कोलकाता. युवावस्था तपने के लिए है, जो तपेगा, वह बढ़ेगा. जिस कुल में तप करने की परंपरा होती है, उसी की कुल की कृति युगों-युगों तक गायी जाती है. जो विकारों से बना है, वह निर्विकारी नहीं हो सकता. मनुष्य का शरीर विकारों से निर्मित है और परमात्मा निर्विकारी है. स्वभाव की दरिद्रता सबसे बड़ा दुख है और संत मिलन से बड़ा कोई सुख नहीं है. पति-पत्नी एक इकाई है और पत्नी, पति की आत्मा है. जीव की निष्ठा अपरिवर्तनीय होनी चाहिए. निष्ठा से ही प्रतिष्ठा मिलती है. जिसकी इस लोक में प्रतिष्ठा है, उसी की परलोक में प्रतिष्ठा है. समर्पण रखें और आकांक्षा न हो तो वह सबका परम प्रिय हो जाता है. पूजा अकेले नहीं करनी चाहिए. पूजा सदैव परिवार के साथ करनी चाहिए. सेवा का फल अवश्य प्राप्त होता है और परहित से बड़ा कोई धर्म नहीं है. यह बातें शनिवार को श्याम गार्डन में आयोजित रामकथा के अष्टम सत्र के दौरान भक्तों को संबोधित करते प्रेम भूषण महाराज ने कहीं. इस अवसर पर दैनिक यजमान दीपक मिश्रा, प्रकाश चंद्र दूबे, शंकर लाल अग्रवाल, सिवान के विधायक राम नारायण मांझी, कमला पति मिश्रा, अतुल डालमिया, स्वामी गोपाल ब्रह्मचारी, चंद्र भूषण मिश्रा, उमेश राय, त्रिभुवन कुमार मिश्रा, राजकुमार बर्नवाल, अनिरुद्ध सिंह को सम्मानित किया गया. मुख्य यजमान के रूप में पंडित शिवजी तिवारी व उनकी पत्नी भागीरथी देवी सहित अन्य गणमान्य उपस्थित थे. कार्यक्रम को सफल बनाने में अशोक ठाकुर, ओम प्रकाश मिश्रा, धर्मपाल मिश्रा, दया कुमार लिम्मा, डॉ राजेश पांडेय, रामचंद्र जायसवाल, राजेंद्र तिवारी व मुन्ना तिवारी सक्रिय रहे. मंच का संचालन वीरेंद्र शर्मा ने किया.
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युवावस्था तपने के लिए है : प्रेम भूषण महाराज
कोलकाता. युवावस्था तपने के लिए है, जो तपेगा, वह बढ़ेगा. जिस कुल में तप करने की परंपरा होती है, उसी की कुल की कृति युगों-युगों तक गायी जाती है. जो विकारों से बना है, वह निर्विकारी नहीं हो सकता. मनुष्य का शरीर विकारों से निर्मित है और परमात्मा निर्विकारी है. स्वभाव की दरिद्रता सबसे बड़ा […]
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