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राजनीतिक शिक्षा शिविर पर होगा जोर

कोलकाता: लोकसभा चुनाव में माकपा समेत अन्य वामदलों को भारी नुकसान हुआ. पूरे देश में माकपा को सिर्फ नौ सीटें मिलीं. बंगाल की 42 सीटों में से रायगंज व मुर्शिदाबाद सीटें ही मिलीं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गरीबों व आम लोगों के लगातार हित के लिए लड़नेवाला वाम मोरचा का वर्तमान दौर काफी […]

कोलकाता: लोकसभा चुनाव में माकपा समेत अन्य वामदलों को भारी नुकसान हुआ. पूरे देश में माकपा को सिर्फ नौ सीटें मिलीं. बंगाल की 42 सीटों में से रायगंज व मुर्शिदाबाद सीटें ही मिलीं.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गरीबों व आम लोगों के लगातार हित के लिए लड़नेवाला वाम मोरचा का वर्तमान दौर काफी मुश्किलों से भरा हुआ है. ऐसे में मोरचा से टूट रहे कार्यकर्ताओं से समस्या और बढ़ रही है. देश की मौजूदा हालात, वाम दलों की मौजूदा स्थिति व भावी रणनीति के बारे में प्रभात खबर ने वरिष्ठ नेता व माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी से बातचीत की. पेश हैं अहम मुद्दों पर उनके विचार.

सांगठनिक ताकत बढ़ाने को प्रमुखता

लोकसभा चुनाव के बाद से ही वाम दलों में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना बनी हुई थी. इन्हें खारिज करते हुए सीताराम येचुरी ने कहा कि नेतृत्व परिवर्तन से ज्यादा जरूरी सांगठनिक ताकत बढ़ाना है. वामपंथी नींव यानी ग्रामीण स्तर के विकास पर यकीन करते हैं. किसान, मजदूर, निम्न व मध्यम वर्ग की समस्याएं हैं. उनके हल के लिए वाम मोरचा का आंदोलन जारी रहेगा. गांव-गांव, ब्लॉक-ब्लॉक स्तर पर आम लोगों से मिलने-जुलने व उनके बीच काम करने की कवायद शुरू कर दी गयी है. सांगठनिक ताकत बढ़ाने के लिए राजनीतिक शिक्षा शिविर पर जोर दिया जायेगा. हमसे कुछ खामियां हुईं. कुछ ऐसे काम, जो हम नहीं कर पाये. उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने में शायद कोई कमी रह गयी थी. इन खामियों को दूर करने का प्रयास जारी है.

मौकापरस्त लोगों के जाने का असर नहीं

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही वाम दलों से कार्यकर्ताओं के टूटने की बात सामने आ रही है. इस पर माकपा नेता ने कहा कि यह ध्यान देना जरूरी है कि किसने वाम मोरचा से अपना नाता तोड़ा है. ऐसे लोग सत्तालोभी व मौकापरस्त हैं. उनके छोड़ने का कोई असर नहीं पड़ता है. चुनाव के बाद ही वे अलग क्यों हुए? मूल रूप से वामपंथी विचारधारा के नेता व कार्यकर्ता वाम मोरचा से नहीं टूटे हैं. बंगाल की बात करें, तो यह पहली दफा नहीं है जब माकपा या अन्य वामपंथी दलों के कार्यकर्ता पार्टी से अलग हुए हैं. पिछली बार ऐसी स्थिति के बाद वामपंथी पार्टियां और मजबूत हुई थीं और अब भी होंगी.

पहले सोच लें कि क्या कहना है

तृणमूल सांसद तापस पाल के विरोधी दलों और महिलाओं को लेकर दिये गये विवादास्पद बयान पर श्री येचुरी ने कहा कि बंगाल में लोकतंत्र पर खतरा बना हुआ है. ऐसा पिछले तीन वर्षो से लोग महसूस कर रहे हैं. तृणमूल सांसद का बयान निंदनीय है. ऐसा पहली दफा नहीं हुआ है कि जब तृणमूल के किसी नेता ने ऐसा विवादास्पद बयान दिया हो. बयान देने से पहले सोच तो लें कि क्या कहना है. सरकार के रूप में कार्य करने की क्षमता तृणमूल कांग्रेस के पास नहीं है. लोगों को धोखा देने की कोशिश की जा रही है. मौजूदा सरकार कुछ नहीं कर ही है.

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