गौरतलब है कि कांग्रेस का एक वर्ग जोर शोर से वाम दलों के साथ हाथ मिलाने की वकालत कर रहा है. इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए श्री भुंइया ने कहा कि वाममोरचा के 34 वर्षो के शासन काल में हम पर बेहद अत्याचार किया गया. इसके बावजूद कुछ नेताओं द्वारा माकपा व अन्य वाम दलों से हाथ मिलाने का प्रस्ताव पेश किये जाने से मैं बेहद आश्चर्यचकित हूं. यह नहीं हो सकता. मैं इस प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करता हूं. उन्होंने कहा कि अगर पार्टी के कुछ नेता इस नीति को अपनाने पर यकीन रखते हैं तो ऐसे में मानस भुंइया को भी यह सोचना पड़ेगा कि वह कांग्रेस में रहेंगे या नहीं.
2009 के लोकसभा चुनाव एवं 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल के साथ हुए गठबंधन के रास्ते पर फिर से चलने की वकालत करते हुए श्री भुंइया ने कहा कि अगर आने वाले दिनों में भाजपा से लड़ने के लिए कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस आपस में हाथ मिलाते हैं तो ऐसी स्थिति में तृणमूल अछूत कैसे हो सकती है. उन्होंने कहा कि 2011 में हम लोगों ने 41 सीटें जीती थी, जो अब घट कर 31 रह गयी है. इस स्थिति में पार्टी कार्यकर्ता बेहद निराश हैं. बड़े नेता और आम कार्यकर्ता बड़ी संख्या में पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं. बर्दवान में हमारे मजबूत स्तंभ रवींद्रनाथ चट्टोपाध्याय हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर चले गये. हम लोग उनकी मुसीबत की घड़ी में उनका साथ नही दे पाये.