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14 जनवरी को सिर्फ 2 घंटे ही मकर संक्रांति का मुहूर्त

दुर्गापुर : भारत के प्रमुख हिन्दू त्योहारों में से एक मकर संक्रांति इस वर्ष जनवरी की 14 तारीख (रविवार) को मनाया जाएगा. पर इसका पुण्यकाल 15 जनवरी 2018 को रहेगा. मकर संक्रांति का विशेष पुण्यकाल 14 जनवरी 2018 को रात 8 बजकर 8 मिनट से 15 जनवरी 2018 को दिन के 12 बजे तक रहेगा.यह […]

दुर्गापुर : भारत के प्रमुख हिन्दू त्योहारों में से एक मकर संक्रांति इस वर्ष जनवरी की 14 तारीख (रविवार) को मनाया जाएगा. पर इसका पुण्यकाल 15 जनवरी 2018 को रहेगा. मकर संक्रांति का विशेष पुण्यकाल 14 जनवरी 2018 को रात 8 बजकर 8 मिनट से 15 जनवरी 2018 को दिन के 12 बजे तक रहेगा.यह पर्व हर साल जनवरी के महीने में मनाया जाता है. मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है. पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं,

तो उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं. मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है. यह त्योहार प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और खेती से जुड़ा है. इन्हीं तीन चीजों को जीवन का आधार भी माना जाता है. प्रकृति के कारक के तौर पर इस दिन सूर्य की पूजा होती है. सूर्य की स्थिति के अनुसार ऋतुओं में बदलाव होता है और धरती अनाज पैदा करती है. अनाज से जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है.

शिल्पांचल के बाजारों में चहल-पहल
संक्रांति के त्यौहार को लेकर शिल्पांचल के सभी बाजारों में अभी से ही विशेष चहल-पहल देखी जा रही है. विशेष रूप से इस त्यौहार में तिल के बने सामान, चूड़ा, मीठा, दूध और दही की मांग रहती है. जिसको लेकर बाजारों में तिलकुट की सोंधी खुशबु फैलने लगी है. मधुमेह रोगियों के लिए शुगर फ्री तिलकुट भी बाजार में उपलब्ध है. हालाकि इस बार तिलकुट बाजार में महंगाई की मार पड़ी है. चौक-चौराहों पर मौसमी कारोबारियों ने तिलकुट व तिल से बने सामानों की दुकाने सजा लिया है. बाजारों में विभिन्न प्रकार के चूड़ा और मीठा उतारा गया है. मकर संक्रांति और इन सामग्रियों के सेवन करने की परम्परा अनादि काल से चली आ रही है.
इस दिन विभिन्न नदी तटों पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ पवित्र स्नान के लिए उमड़ती है. स्नान के बाद श्रद्धालु सूर्यदेव को जलांजलि अर्पित करते है तत्पश्चात यथासम्भव दान-पुण्य करते है. इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है. इसमें खिचड़ी, वस्त्र व तिल का दान किया जाता है. इसके साथ ही तिल का सेवन करने का विधान है. शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है.
इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है. ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है. इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है. मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है.
मकर संक्रांति त्यौहार के है कई नाम
मकर संक्रांति को अलग-अलग राज्यों में विभिन्न तरीके से मनाया जाता है. ज्ञात हो कि मकर संक्रांति त्यौहार के कई नाम है. अलग-अलग राज्यों में इस पर्व को विभिन्न तरीके से मनाया जाता है. हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मानते हैं. उत्तरप्रदेश व बिहार में इसे खिचड़ी कहा जाता है. उत्तरप्रदेश में इसे दान का पर्व भी कहा जाता है. बंगाली समुदाय के लोग इसे पौष संक्रांति के रूप में मानते है. महाराष्ट्र में विवाहित महिलाएं अपन पहली संक्रांति पर कपास, तेल व् नमक सुहागिन महिलाओं को दान करती है.
असम में इसे माघ बिहू या भोगली बिहू के नाम से मनाते है. दक्षिण भारत में इसे पोंगल का पर्व कहते है. ऐसा मानना है कि संक्रांति के दिन भगवान भास्कर (सूर्य) अपने पुत्र शनिदेव से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं. चूँकि शनिदेव मकरराशि के स्वामी है. अतएव इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इस दिन सूर्य के उत्तरायण होते ही एक माह से मांगलिक कार्यों पर लगा प्रतिबन्ध भी खत्म हो जाता है. मकर संक्रांति से सभी मांगलिक कार्यों की धूम शुरू हो जाती है और शहनाइयों की गूंज भी शुरू हो जाती है. गृह प्रवेश एवं नए कार्यों की शुरुआत हो जाती है.
इस दिन से होने लगते हैं रातें छोटी और दिन बड़े
मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है. इसलिए इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. गरमी का मौसम शुरू हो जाता है. दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होने से अंधकार कम होगा. इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है.
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