रानाघाट के ‘कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मेरी’ स्कूल में शनिवार की काली रात को 72 वर्षीया ‘तपस्विनी’ के साथ कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा जो कुकृत्य किया गया, वह भारतीय संस्कृति और हमारे सनातन-संस्कारों को मलिन करनेवाली घटना है. अत: हर हाल में इसकी निंदा होनी चाहिए, यह सोच कर ही हमारा सिर लज्जा से धंस जाता है कि ठाकुर रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की जिस जन्मभूमि को संसार पवित्र व सुसंस्कारित मानता आया है, वह आज कहां है? उसकी अब ना पवित्रता बच पायी है, ना कोई मानवीय गरिमा. ऐसे में बंग-भूमि के सभ्य समाज को यह बार-बार सोचना पड़ेगा कि इन घृणित कार्यों को अंजाम देनेवालों को किस तरह विवेकशील बनाया जाये कि ऐसे कुकर्मों को करने से वे खुद बाज आएं, समाज से डरें, लोक-लाज को मानें और इनसानियत को किसी हाल में मिटने ना दें.यह गुहार सिर्फ मेरी नहीं, उन हजारों लोगों की भी है, जो सोमवार 16 मार्च को महानगर कोलकाता के ‘एलेन पार्क’ में एकत्रित होकर अपनी नानी-दादी की उम्र की नन के साथ हुए कुकृत्य का विरोध कर रहे थे. हम सबके हाथ की जलती मोमबत्तियां इस बात का प्रतीक बन गई थीं कि हम देश के ऐसे लोग हैं, जो किसी भी महिला के साथ हुए दुर्व्यवहार का खुल कर विरोध करते हैं और ऐसे कुकृत्य करने की मंशा रखनेवालों को उससे बाज आने को आगाह करते हैं. कथाकार सुरेश शॉ, कोलकाता
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पाठकमत — कुकर्म से बाज आयें
रानाघाट के ‘कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मेरी’ स्कूल में शनिवार की काली रात को 72 वर्षीया ‘तपस्विनी’ के साथ कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा जो कुकृत्य किया गया, वह भारतीय संस्कृति और हमारे सनातन-संस्कारों को मलिन करनेवाली घटना है. अत: हर हाल में इसकी निंदा होनी चाहिए, यह सोच कर ही हमारा सिर लज्जा से धंस […]
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