खुद ममता बनर्जी वहां पहुंचीं और लोगों को बांग्ला भाषा पढ़ने के लिए बाध्य करने का सरकारी आदेश का हवाला देकर लोगों की भावनाओं को पहले उकसाया और उसके साथ पहाड़ रहनेवाले विभिन्न जातियों और जनजातियों को सुविधावादी मानसिकता के तहत तरह-तरह का प्रलोभन देकर उनके अंदर विभाजन का बीज बो दीं, जिसका परिणाम हुआ कि पिछले आठ सालों से दबा पड़ा गोरखालैंड का जजबाती मुद्दा धधक उठा. उसको बातचीत से समाधान करने की बजाय ममता बनर्जी ने पुलिसिया दमन का प्रयास किया, जिसका परिणाम घातक निकला.
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पहाड़ पर हिंसा के लिए सीएम जिम्मेदार : राहुल
कोलकाता: गोरखालैंड के मुद्दे पर पहाड़ जल रहा है. लोग परेशान हैं और वहां पर शांति चाहते हैं, लेकिन लोगों के जान माल की हिफाजत करने का जिम्मा जिस मुख्यमंत्री के ऊपर है वही विभाजन व अलगाव की राजनीति कर फायदा उठाने में जुटी हैं. मुख्यमंत्री पर यह आरोप प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता राहुल […]
कोलकाता: गोरखालैंड के मुद्दे पर पहाड़ जल रहा है. लोग परेशान हैं और वहां पर शांति चाहते हैं, लेकिन लोगों के जान माल की हिफाजत करने का जिम्मा जिस मुख्यमंत्री के ऊपर है वही विभाजन व अलगाव की राजनीति कर फायदा उठाने में जुटी हैं. मुख्यमंत्री पर यह आरोप प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता राहुल सिन्हा ने लगाया. उन्होंने कहा कि पिछले आठ सालों से पहाड़ शांत था.
श्री सिन्हा के मुताबिक, मुख्यमंत्री के पास बेहतर मौका था, जब खुद विमल गुरुंग सर्वदलीय बैठक में शामिल होने के लिए तैयार हो गये थे. सभी पक्ष जब बात करने के लिए तैयार थे तो ममता बनर्जी यहां भी विभाजन की बात शुरू कर दी और विमल गुरुंग को दरकिनार करते हुए विनय तमांग को सामने लाने लगी, जिससे स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ गयी.
उन्होंने मुख्यमंत्री को सलाह देते हुए कहा कि अगर वाकई वह पहाड़ में शांति लाना चाहती हैं तो सबसे पहले वह पुलिस अभियान बंद कर बातचीत के लिए तैयार हों. बातचीत के लिए उनको विमल गुरुंग को बुलाना होगा, क्योंकि गोरखालैंड आंदोलन का चेहरा विमल गुरुंग ही हैं और वह जब संतुष्ट नहीं होंगे तो आंदोलन शांत होने की उम्मीद करना बेमानी है. पुलिस के दम पर जनआंदोलन को खत्म करने की सोच रखनेवालों को उसका खामियाजा उठाना पड़ता है. इसलिए मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह सबसे पहले वह पुलिस अभियान को बंद कर बातचीत के लिए सभी पक्षों को आमंत्रित करें और आंदोलनकारियों का विश्वास जीतें.
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