मौका था डॉ मुखर्जी की 64वीं पुण्यतिथि का. पत्रकारों से बातचीत में दिलीप घोष ने कहा कि पहाड़ पर एक ही दल है. वह है मोरचा. लेकिन दीदी पहाड़ पर केवल खुद को देखना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने पुलिस उतारकर पहाड़ को आग में जला दिया. इसके बाद क्या हुआ? उनकी ही पार्टी के जनप्रतिनिधि तृणमूल नहीं करने का वादा करके पहाड़ छोड़ सिलीगुड़ी में रह रहे हैं. श्री घोष ने कहा कि पहाड़ पूरे राज्य का विषय है. इसे लेकर कोलकाता में चर्चा होनी चाहिए थी. लेकिन सिलीगुड़ी में सर्वदलीय बैठक रखी गयी. ऐसा क्यों, कोई नहीं जानता. श्री घोष ने कहा कि एक समय सेना को वसूली करनेवाला कहनेवाली दीदी अब उसी सेना की मदद पहाड़ में ले रही हैं. गोरखा समुदाय को पुलिस के जोर से नहीं दबाया जा सकता है.
ज्योति बसु नहीं कर पाये, बुद्धदेव भट्टाचार्य नहीं कर पाये, ममता बनर्जी भी नहीं कर पायेंगी. केंद्र सरकार से चर्चा और कोलकाता में सर्वदलीय बैठक से मामला हल हो सकता है. श्री घोष ने कहा कि देश में सवा करोड़ गोरखा हैं. उनका विकास होना चाहिए. गोरखाओं ने हमेशा देश के लिए वीरता का प्रदर्शन किया है. मोरचा ने पहले जो 17 सूत्री मांगपत्र रखी थी, उसमें गोरखालैंड की मांग नहीं थी. वे लोग अपना विकास चाह रहे थे. वह विकास की मांग के साथ हैं. मोरचा के साथ पहाड़ पर केवल चुनावी समझौता हुआ था.