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जमीन है, रुपये नहीं सरकार बनायेगी आवास

कोलकाता: शहरों में बस्तियों व स्लमों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर जवाहरलाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनएआरएम) योजना के तहत बस्ती स्लम विकास योजना (बीएसयूपी) शुरू की गयी है. शहरी विकास विभाग के अधीन विभिन्न नगरपालिका व नगर निगमों के माध्यम से यह योजना क्रियान्वित की जाती है. केंद्र सरकार, राज्य सरकार व नगरपालिका की […]

कोलकाता: शहरों में बस्तियों व स्लमों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर जवाहरलाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनएआरएम) योजना के तहत बस्ती स्लम विकास योजना (बीएसयूपी) शुरू की गयी है. शहरी विकास विभाग के अधीन विभिन्न नगरपालिका व नगर निगमों के माध्यम से यह योजना क्रियान्वित की जाती है. केंद्र सरकार, राज्य सरकार व नगरपालिका की भागीदारी से इस परियोजना का क्रियान्वयन होता है.

परियोजना का उद्देश्य
स्लम व बस्तियों की लगातार बढ़ती संख्या से शहरी सेवा व मूलभूत व्यवस्था का काफी दबाव बढ़ा है. शहरी जनसंख्या पर बढ़े दबाव के मद्देनजर यह परियोजना शुरू की गयी है. इस परियोजना के चयनित शहरों की बस्तीवासियों के लिए न केवल आवास मुहैया कराया जाता है, वरन मूलभूत सुविधाएं व नागरिक सुविधाएं भी विकसित की जाती हैं. इसके तहत नालियों का निर्माण, स्ट्रीट लाइटिंग, सामुदायिक भवन, चाइल्ड केयर सेंटर, स्वास्थ्य व शिक्षा की सुविधाएं, बिजली व अन्य नागरिक सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं.

जमीन देन पर पर आवास निर्माण
राज्य के विभिन्न नगरपालिकाओं के साथ उत्तर 24 परगना के भाटपाड़ा नगरपालिका में भी यह परियोजना शुरू की गयी है. भाटपाड़ा नगरपालिका के चेयरमैन व तृणमूल कांग्रेस के विधायक अजरुन सिंह ने बताया कि इस परियोजना के तहत नगरपालिका इलाके के बस्ती वासियों के विकास के लिए योजना शुरू की गयी है. चाहे वह किसी भी श्रेणी के हों, बीपीएल व एपीएल जमीन उपलब्ध कराने पर नगरपालिका की ओर से आवास निर्माण की योजना हाथ में ली गयी है. इसके लिए केवल 56,000 रुपये देने होते हैं. दो लाख, 76 हजार रुपये की लागत से आवास का निर्माण होता है. यह राशि केंद्र, राज्य व नगरपालिका द्वारा दिये जाते हैं.

क्या करना होता है
श्री सिंह ने कहा कि इस योजना के लिए प्राथमिक शर्त है कि अपनी जमीन हो या राज्य सरकार की ओर से पट्टा पर दी गयी जमीन हो. नगरपालिका में बीएसयूपी परियोजना के लिए आवेदन पत्र मिलते हैं. आवेदन पत्र भर कर जमा देने के बाद कागजातों की जांच होती है तथा जांच के दौरान सभी तथ्य सही पाये जाने पर मंजूरी मिलती है.

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