद जब्त मवेशियों को नीलाम कर दिया जाता है. जब्ती के तीन से चार दिन के भीतर नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है. नीलामी पूरी होने तक मवेशियों के दाना-पानी, चिकित्सा, देखरेख की कोई व्यवस्था सरकार नहीं करती है.
मिली जानकारी के अनुसार, जब्त करने के बाद अधिकारी अपने प्रयास से मवेशियों को स्थानीय किसी गोशाला में रखते हैं. नीलाम होने के बाद इन्हें खरीदने वाले नये मालिक के साथ कर दिया जाता है. यहां आशंका होती है कि नीलामी के जरिये पशु फिर तस्करों के पास न पहुंच जायें. बीएसएफ और पुलिस-प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार, नीलामी करने का अधिकार कस्टम विभाग को ही है. बीएसएफ जवान मवेशियों को पकड़कर गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ कर कस्टम या पुलिस को सौंप देते हैं. मवेशियों की नीलामी में सरकार को भी सिर्फ रुपये से मतबल है. नीलामी विज्ञापन निकलने के बाद समय सीमा के भीतर कोई भी सबसे अधिक बोली लगाकर खरीद सकता है. अपना माल वापस पाने की चाह रखने वाले तस्कर भी इन मवेशियों को नीलामी से खरीद सकते हैं. हालांकि अधिकारियों का कहना है कि ऐसा करने पर तस्करों को लाभ की संभावना नहीं के बराबर है.
शुक्रवार रात भी 12 मवेशी बरामद: शुक्रवार की रात भी सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कमिश्नरेट के भक्तिनगर थाना अंतर्गत आसीघर पुलिस चौकी इलाके से 12 गाय को बरामद किया गया है. आसीघर पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार जलेश्वरी बाजार इलाके में रात से कुछ लोग इन मवेशियों को गाड़ी में लाद रहे थे. उसी समय बाजार की सुरक्षा के लिये तैनात सुरक्षा कर्मी की नजर उन पर पड़ी. उसने शोर मचाया और उनकी ओर बढ़े. अपनी जान आफत में देखकर मवेशियों को लादने वाले अज्ञात लोग गायों को छोड़ गाड़ी लेकर फरार हो गये. इसके बाद सुरक्षा कर्मी ने पुलिस को जानकारी दी. जानकारी मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और गायों को कब्जे में ले लिया. शनिवार को इन सभी गायों को अदालत में पेश कर दिया गया.
क्या होता है गिरफ्तार तस्करों का : विभागीय अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार मवेशियों के साथ तस्कर गिरोह के सरगना की गिरफ्तारी काफी कम ही होती है. अभियान में गाड़ी चालक, खलासी या मजदूर ही गिरफ्त में आते हैं. जब्त पशुओं को अदालत में पेश करना तो कठिन है, इसलिए मवेशियों की फोटो लेकर अदालत में जमा करायी जाती है. इस तरह के मामले में गिरफ्तार लोगों की अपराध में भागीदारी को देखकर ही अदालत उनकी सजा या जुर्माना मुकर्रर करती है. गैरकानूनी रूप से मवेशियों की ढुलाई मामले में अदालत पशुओं को उनके असली मालिक तक पहुंचाने की कोशिश करती है. लेकिन इस अवैध कार्य में मालिक की भागीदारी प्रमाणित होने पर उन्हें भी जुर्माना भरना होता है.