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ठंड में उभरती हैं सांस की बीमारियां

कोलकाता : ठंड के मौसम में बहुत सारे लोगों को ठंड आैर खांसी की शिकायत के कारण बार-बार अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं. एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कोलंबिया एशिया अस्पताल के विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ अरूप हाल्दर ने बताया कि ठंड के मौसम में फेफड़े या सांस की बीमारी आम हो जाती है. अस्थमा, […]

कोलकाता : ठंड के मौसम में बहुत सारे लोगों को ठंड आैर खांसी की शिकायत के कारण बार-बार अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं. एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कोलंबिया एशिया अस्पताल के विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ अरूप हाल्दर ने बताया कि ठंड के मौसम में फेफड़े या सांस की बीमारी आम हो जाती है.
अस्थमा, सीआेपीडी, नाक में होनेवाली एलर्जी, ब्रोंकाइटिस जैसे सांस के रोग ठंड में तेजी से बढ़ते हैं. धूल, धुंआ आैर कोहरे के कारण ठंड के मौसम में एलर्जी बढ़ जाती है. साथ ही इन्फ्लूएंजा जैसा वाइरस भी इस मौसम में बेहद सक्रिय हो जाता है. कंबल, तकिये एवं अन्य गरम कपड़ों में मौजूद जीवाणु जब सांस के संपर्क में आते हैं तो इससे एलर्जी की प्रतिक्रिया बढ़ती है. डॉ हाल्दर ने बताया कि अस्थमा भी मूल रूप से फेफड़ों की एक एलर्जी है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपना शिकार बना लेता है.
क्रोनिक ऑब्स्ट्रेक्टिव पलमोनरी रोग (सीआेपीडी) भी हवा से होनेवाला एक प्रतिरोधी रोग है, जो अधिकतर 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाता है. फेफड़े के रोगों के मुख्य लक्षण सांस लेने में दिक्कत, सूखी खांसी, घरघराहट, सीने में जकड़न इत्यादि हैं. ऐसे लक्षण दिखायी देने पर फौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. इन रोगों के उपचार का मुख्य आधार इनहेलर है जो सीधे काम करते हैं.
सही जगह तक दवा पहुंचाने के लिए उचित इनहेलेशन तकनीक बेहद जरूरी है. इन रोगों पर नियंत्रण के लिए सही इनहेलर व सही तकनीक का चयन महत्वपूर्ण है. डॉ हल्दार ने कहा कि ठंड का मौसम शुरू होने से पहले इन्फ्लूएंजा का टीका लेना चाहिए. कुछ सावधानियां ठंड के मौसम में होनेवाली दिक्कतों से बचा सकती हैं.
बुखार को हल्के में न लें
बदलते मौसम में बुखार को डॉक्टर समझ पाते, इससे पहले देर हो चुकी होती है. बुखार के साथ अन्य बीमारियां मरीज के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं. इसलिए डॉक्टर मरीजों व उनके परिजनों को चेतावनी दे रहे हैं कि बुखार को इतने हलके में न लें. सरकारी अस्पतालों में बुखार व बुखार के कारण पैदा हो रहीं अनेक बीमारियों के केस बहुत बढ़ रहे हैं.
एनआरएस अस्पताल के डॉक्टर उमेश दत्त का कहना है कूड़ा ले जानेवाली गाड़ी पूरी तरह खुली होती है. यहां तक कि कूड़ाघर भी खुला पड़ा रहता है. वहां से मच्छर, मक्खियां और सड़ते कूड़े की जहरीली गैस बीमारी पैदा कर रही हैं. यह स्थिति शहर के बाहर नहीं, बल्कि हमारे मुहल्ले या कॉलोनी के अंदर भी होती है. बीमारी पर काबू पाने के लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा.
थोड़ी लापरवाही भी भारी पड़ सकती है. उन्होंने कहा कि बुखार या अन्य बीमारी लिए केवल मच्छर के काटने से नहीं, बल्कि दूषित पानी और दूषित वातावरण से भी सावधान रहने की जरूरत है. बुखार पांच-छह दिन लगातर रहने पर डेंगू या वायरल हेपेटाइटिस हो सकता है. सिरदर्द, हड्डी और जोड़ों में दर्द, आंखों में दर्द, मिचली आना, उल्टी होना, स्किन पर चकत्ते या रैश होना, खून के चकत्ते दिखना इत्यादि इसके लक्षण हैं.

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