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जापान के पूर्व PM आबे को नेताजी पुरस्कार 2022, मुखर्जी आयोग से क्यों नाराज हैं सुभाष बाबू के भाई की पोती?

Netaji Award 2022: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे को नेताजी पुरस्कार 2022 से सम्मानित किया गया.

कोलकाता: जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को वर्ष 2022 का नेताजी पुरस्कार दिया गया है. रविवार को नेताजी रिसर्च ब्यूरो ने यह सम्मान प्रदान किया. कोलकाता में जापान के महावाणिज्य दूत नाकामुरा युताका ने अपने देश के पीएम शिंजो आबे की तरफ से यह सम्मान प्राप्त किया.

जापान के राजदूत भी कार्यक्रम में हुए शामिल

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर उनके एल्गिन रोड स्थित आवास पर आयोजित एक कार्यक्रम में शिंजो आबे को यह सम्मान दिया गया. भारत में जापान के राजदूत सतोशी सुजुकी भी कार्यक्रम में शरीक हुए. नयी दिल्ली से उन्होंने ऑनलाइन माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित किया.

नेताजी के बड़े प्रशंसक हैं शिंजो आबे

नेताजी रिसर्च ब्यूरो के निदेशक एवं प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी के पौत्र सुगत बोस ने शिंजे आबे को नेताजी का बड़ा प्रशंसक बताया. दूसरी तरफ, नेताजी के भाई की पोती ने ने ताजी के बारे में जानकारी जुटाने के लिए बनी जस्टिस मुखर्जी आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये हैं.

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रेनकोजी मंदिर के पुजारी ने भारत सरकार को लिखा था पत्र

महान स्वतंत्रता सेनानी के भाई शरत बोस की पोती माधुरी बोस ने कहा है कि तोक्यो स्थित रेनकोजी मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा जापानी भाषा में वर्ष 2005 में भारत सरकार को एक पत्र लिखा गया था. इस पत्र के हालिया अनुवाद से पता चला है कि जस्टिस एमके मुखर्जी आयोग को उन अस्थियों की मदद से डीएनए जांच की अनुमति दी गयी थी, जिसके कलश के संरक्षण की जिम्मेदारी पुजारी के पास थी.

चिट्ठी के कुछ हिस्से का नहीं हुआ अनुवाद

ऐसा माना जाता है कि इस कलश में बोस की अस्थियां हैं. कोई कारण बताये बिना पत्र के इस हिस्से का अनुवाद नहीं किया गया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लापता होने पर जस्टिस मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के साथ साक्ष्य के तौर पर एक अंग्रेजी संस्करण संलग्न किया गया था. इसमें लिखा था, ‘मंदिर अधिकारियों के मौन रहने के कारण आयोग (डीएनए जांच के मुद्दे पर) आगे नहीं बढ़ सका.’

नेताजी हादसे में बच गये या संन्यासी बन गये?

जस्टिस मुखर्जी आयोग ने बाद में इसका उपयोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए किया कि ये अस्थियां नेताजी की नहीं थीं. इससे इन अटकलों को बल मिलता है कि नेताजी हादसे में बच गये और बाद में संन्यासी बन गये या रूस की जेल में उन्हें कैदी के रूप में रखा गया.

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मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट से गायब थे कुछ पैराग्राफ

शरत बोस की पोती माधुरी बोस ने कहा है, ‘मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में विसंगतियां मिलने और जस्टिस मुखर्जी की जांच रिपोर्ट के आधिकारिक अंग्रेजी संस्करण से जापानी भाषा में लिखे पत्र के कई पैराग्राफ नहीं मिलने के बाद हमने हाल में इनका फिर से नया अनुवाद शुरू किया.’

जापानी भाषा के विशेषज्ञ से कराया चिट्ठी का अनुवाद

जापानी भाषा के एक विशेषज्ञ ने इसका अनुवाद किया, तो पता चला कि पत्र के छोड़े गये अंश में 427 वर्ष पुराने बौद्ध मंदिर ‘रेनकोजी मंदिर’ के मुख्य पुजारी निचिको मोचिजुकी ने लिखा था, ‘मैं जांच में सहयोग करने के लिए सहमत हूं. पिछले साल (2004) में (जापान के लिए भारतीय राजदूत) (एमएल) त्रिपाठी के साथ बैठक में इसी पर सहमति बनी थी.’

2006 में संसद में पेश हुई थी मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट

राष्ट्रमंडल सचिवालय और संयुक्त राष्ट्र में काम कर चुकीं माधुरी बोस ने बोस बंधुओं पर किताबें भी लिखी हैं. उन्होंने कहा, ‘हमें समझ नहीं आता कि इस अनुमति को पहले सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया या डीएनए जांच क्यों नहीं की गयी.’ जस्टिस मुखर्जी आयोग ने वर्ष 2006 में संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी.

मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट का ये था निष्कर्ष

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला था कि आजाद हिंद फौज में बोस के करीबी विश्वासपात्रों सहित चश्मदीदों के बयान के उलट नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु ‘विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी’. यह भी कहा गया था कि ‘जापान के मंदिर में मिली अस्थियां’ नेताजी की नहीं हैं. आजाद हिंद फौज के कर्नल हबीब-उर-रहमान सहित चश्मदीदों ने कहा था कि अगस्त 1945 में ताइपे में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गयी थी.

मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में कई विसंगतियां मिलीं

माधुरी बोस ने कहा कि मुखर्जी आयोग पर हमें बहुत विश्वास था. हमें आशा की एक किरण नजर आयी थी कि नेताजी के लापता होने के बारे में सच्चाई अंतिम रिपोर्ट के साथ सामने आ जायेगी. लेकिन, रिपोर्ट में कई विसंगतियां मिलीं, जिसकी वजह से हमें इसे फिर से देखने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने कहा, ‘हमने पाया कि जापान के मंदिर का पुजारी डीएनए जांच चाहता था और हमने (भारत ने) कभी जांच नहीं की.’

बोस परिवार ने पीएम मोदी को लिखी थी चिट्ठी

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनिता फाफ, प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी और नेताजी के बड़े भाई के बेटे द्वारका नाथ बोस एवं उनके एक अन्य भतीजे अर्धेंदु बोस सहित बोस परिवार के तीन सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अक्टूबर 2016 और दिसंबर 2019 में पत्र लिखकर उन्हें रेनकोजी में मिली अस्थियों की डीएनए जांच कराने का आदेश देने का अनुरोध किया था. हालांकि, माधुरी बोस ने कहा कि परिवार को इस पर अब तक कोई जवाब नहीं मिला.

एजेंसी इनपुट के साथ

Posted By: Mithilesh Jha

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