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व्यक्तित्व विकास में श्रम तथा विश्राम दोनों उपयोगी

निद्रा मुक्त होने के पांच कारण. शब्द, स्पर्श, भूख, नींद की पूर्णता व स्वप्न दर्शन राष्ट्र के निर्माण में संतों का अभूतपूर्व योगदान रहा है. स्थितप्रज्ञ योगी एवं महान साधक आचार्य श्री महाश्रमणजी के जीवन का एक-एक क्षण मानवकल्याण के लिए समर्पित है. पूज्यप्रवर ने आगम के प्रतिष्ठित ग्रंथ ठाणं में उल्लेखित सूत्रों का विवेचन […]

निद्रा मुक्त होने के पांच कारण. शब्द, स्पर्श, भूख, नींद की पूर्णता व स्वप्न दर्शन
राष्ट्र के निर्माण में संतों का अभूतपूर्व योगदान रहा है. स्थितप्रज्ञ योगी एवं महान साधक आचार्य श्री महाश्रमणजी के जीवन का एक-एक क्षण मानवकल्याण के लिए समर्पित है. पूज्यप्रवर ने आगम के प्रतिष्ठित ग्रंथ ठाणं में उल्लेखित सूत्रों का विवेचन करते हुए फरमाया कि निद्रा मुक्त होने के पांच कारण प्रज्ञप्त हैं.
शब्द, स्पर्श, भूख, नींद की पूर्णता एवं स्वप्न दर्शन. श्रम के साथ विश्राम की भी आवश्यकता होती है. व्यक्ति नींद लेता है, शारीरिक श्रम के बाद विश्राम की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल श्रम ही श्रम कठिनता पैदा करता है तथा व्यक्ति यदि सिर्फ विश्राम या आराम ही करे तो विकास अवरुद्ध हो जाता है, इसलिए नींद को ज्यादा बहुमान नहीं देना चाहिए. सोने-जागने का समय निश्चित होने से दिनचर्या व्यवस्थित रह सकती है.
सोने के समय चिंता, तनाव तथा विचारों से मुक्त रहना चाहिए. नींद टूटने के बाद ईष्ट स्मरण तथा पवित्र मंत्रों से दिन का प्रारंभ करना चाहिए. नींद से जागने के पांच कारण हैं -शब्द के द्वारा, किसी को आवाज देकर मधुरता से जगान तथा किसी अन्य शब्द या धमाके से भी नींद टूट सकती है. किसी को कोमलता तथा वत्सलता से स्पर्श कर नींद से जगाया जा सकता है. कभी कभी भूख लग जाने पर भी नींद टूट जाती है. नींद की पूर्णता होने पर भी अपने आप व्यक्ति जाग जाता है. नींद के दौरान स्वप्नदर्शन से भी व्यक्ति की नींद टूट जाती है. इस प्रकार नींद से जागने के कई कारण हो सकते हैं.
कुछ जीवों का जागना अच्छा, कुछ का सोना अच्छा. आगम में हिंसा आदि में तथा झगड़ा, क्लेश इत्यादि में रत रहनेवाले जीवों का सोना अच्छा बताया गया है तथा उन जीवों का जागना अच्छा है जो परकल्याण करने वाले, पुरुषार्थी तथा आत्मसाधना में लीन रहनेवाले होते हैं. जागनेवाले की बुद्धि बढ़ती है. अहिंसा आदि की साधना करनेवाले अपनी विवेक चेतना को जगाकर जीवन का समग्र विकास कर सकते हैं.
पूज्यप्रवर ने गणाधिपति गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी के जन्मदिवस अणुव्रत दिवस के उपलक्ष्य में अपने मंगल उद्बोधन में फरमाया कि तेरापंथ धर्मसंघ के नौवे आचार्य श्री तुलसी एक तेजस्वी, वर्चस्वी आचार्य हुए हैं. जिन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ को ऊंचाइयां प्रदान की तथा उनका प्रमुख अवदान था अणुव्रत आंदोलन. आचार्य तुलसी का चिंतन उदार एवं मानव जाति के व्यापक हितों को केंद्र में रखकर होता था.
इसी उदार दृष्टिकोण ने अणुव्रत जैसे मूल्यपरक नैतिक आंदोलन को जन्म दिया.
फलस्वरूप लाखों लोग इस आंदोलन से जुड़कर स्वतः जैन धर्म के निकट आ गये. वे तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में कोलकाता पधारनेवाले सर्वप्रथम आचार्य थे. समण श्रेणी की स्थापना के द्वारा उन्होंने जैन परंपरा के इतिहास में एक नया आयाम दिया. समण श्रेणी के माध्यम से आचार्य तुलसी ने जैन धर्म को सात समुंदर पार तक पहुंचा दिया. जैन समाज के लिए समण श्रेणी का विकल्प उपयोगी बना. पूज्य गुरुदेव तुलसी एक महान धर्माचार्य हुए. उनकी प्रेरणा एवं पथदर्शन प्राप्त होता रहे.

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