कोलकाता : राज्य में ‘परिवर्तन की सरकार’ अगले महीने 20 तारीख को दो वर्ष पूरा कर लेगी. सरकार की राज्य की उपलब्धियों का बखान करनेवाली एक पुस्तिका भी निकालने की योजना है.
इस मौके पर होनेवाले कार्यक्रम में कई बड़ी हस्तियां भी शामिल होंगी. लेकिन आम जनता समझ नहीं पा रही है कि मौजूदा सरकार के दो साल के कार्यकाल में राज्य की किस उपलब्धि पर गर्व किया जाये.
लोगों को बड़ी उम्मीद थी नयी सरकार से
ठीक दो वर्ष पहले की तसवीर पर नजर डालें, तो उस समय ममता बनर्जी जब राजभवन में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर राइटर्स बिल्डिंग पहुंची थीं, तो उनके साथ जनसैलाब भी था. आम जनता की ऐसी भीड़, जो 34 वर्षो के वाम शासन से ऊब चुकी थी और परिवर्तन की बयार में खुलकर उड़ने को बेताब थी.
लेकिन दो वर्षो में ही हालात में इतना परिवर्तन आ गया कि खुद तृणमूल के नेताओं को सहसा यकीन नहीं होता. लोगों का उत्साह झाग की तरह ठंडा हो गया है. ममता बनर्जी की खुद की छवि भले एक ईमानदार नेता की रही हो, लेकिन उस पर भी तुनकमिजाजी और कड़े मिजाज का धब्बा लग गया है.
उनपर अदृश्य उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप भी लगता रहा है. उनके कुछ मंत्रियों के दामन दागदार साबित हुए हैं. इससे उनकी खुद की छवि के साथ-साथ राज्य की साख पर भी असर पड़ा है. दो वर्षो के कार्यकाल में उपलब्धियां गिनाने लायक मुद्दों से ज्यादा विवादास्पद मुद्दे सामने आये हैं.
इससे उनके इस जुमले पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है कि ‘ह्वॉट बंगाल थींक्स टुडे, इंडिया थींक्स टुमॉरो.’
सिलसिलेवार तरीके से नजर डालें तो तृणमूल सरकार के संबंध में छवि मलिन होने का सिलसिला 2011 में ही शुरू हो गया था. 2011 के दिसंबर में आमरी अस्पताल में लगी आग के बाद जिस तरह का रवैया मुख्यमंत्री ने अपनाया, उससे राज्य में व्यापारी वर्ग को तगड़ा झटका लगा. अस्पताल के निदेशकों की गिरफ्तारी ने उद्योग जगत में खलबली मचा दी.
दक्षिण 24 परगना जिले के कैनिंग में कुछ ही दिनों के बाद चुल्लू पीने से करीब 200 लोगों की मौत हो गयी थी. मुख्यमंत्री ने इसके बाद घोषणा कर दी कि मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये दिये जायेंगे. यह बयान आज तक चर्चा का विषय बना हुआ है. आम जनता को यह कहते हुए सुना गया कि यह कैसा न्याय है कि शराब पीकर मरनेवालों के लिए मुआवजा दिया जा रहा है.
इधर राज्य की बड़ी आबादी अभावग्रस्त है. मुख्यमंत्री की तुनकमिजाजी लोगों को हर दूसरे कार्यक्रमों में दिखायी देने लगी. किसी टीवी चैनल में सवाल करने पर वह खड़े किसी छात्र को माओवादी करार देती दिखीं, तो जनसभा में सवाल पूछने पर एक कृषक को माओवादी के रूप में चिह्न्ति कर दिया.
पुलिस ने उक्त किसान को गिरफ्तार भी किया. हालांकि बाद में उसे छोड़ देना पड़ा. इससे साफ हो गया कि वह अपनी आलोचना किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं कर सकतीं. फेसबुक पर उनका काटरून बनाने पर एक प्रोफेसर को जेल जाना पड़ा.
यादवपुर के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र को अपनी अभिव्यक्ति की कीमत गिरफ्तारी से चुकानी पड़ी. हद तो तब हो गयी, जब पुलिस की हिरासत में माकपा के छात्र नेता सुदीप्त सेन की मौत को उन्होंने ‘छोटा मामला’ करार दे दिया. किसी भी आरोप को दरकिनार करने का इसी तरह का तरीका निकाला है.
वर्ष 2012 में पार्क स्ट्रीट में चलती गाड़ी में महिला के साथ दुष्कर्म की घटना को भी उन्होंने ‘सजायी कहानी’ करार दिया था.
सारधा ग्रुप के घोटाले के बाद भी हालात में परिवर्तन नहीं दिख रहा. ग्रुप के घोटाले के बाद मुख्यमंत्री ने एक फंड बनाने की घोषणा की. इसके लिए उन्होंने तंबाकू पर कर लगाने की कोशिश की. साथ ही आशा भी जतायी कि लोग अधिक से अधिक सिगरेट पीयें, ताकि पैसे जल्दी आ सकें.