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यह जीवन ठाकुर की कृपा का फल: मृदुलकांत शास्त्री

कोलकाता : ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे. ऋषभदेव ने संन्यास लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया था. करोड़ों वर्षों तक धर्मपूर्वक शासन करने के बाद उन्होंने राजपाट पुत्रों को सौंप कर वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण किया तथा भगवान की भक्ति में जीवन बिताने लगे. एक बार नदी में बहते हिरण […]

कोलकाता : ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे. ऋषभदेव ने संन्यास लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया था. करोड़ों वर्षों तक धर्मपूर्वक शासन करने के बाद उन्होंने राजपाट पुत्रों को सौंप कर वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण किया तथा भगवान की भक्ति में जीवन बिताने लगे. एक बार नदी में बहते हिरण को बचाकर वह उसका उपचार करने लगे. धीरे-धीरे वह हिरण के मोह में पड़ गये. हिरण के मोहन में पड़ने के कारण उन्होंने अगले जन्म में मृगयोनि में जन्म लिया. मृगयोनि में जन्म लेने पर भी उन्हें पुराने पुण्यों के कारण अपने पूर्वजन्म का भान था. अत: इस योनि में भी वह भगवान का ध्यान करते रहे.
अगले जन्म में उन्होंने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया. पुराने जन्मों की याद होने से इस बार वह संसार से पूरी तरह विरक्त रहें. उनकी विरक्ति के कारण लोग उन्हें पागल समझने लगे और उनका नाम जड़भरत पड़ गया. जड़भरत के रूप में वह जीवनपर्यन्त भगवान की आराधना करते हुए अंतत: मोक्ष को प्राप्त हुए. हमारे जीवन में जो हर दिन नया आ रहा है उसके लिए हम ठाकुर को धन्यवाद दें. क्योंकि यह जीवन उनकी कृपा का फल है.
ये बातें आनंदलोक अस्पताल के तत्वावधान में श्रीमदभागवत कथा पर प्रवचन करते हुए आचार्य मृदुलकांत शास्त्री ने सॉल्टलेक के बिग बाजार स्थित मेवाड़ बैंक्वेट में कही. मालूम हो कि इस कथा का आयोजन आनंदलोक द्वारा राजारहाट न्यूटाउन में 180 कट्ठा भूखंड पर बनने वाले अत्याधुनिक अस्पताल के निर्माण हेतु किया जा रहा है.
इस अवसर पर श्रद्धालुओं का स्वागत करते हुए आनंदलोक के ट्रस्टी व संस्थापक देवकुमार सराफ ने कहा कि ठाकुर की कृपा का फल है आनंदलोक. यह देखते हुए प्रसन्नता हो रही है कि समाज द्वारा आनंदलोक की सामाजिक सेवाओं की स्वीकृति मिल रही है. कार्यक्रम का संचालन पत्रकार प्रकाश चंडालिया ने किया. इस अवसर पर अशोक दीवान, संयुक्ता झांझड़िया, विश्वनाथ भुवालका, रमेश नांगलिया, सुरेंद्र बजाज सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे.

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