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प्रणब करेंगे शक्ति की अराधना

कोलकाता: कभी कांग्रेस के चाणक्य कहे जानेवाले प्रणब दादा आज कामयाबी की शिखर पर हैं. आज प्रणब मुखर्जी देश के सबसे सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति के पद की शोभा बढ़ा रहे हैं. प्रणब मुखर्जी की प्रखर बुद्धि व उनके वाकपटुता (बोलने की कुशलशैली) से पूरा देश परिचित है, लेकिन उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू […]

कोलकाता: कभी कांग्रेस के चाणक्य कहे जानेवाले प्रणब दादा आज कामयाबी की शिखर पर हैं. आज प्रणब मुखर्जी देश के सबसे सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति के पद की शोभा बढ़ा रहे हैं.

प्रणब मुखर्जी की प्रखर बुद्धि व उनके वाकपटुता (बोलने की कुशलशैली) से पूरा देश परिचित है, लेकिन उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू के बारे में कम ही लोग जानते होंगे कि वर्ष में एक बार वह पुरोहित की भूमिका में भी होते हैं. उनके माथे पर चंदन व बदन पर धोती व गमछा होता है. जी हां, शारदिया नवरात्र यानी बंगाल के प्रसिद्ध उत्सव दुर्गा पूजा के दौरान वह उपवास ही नहीं रहते, बल्कि इस दौरान वे देवी दुर्गा की अराधना चंडी पाठ से करते हैं. पूजा के लिए राष्ट्रपति दिल्ली से विशेष विमान पहले कोलकाता पहुंचे. राज्यपाल एमके नारायणन, राज्य के योजना क्रियान्वयन मंत्री रछपाल सिंह सहित अन्य ने राष्ट्रपति की हवाई अड्डे पर स्वागत किया. उसके बाद वह अपने पैतृक गांव के लिए रवाना हो गये. राष्ट्रपति के पूजा के मद्देनजर उनके गांव में सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की गयी है.

इस दौरान दादा के गांव मिराटी में उत्सव का माहौल होता है. मिराटी में ही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का जन्म हुआ था. यहीं से उन्होंने अपनी जिंदगी के सफर की शुरुआत की थी. प्रणब दा चाहे रक्षामंत्री रहे हों या फिर वित्त मंत्री या फिर अब राष्ट्रपति, वे हर दुर्गा पूजा के दौरान अपने गांव आना नहीं भुलते. जानकारी के अनुसार 10 अक्तूबर को राष्ट्रपति अपने गांव पहुंच रहे हैं. प्रशासनिक अमला भी राष्ट्रपति के आगमन को लेकर चाक चौबंद व्यवस्था में जुट गया है.

मिराटी गांव में दुर्गा पूजा दोहरी खुशी लेकर आती है. इस दौरान मिराटीवासियों को मां की आराधना के साथ ही अपने होनहार सपूत पल्टू के दीदार का मौका भी मिल जाता है. मिराटी के साथ दादा को भी इस मौके का बेसब्री से इंतजार होता है. इस दौरान वह गांव के लोगों व सगे-संबंधियों से मिल पाते हैं. भारी व्यस्तता के बीच राष्ट्रपति यहां तीन से चार दिन बिताते हैं. 1896 में प्रणब के पूर्वजों ने इस पूजा की शुरुआत की थी. श्री मुखर्जी से पहले उनके पिता कामदा किंकर मुखोपाध्याय अपने पुरखों की परंपरा का निर्वाह करते रहे, लेकिन उनके स्वर्गवास के बाद अब प्रणब मुखर्जी खुद अपने इस खानदानी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं. राष्ट्रपति के सांसद पुत्र अभिजीत मुखर्जी बताते हैं कि पिछले 118 वर्षो से उनके घर पर दुर्गा पूजा होती आ रही है.

घर की परंपरा के अनुसार पूजा में चंडी पाठ घर के सबसे बड़े सदस्य ही करते हैं. वह बताते हैं कि इस बार उनके पिता व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 10 अक्तूबर यानी महाषष्ठी के दिन मिराटी पहुंचेंगे. इसी दिन से उनके उपवास की शुरुआत होगी, जो 14 अक्तूबर तक चलेगा. इस दौरान वह प्रत्येक दिन चंडी पाठ व शुभ मुहूर्त के अनुसार शक्ति पूजा करेंगे. अभिजीत बताते हैं कि पिता के बाद वह खुद इस परंपरा को आगे बढ़ायेंगे. उन्होंने बताया कि बिपतरन बनर्जी इस मंदिर में साल भर पूजा करते हैं. दुर्गा पूजा के दौरान वह ही पिता की शक्ति पूजा में सहायता करते हैं. प्रणब मुखर्जी के पिता कामदा किंकर मुखोपाध्याय स्वतंत्रता सेनानी और टीचर थे.

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला कोलकाता से करीब 170 किलोमीटर दूर है, इस जिले को शांति निकेतन के लिए भी जाना जाता है. शांति निकेतन जो कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर का सबसे पसंदीदा स्थान रहा, इसी शांति निकेतन से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर प्रणब मुखर्जी का गांव मिराटी है.

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