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असली बोतल, नकली पानी के धंधे पर लगाम की कवायद

कोलकाता : इन दिनों सील बंद वस्तु की मांग काफी बढ़ गयी है. कंपनी के सील बंद सामानों पर लोगों को काफी भरोसा होता है क्योंकि इसमें चीजों के एकदम असली और फ्रेश होने का दावा होता है और यही कारण है कि आज हर कोई पैकेट बंद खाद्यपदार्थ व पानी का इस्तेमाल बेझिझक कर […]

कोलकाता : इन दिनों सील बंद वस्तु की मांग काफी बढ़ गयी है. कंपनी के सील बंद सामानों पर लोगों को काफी भरोसा होता है क्योंकि इसमें चीजों के एकदम असली और फ्रेश होने का दावा होता है और यही कारण है कि आज हर कोई पैकेट बंद खाद्यपदार्थ व पानी का इस्तेमाल बेझिझक कर रहा है. आम लोगों के इसी भरोसे का फायदा उठाकर रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों के आसपास असली बोतल, नकली पानी का धंधा जोरदार तरीके से फल फूल रहा है.
यात्रियों द्वारा इस्तेमाल किये हुए पानी के बोतलों में साधारण टाइप के पानी को भरकर नकली सील लगाने के बोतल माफिया अपने लोगों से इसे ट्रेनों व प्लेटफॉर्म एरिया में बेचवा रहे हैं. लेकिन रेलवे बोतल माफिया के इस असली बोतल, नकली पानी के धंधे पर लगाम लगाने के लिए कमर कस चुका है. हावड़ा रेलवे मंडल प्रशासन ने इस पर लगाम लगाने के लिए हावड़ा मंडल के विभिन्न स्टेशनों पर बोतल क्रशर मशीन की कवायद शुरू कर दी है.
प्रथम फेज में हावड़ा स्टेशन के ओल्ड व न्यू कांप्लेक्स में इस तरह की मशीन लगायी गयी है. हावड़ा स्टेशन के ओल्ड कांप्लेक्स में दो मशीन लगायी गयी है. पहला फूड प्लाजा के पास जबकि दूसरा कोनकर्स एरिया में लगायी गयी है. मशीन में बोतल डालते ही वह टुकड़ों में बदल जाता है. जानकारी देते हुए हावड़ा मंडल के मुख्य वाणिज्यिक अधिकारी जीसी प्रधान ने बताया कि प्रथम फेज में हावड़ा स्टेशन पर बोतल क्रशर मशीन लगी है.
इसके बाद बर्दवान, बैंडेल व अन्य स्टेशनों पर इस तरह की मशीन लगाने की योजना है. अक्सर यात्री बोतलों का इस्तेमाल कर के बड़ी ही बेपरवाही से ट्रेनों के बर्थ पर और प्लेटफॉर्म एरिया में फेंक देते हैं. मेरा आग्रह है कि हावड़ा स्टेशन पर आने वाले यात्रियों खाली पानी की बोतलों को इस क्रशर मशीन में ही फेंके. इसमें बोतल जाते ही टुकड़े-टुकड़े हो जाता है और दोबारा इस्तेमाल होने लायक नहीं रह जाता.
बोतलों को बेचने में बच्चों का होता है इस्तेमाल : बोतल माफियाओं का नेटवर्क काफी विस्तृत है लिहाजा इन गिरोह का काम बड़े ही सुनियोजित तरीके से होता है. गिरोह के लोग स्टेशनों एवं बस अड्डों पर घूमने वाले बच्चों पर नजर रखते हैं और मौका मिलते ही उन्हें नशे का आदि बना देते हैं.
जब बच्चा पूरी तरह से नशे की लत में फंस जाता है तो उससे ट्रेनों से, रेल लाइनों से बोतल चुनने को कहा जाता है और बदले में उन्हें संबंधित नशा उपलब्ध करवा दिया जाता है. बच्चों द्वारा चुनकर लाये गये बोतलों में साधारण टाइप का पानी भरा सील कर दिया जाता है और इन्हीं बच्चों से हावड़ा, लिलुआ, बर्दवान व अन्य छोटे-बड़े स्टेशनों पर बेचवाया जाता था.
वैसे तो असली बोतलों का मूल्य जहां 12 रुपया होता है वहीं इन बोतलों को 10 रुपये में बेच दिया जाता है. कम पढ़े लिखे लोग अनजाने में इन बोतलों को खरीदते हैं. इन बोतलों का पानी स्वास्थ्यकर नहीं होता है चूंकि इन में भरा पानी किसी भी नल या रेल लाइन के किनारे गिरते पानी को भर दिया जाता है लिहाजा ये पानी काफी गंदा होता है.
कई बार तो बोतलों को ट्रेनों के बाथरूमों से भी उठाकर पानी भरा जाता है.
नकली पानी के लिए यात्री भी कम दोषी नहीं : असली बोतल, नकली पानी के धंधे के लिए हम लोग भले ही पानी माफिया को दोषी ठहराते हों लेकिन कहीं ना कहीं इसके लिए यात्री खुद भी दोषी हैं. अधिकतर लोग पानी पीने के बाद बोतल को बिना तोड़े ही फेंक देते हैं जबकि प्रत्येक बोतल पर साफ-साफ शब्दों में लिखा होता है इस्तेमाल के बाद बोतल को तोड़ दें.

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