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युवा भी हो रहे प्रोस्टेट कैंसर के शिकार

कोलकाता: प्रोस्टेट कैंसर पश्चिमी देशों में सर्वाधिक पहचाने जानेवाले कैसर में से एक है, लेकिन भारत में इसकी पहचान में अक्सर देरी हो जाती है, क्योंकि रोगी चिकित्सक के पास तभी जाते हैं, जब इसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं. 10 में से 9 मामलों में जल्दी पता लगने पर इलाज से लंबे समय तक […]

कोलकाता: प्रोस्टेट कैंसर पश्चिमी देशों में सर्वाधिक पहचाने जानेवाले कैसर में से एक है, लेकिन भारत में इसकी पहचान में अक्सर देरी हो जाती है, क्योंकि रोगी चिकित्सक के पास तभी जाते हैं, जब इसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं. 10 में से 9 मामलों में जल्दी पता लगने पर इलाज से लंबे समय तक के लिए बीमारी से निजात मिल सकती है, लेकिन शीघ्र पहचान के लिए बीमारी के बारे में और उसकी स्क्रीनिंग के तौर-तरीकों के बारे में जागरूकता काफी महत्वपूर्ण है. पहले 60-65 साल के वृद्ध में प्रोस्टेट कैंसर के मामले सामने आते थे, लेकिन अब 30 से 35 साल के युवा भी इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं.
अपोलो ग्लिनेगालेस हॉस्पिटल कोलकाता के यूरोलोजिस्ट डॉ चंचल गोस्वामी बताते हैं कि जीवन शैली में बदलाव आने से भारत में प्रोस्टेट कैंसर की दर में भी तेजी से वृद्धि हो रही है, लेकिन इसके प्रति जागरूकता के स्तर में इस दर से वृद्धि नहीं हुई है. लगभग 70 प्रतिशत प्रोस्टेट कैंसर की पहचान 65 वर्ष की आयु से अधिक उम्र के पुरुषों में की जा रही है. प्रोस्टेट कैंसर भारतीय पुरुषों में दूसरा सबसे आम कैंसर है. पहला नंबर फेफड़ों के कैंसर का है. यह मौत का छठा सबसे आम कारण है.
अपोलो ग्लिनेगालेस हॉस्पिटल कोलकाता के यूरोलोजिस्ट डॉ अमित घोष का कहना है कि हमने हृदय रोगों और मधुमेह पर जागरूकता के बारे काफी कुछ सुना है, लेकिन प्रोस्टेट कैंसर के बारे में अधिक बात नहीं की गयी है. भारतीयों में कैसर के प्रारंभिक लक्षणों की उपेक्षा करने या गलत समझने की प्रवृत्ति होती है, जिसके कारण इसकी पहचान और इलाज में देरी हो जाती है और दवाइयों का प्रभाव कम हो जाता है. वह समय दूर नहीं है, जब प्रोस्टेट कैंसर भारत में पुरुषों में सबसे आम कैंसर हो जायेगा. यदि 65 साल से अधिक उम्र के किसी पुरुष को बार-बार विशेष रूप से रात में पेशाब करने की जरूरत महसूस हो, मूत्र धारा कमजोर या बाधित हो और मूत्र या वीर्य में खून हाता हो, तो इन लक्षणों को गंभीरता से लेने की जरूरत है. इन लक्षणों को प्रोस्टेट कैंसर के सबसे प्रमुख संकेत के रूप में माने जाने के बावजूद इनकी अक्सर अनदेखी की जाती है और बुढ़ापे को दोषी ठहराया जाता है.

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