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महानगर में विदेशी लेखकों का क्रेज

कोलकाता: कभी वक्त था जब अंगरेजी की किताबों को लिये घूमना स्टेटस सिंबल माना जाता था. लियो टॉल्सटॉय भले ही घरों के बुक शेल्फ की शोभा बढ़ाते थे, उन्हें पढ़ने वाले कम और नुमाइश करने वाले अधिक मिलते थे. अंगरेजी में लिखने वाले भारतीय लेखकों में खुशवंत सिंह या फिर शोभा डे, का ही नाम […]

कोलकाता: कभी वक्त था जब अंगरेजी की किताबों को लिये घूमना स्टेटस सिंबल माना जाता था. लियो टॉल्सटॉय भले ही घरों के बुक शेल्फ की शोभा बढ़ाते थे, उन्हें पढ़ने वाले कम और नुमाइश करने वाले अधिक मिलते थे. अंगरेजी में लिखने वाले भारतीय लेखकों में खुशवंत सिंह या फिर शोभा डे, का ही नाम जुबान पर आता था.

अरुंधति रॉय या झूंपा लाहिड़ी भी लोकप्रिय हो रही थी, लेकिन पिछले कुछ समय बाग हालात ने तेजी से करवट बदला. विक्रम सेठ, अरविंद अडीगा जैसे लेखकों ने अंगरेजी में किताबें लिख कर वैश्विक मंच पर कामयाबी के साथ-साथ खिताब भी बटोरा. देखते ही देखते अंगरेजी में लिखने वाली एक नयी जमात शुरू हो गयी. लेकिन इस कामयाबी के माउंट एवरेस्ट पर कोई भारतीय लेखक विराजमान हुआ तो वह हैं, चेतन भगत. इसकी पुष्टि करते हैं महानगर में न्यू मार्केट इलाके में बुकस्टोर, मोहन्स के प्रोपराइटर, गोपाल तिवारी. वह कहते हैं कि जिन किताबों को महानगर में पसंद किया जा रहा है उन्हें मूलत: दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है. एक टीनेज फिक्शन और दूसरा पारंपरिक. टीनेज फिक्शन यानी युवाओं में लोकप्रिय लेखकों में चेतन भगत के अलावा, रवींदर सिंह, दुर्जय दत्त सरीखे लेखक हैं.

इनमें एवरीवन हैज ए स्टोरी की लेखिका सवि शर्मा ने अपनी पहली ही किताब से धूम मचा दी. इन दोनों श्रेणियों या जॉनर के अलावा एक तीसरी श्रेणी पिछले कुछ वर्षों में खासी लोकप्रिय हुई है जिसे माइथोलॉजिकल या पौराणिक कहा जा सकता है. इनमें देवदत्त पट्टनायक, अमीश जैसे लेखक हैं.

इनके अलावा पौराणिक कथाओं को थ्रिलर का रूप देकर लोकप्रियता के शिखर पर बैठने वाले अश्विन सांघ्वी जैसे लेखक भी हैं. पारंपरिक किताबों की बात करें तो आज भी जेफ्री आर्चर, फ्रेडरिक फोरसिथ को पसंद किया जाता है. विदेशी लेखकों में फिलहाल ली चाइल्ड, डैन ब्राउन, पौला हॉकिंस, जॉन ग्रीशम, जिलियन फिन को खूब पसंद किया जाता है. श्री तिवारी के मुताबिक भारतीय लेखक विदेशी लेखकों से कहीं भी कम नहीं बिकते. महानगर के पुस्तकप्रेमी उन्हें हाथों-हाथ लेते हैं. नयी किताबों के लिए बराबर दरियाफ्त भी बकायदा होती रहती है. भले ही इबुक की शक्ल में किताबें किंडल या मोबाइल ऐप रीडर पर पढ़ी जा रही हों, किताबों को हाथों में लेकर उन्हें पढ़ने वालों की तादाद कम नहीं हो रही. जरूरत बस क्वालिटी लेखकों और उनकी सधी हुई किताबों की है.

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