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पहाड़ पर बंद का असर: दाने-दाने के लिए तरस रहे आम लोग

सिलीगुड़ी. पिछले करीब 25 दिनों से पहाड़ पर जारी बेमियादी बंद ने वहां के लोगों की कमर तोड़ दी है. बंद की घोषणा से पहले जिन लोगों ने अपने-अपने घरों में खाने-पीने का स्टॉक जमा कर रखा था, वह भी धीरे-धीरे खत्म होने को है. कई घरों में तो अब खाने-पीने के लिए अनाज बचा […]

सिलीगुड़ी. पिछले करीब 25 दिनों से पहाड़ पर जारी बेमियादी बंद ने वहां के लोगों की कमर तोड़ दी है. बंद की घोषणा से पहले जिन लोगों ने अपने-अपने घरों में खाने-पीने का स्टॉक जमा कर रखा था, वह भी धीरे-धीरे खत्म होने को है. कई घरों में तो अब खाने-पीने के लिए अनाज बचा ही नहीं है. ऐसी परिस्थिति में दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, कार्सियांग, मिरिक आदि में लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी को भी इतने लंबे समय तक बंद को चलने की उम्मीद नहीं थी. अधिकांश लोगों ने 10-15 दिनों के लिए अपने-अपने घरों में खाने का स्टॉक जमा कर रखा था. अब चावल, दाल आदि खत्म होने को है. कालिम्पोंग के रहने वाले अरुण थापा ने बताया है कि उनके घर में खाने-पीने का सामान खत्म हो गया है. कहीं से कुछ मंगाया भी नहीं जा सकता. पैसे की भी तंगी हो रही है. बैंक, एटीएम आदि बंद पड़े हुए हैं. वाहनों के नहीं चलने से कहीं आना-जाना भी मुश्किल हो गया है.

श्री थापा ने बताया कि उनके परिवार के कुछ सदस्य तथा कालिम्पोंग के विभिन्न इलाकों से कई लोग पैदल ही सिलीगुड़ी के लिए निकल गये हैं. ऐसे पहाड़ पर सब्जियों की कोई कमी नहीं है. पहाड़ पर पर्याप्त मात्रा में सब्जियों का उत्पादन खासकर क्वाश तथा राई साग काफी होता है. सही मायने में कहें तो इन दिनों क्वास तथा राई साग ही पहाड़ के लोगों के जीने का सहारा है. उसके बाद भी अलग राज्य के लिए जारी आंदोलन को लेकर आम लोगों के जोश एवं जज्बे में कोई कमी नहीं आयी है. श्री थापा ने कहा कि वह लोग घास-भूसा खाकर भी अलग राज्य के लिए आंदोलन करते रहेंगे. अलग राज्य विकास के लिए नहीं, बल्कि गोरखाओं के जातीय पहचान के लिए जरूरी है.

इस बीच, सिलीगुड़ी में विभिन्न स्थानों पर अघोषित आर्थिक नाकेबंदी के कारण पहाड़वासियों की परेशानी और बढ़ गई है. न केवल गोरखालैंड विरोधी, अपितु पुलिस द्वारा भी पहाड़ जाने वाले वाहनों पर नजर रखी जा रही है. सिलीगुड़ी से सुकना एवं सिक्किम की ओर जाने वाली सड़कों पर पुलिस की अघोषित नाकेबंदी की जा रही है. पिछले कई दिनों के दौरान इस प्रकार की घटनाएं घट गयी हैं. हालांकि इस मामले को लेकर पुलिस के आला अधिकारी कुछ भी नहीं कहना चाहते. सिलीगुड़ी के विभिन्न बाजारों में भी इनके द्वारा निगरानी रखी जा रही है. पहाड़ नंबर की गाड़ियों को देखते ही यह लोग भड़क रहे हैं.

रविवार की शाम चंपासारी बाजार इलाके में भी कुछ इसी प्रकार की घटना देखने को मिली. एक जीप में दाल, चावल तथा सब्जियों की लोडिंग चल रही थी. तभी कुछ गोरखालैंड विरोधी युवक आ धमके और वाहन पर लदे तमाम सामान को सड़क पर फेंक दिया. गाड़ी के चालक की मार-पिटाई होती, इससे पहले ही पुलिस मौके पर पहुंच गयी और चालक को बचाया. तब तक सभी युवक वहां से फरार हो गये थे. ऐसे उपद्रवी युवक एम्बुलेंसों पर विशेष रूप से नजर रख रहे हैं.

दाने-दाने के लिए मोहताज पहाड़वासी एम्बुलेंस से अनाज आदि सिलीगुड़ी से मंगाने के लिए विवश हैं. पहाड़ पर अनाज जाने से रोके जाने की घटनाओं की यहां के विभिन्न संगठनों ने निंदा की है. मानवाधिकार संगठन एपीडीआर ने कहा है कि पहाड़ के लोगों को मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. खान-पान की सामग्री पहाड़ ले जाने से रोकना सही नहीं है. एपीडीआर के सचिव अभिरंजन भादुड़ी ने कहा कि दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र इन दिनों गोरखालैंड की आग में जल रहा है. वहां पुलिस फायरिंग से आम लोगों की मौत हो रही है. ऊपर से खाने-पीने पर भी संकट है. उन्होंने तत्काल राज्य सरकार से बातचीत कर इस समस्या के समाधान की मांग की है.

गोजमुमो नेता विनय तामांग ने भी सिलीगुड़ी में अघोषित आर्थिक नाकेबंदी की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार के इशारे पर पुलिस पहाड़ जाने वाले वाहनों को रोक रही है. तृणमूल कांग्रेस के लोग भी अनाज लदी गाड़ियों को रोक देते हैं. एनसीपी नेता फैजल अहमद ने कहा कि पहाड़ पर खाने-पीने की वस्तुओं की काफी समस्या है. यदि स्थिति नहीं सुधरी, तो लोग भुखमरी के शिकार होने लगेंगे.

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