केवल बातचीत से नहीं, बल्कि कार्यों से आगे बढ़ना जरूरी है. माकपा को छोड़ कर वामपंथी दलों की एकजुटता संभव नहीं है. शायद वे भी उपरोक्त मसले पर ध्यान दें. सभा मेें भाकपा (माले) पोलित ब्यूरो के सदस्य कार्तिक पाल, राज्य कमेटी के सचिव पार्थ घोष, भाकपा के राज्य सचिव प्रबोध पांडा, आरएसपी के मनोज भट्टाचार्य, फारवर्ड ब्लॉक के हाफिज आलम सैरानी, एसयूसीआइ के राज्य सचिव सोमेन बसु, सीपीआरएम के गोविंद छेत्री व अन्य मौजूद थे.
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कांग्रेस से तालमेल का मामला. माकपा पर भड़के दीपंकर, वामदलों की एकजुटता पर ध्यान जरूरी
कोलकाता: वामपंथ और वामपंथी दलों का विस्तार अचानक नहीं हुआ है, लेकिन मौजूदा समय में स्थिति अचानक विपरीत कैसे हो गयी? दक्षिणपंथी राजनीति की वजह से केवल बंगाल ही नहीं पूरे देश की स्थिति विषम क्यों होती जा रही है? वामपंथी दलों की जड़ें कमजोर क्यों हो रही हैं? इसकी वजह है कुछ वर्षों में […]
कोलकाता: वामपंथ और वामपंथी दलों का विस्तार अचानक नहीं हुआ है, लेकिन मौजूदा समय में स्थिति अचानक विपरीत कैसे हो गयी? दक्षिणपंथी राजनीति की वजह से केवल बंगाल ही नहीं पूरे देश की स्थिति विषम क्यों होती जा रही है? वामपंथी दलों की जड़ें कमजोर क्यों हो रही हैं? इसकी वजह है कुछ वर्षों में कई वामपंथी दल अपनी नीतियों से भटक गये हैं. सुधार संभव है. यानी वोट बैंक पर ज्यादा ध्यान देने की जगह एकजुटता पर वामपंथी दलों को ध्यान देना ज्यादा जरूरी है.
ये बातें भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने बुधवार को कहीं. वह महानगर में पार्टी द्वारा आयोजित एक सभा को संबोधित कर रहे थे. श्री भट्टाचार्य ने कहा कि आर्थिक उदारवादी नीति के लगभग 25 वर्ष पूरे हो गये हैं. आर्थिक नीति में दक्षिणपंथी राजनीति की भावना ही मिलेगी. निजी कंपनियों को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचे, श्रमिक व मजदूर वर्ग के हितों की अनदेखी उक्त भावना में शामिल होना संभव है. ऐसी भावना यदि वामपंथी दलों की हो जायेगी, तब समस्या लाजमी है. बंगाल में ऐसा ही हुआ. नंदीग्राम और सिंगूर की घटना शायद इसके उदाहरण हो सकते हैं. राज्य में अब ये हालत हैं कि वामपंथी दलों को मुख्य विपक्षी के दरजे से भी महरूम होना पड़ा है. श्री भट्टाचार्य ने माकपा पर अप्रत्यक्ष कटाक्ष करते हुए कहा कि सत्ता पाने की कवायद व वोट बैंक के आंकड़े में बढ़ोतरी करने की कोशिश ही संभवत: वह कारण है, जब राज्य में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से तालमेल का फैसला किया गया. तालमेल का विपरीत नतीजा का पता, तो विधानसभा चुनाव के परिणाम की घोषणा के बाद चल गया. वामपंथी दलों को वामपंथ को याद रखते हुए आगे बढ़ना होगा. राज्य की मौजूदा विपरीत परिस्थिति से निबटने के लिए जनहित और वामपंथी आंदोलन पर जोर देना होगा. आंदोलन का वातावरण तैयार हो गया है.
माकपा के रवैये से कई वाम दल खफा
कोलकाता. एक बार फिर कांग्रेस से तालमेल पर माकपा के रवैये को लेकर वाममोरचा में शामिल कई घटक दलों के नेताओं का गुस्सा फूट पड़ा. इसमें आरएसपी, फारवर्ड ब्लॉक व अन्य वामपंथी दल हैं. बुधवार को देश और राज्य की मौजूदा स्थिति पर भाकपा (माले) की सभा में माकपा को छोड़ वाममोरचा में शामिल अन्य घटक दलों को आमंत्रित किया गया था. कई नेताओं ने सभा के दौरान कांग्रेस से तालमेल पर जोर दिये जाने के माकपा के फैसले को गलत करार दिया. आरएसपी के नेता मनोज भट्टाचार्य ने कहा कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से तालमेल करने का फैसला सही नहीं था. पार्टी ने इसका विरोध किया था, लेकिन दुर्भाग्यवश तालमेल टल नहीं पाया. चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो गया कि वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस की नीति समान नहीं हो सकती और लोग भी इसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर पाये. वाममोरचा में शामिल कई घटक दलों के नेताओं ने किसी भी वामपंथी आंदोलन में कांग्रेस के साथ पर सहमति नहीं जतायी है.
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