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सांप्रदायिकता के खिलाफ मुख्यमंत्री की लड़ाई पर कांग्रेस ने उठाये सवाल

कोलकाता : कांग्रेस विधायक सह विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान ने सांप्रदायिकता के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आड़े हाथ लिया है. श्री मन्नान ने सवाल किया कि राज्य में सांप्रदायिकता लाने के लिए जिम्मेदार कौन है? धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यकों की मसीहा बताने वाली मुख्यमंत्री क्या इस जिम्मेदारी से बच सकती हैं? 1992 […]

कोलकाता : कांग्रेस विधायक सह विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान ने सांप्रदायिकता के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आड़े हाथ लिया है. श्री मन्नान ने सवाल किया कि राज्य में सांप्रदायिकता लाने के लिए जिम्मेदार कौन है? धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यकों की मसीहा बताने वाली मुख्यमंत्री क्या इस जिम्मेदारी से बच सकती हैं? 1992 में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद एक राजनीतिक दल को जिम्मेदार बताकर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश एवं अन्य कुछ राज्यों में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाया था.

कुछ महीने के भीतर मध्यावधि चुनाव में चार राज्यों में सत्ताधारी दल की हार हुयी और कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता संभाली. लेकिन 2002 के गोधरा कांड के बाद इसके लिए जिम्मेदार नेता का अभिनंदन करना एवं उक्त राजनीतिक दल के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रहने के लिए लोग मुख्यमंत्री के दोहरे रवैये की बात कहते हैं तो कुछ गलत नहीं कहते.

मणिपुर में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के गठन का विरोध कर एकमात्र पार्टी विधायक के जरिये भाजपा सरकार के गठन की व्यवस्था करना, त्रिपुरा में धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस विधायकों को दलत्याग करा कर भाजपा में शामिल करने की व्यवस्था करके अगले चुनाव में भाजपा सरकार के गठन का षडयंत्र करके व कांग्रेस को कमजोर तथा भाजपा को मजबूत करके राज्य में सत्ताधारी दल ने खतरनाक चरित्र का परिचय दिया है.

चिटफंड, नारदा, सारधा जैसे घोटाले के नेता, विधायक, सांसद, मंत्री यहां तक कि भतीजों को बचाने के लिए पूरा जोर लगाना. इसलिए धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहनकर सांप्रदायिक शक्ति को ईंधन देते रहने की जरूरत है. ऐसी राजनीति पर धिक्कार है.

बुद्धिजीवियों के दोहरे मापदंड के खिलाफ भाजपा
भाजपा और संघ परिवार ने पश्चिम बंगाल के बुद्धिजीवी वर्ग के एक तबके के कथित दोहरे मापदंड के बारे में लोगों को जागरूक करने का फैसला किया है. इसके लिए उन्होंने उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट में हुए दंगों को लेकर उनकी चुप्पी का उदाहरण दिया है. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राहुल सिन्हा ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने पर बंगाल के एक कवि ने इसकी निंदा करते हुए एक कविता लिखी थी लेकिन आज जब बहुसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है तो वह चुप हैं. आरएसएस के एक नेता ने ताज्जुब प्रकट करते हुए कहा कि वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश में मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या किये जाने के बाद पुरस्कार लौटानेवाले लोग कहां हैं. बशीरहाट दंगों को लेकर वे शांत क्यों हैं.

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