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न्यायालय न्यायाधीश दो अंतिम

पीठ ने कहा, ” निजता का कुछ तो सम्मान किया जाना चाहिए और अगर सूचना प्रकट की जाती है, तो यह सिलसिला नहीं रुकेगा।” शीर्ष अदालत ने कहा, ” आज वह चिकित्सा खर्च के बारे में जानकारी मांग रहे हैं. कल वे पूछेंगे कि न्यायाधीशों के लिए कौन सी दवा खरीदी गई। जब उन्हें दवाओं […]

पीठ ने कहा, ” निजता का कुछ तो सम्मान किया जाना चाहिए और अगर सूचना प्रकट की जाती है, तो यह सिलसिला नहीं रुकेगा।” शीर्ष अदालत ने कहा, ” आज वह चिकित्सा खर्च के बारे में जानकारी मांग रहे हैं. कल वे पूछेंगे कि न्यायाधीशों के लिए कौन सी दवा खरीदी गई। जब उन्हें दवाओं की सूची दी जायेगी तब वे यह जानकारी जुटायेंगे कि न्यायाधीश कौन सी बीमारी से पीडित हैं. यह इस तरह से शुरु होगा। यह कहां जाकर रुकेगा।” शीर्ष अदालत आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की ओर से उच्च न्यायालय की खंडपीठ के 17 अप्रैल के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। इसने एकल पीठ के उस आदेश को बरकरार रखा कि न्यायाधीशों और उनके परिवारों के चिकित्सा बिल की अदायगी के बारे में जानकारी सूचना के अधिकार के तहत प्रकट नहीं की जा सकती है.एकल पीठ ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस निर्देश को निरस्त कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि न्यायाधीशों को ऐसी सूचनाएं प्रकट करनी चाहिए.शीर्ष अदालत ने वकील प्रशांत भूषण की उस दलील से असहमति व्यक्त की कि नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सार्वजनिक धन का अन्य लोक सेवकों द्वारा किस तरह से उपयोग किया जा रहा है, उन्हें यह भी जानने का हक है कि इन कोषों का न्यायाधीशों की चिकित्सा में किस प्रकार से खर्च किया जा रहा है.

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