नयी दिल्लीः जनप्रतिनिधि कानून 8(4) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त करने के बाद अब कई पार्टियों के नेताओं पर गाज गिर सकती है. भाजपा- कांग्रेस समेत कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओं पर आपराधिक मामले अदालत में चल रहे हैं.एक आकड़े के अनुसार भारत के लगभग 31 प्रतिशत नेताओं पर आपराधिक मामले लंबित है. एडीआर के अनुसार 1448 विधायक, सांसद एवं विधान परिषद के खिलाफ मामला अभी कोर्ट में है.
इन्होंने चुनाव आयोग को दिये हलफनामे में इन मामलों का जिक्र भी किया है. इस से संबंधित पूरीरिपोर्ट राष्ट्रपति चुनाव के वक्त जारी की गई थी. एनईडब्ल्यू और एडीआर ने कुल 4835 सदस्यों की ओर से दाखिल हलफनामों का अध्ययन किया था. इनमें 772 सांसद और सभी राज्यों के 4063 विधायक और विधान परिषद सदस्य शामिल थे. अध्ययन में खुलासा हुआ कि 1448 के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. ये कुल 4835 का 31 फीसदी है.
1448 में से 641 के खिलाफ हत्या,हत्या की कोशिश,बलात्कार,डकैती,अपहरण और फिरौती जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं. छह सांसदों,विधायकों और विधान परिषद सदस्यों ने हलफनामों में रेप के आरोपों का जिक्र किया है. 141 विधायकों,सांसदों और विधान परिषद सदस्यों पर हत्या के आरोप हैं. 352 पर हत्या की कोशिश के,145 पर चोरी के,90 पर अपहरण के और 75 पर डकैती के आरोप हैं.सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगर इन विधायकों, सांसदों और विधान परिषद के सदस्यों के लंबित मामले का फैसला उनके खिलाफ आता है तो उन्हें न सिर्फ सदस्यता गंवानी पड़ेगी बल्कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा.
जनप्रतिनिधियों पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने सांसद, विधायको की सदस्यता पर आज अहम फैसला किया है.सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधि कानून 8 (4) को निरस्त कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट नेइस कानून को निरस्त करते हुयेकहाकिसांसद या विधायक के दोषी पाये जाने पर उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी. इसके साथ ही दो साल से ज्यादा सजा होने वाले जनप्रतिनिधि को अयोग्य करार दिया जाएगा.
ये प्रावधान उन मामलों के लिए है जहां सांसद या विधायक या किसी अन्य जनप्रतिनिधि को दो साल से ज्यादा की सजा सुनाई जाएगी. ये फैसला आज से ही लागू हो गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला केवल आज के बाद सामने आने वाले दोषी सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों में लागू होगा. जिन सांसदों और विधायकों ने अदालत में अपील दे रखी है, उन पर ये फैसला लागू नहीं होगा.
पहले कानून के मुताबिक अगर किसी भी सांसद या विधायक को सजा मिलती थी तो उसे सजा के फैसले को चुनौती देने के लिए तीन महीने का वक्त दिया जाता था और उसकी सदस्यता तब तक बरकरार रहती थी जब तक सुप्रीम कोर्ट उस पर अपना आखिरी फैसला न सुना दे या फिर उसका कार्यकाल पूरा न हो जाए. जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(4) के तहत उसे ये छूट मिलती थी लेकिन कोर्ट ने इस धारा को निरस्त कर दिया है.
अब तक के कानून के मुताबिक अगर किसी भी सांसद या विधायक को सजा मिलती है तो उसे उस फैसले को चुनौती देने के लिए तीन महीने का वक्त दिया जाता है. और उसकी सदस्यता तब तक बरकरार रहती है जब तक सुप्रीम कोर्ट उस पर अपना आखरी फैसला न सुना दे या फिर उनका कार्यकाल पूरा हो जाए. जबकी अगर कोई आम आदमी को दो साल से ज्यादा की सजा मिलती है तो उसे चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी जाती.
वो अपनी सजा काटने के छह साल बाद ही चुनाव लड़ सकता है. एक जनहित याचिका में मांग की गई है कि अगर कोई सांसद या विधायक को किसी अदालत से सजा मिलती है तो उसकी सदस्यता फौरन खत्म होनी चाहिए. कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग से सहमति जताते हुए उसके फेवर में फैसला दिया है.