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पश्चिम बंगाल में क्या लेफ्ट व कांग्रेस बिहार के महागंठबंधन जैसा दिखायेंगे करिश्मा?

।।पंकज कुमार पाठक।। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के महासंग्राम में रथ आगे ले जाने के लिए सभी पार्टियां सारथी की तलाश में हैं.राजनीतिक दलचुनावी जीत के लिए गंठबंधन के लिए संभावनाएं तलाशना शुरू कर चुके हैं.इस साल के उत्तरार्द्ध में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होना है. वहां के दो बड़े राजनीतिक ध्रुव तृणमूल कांग्रेस […]


।।पंकज कुमार पाठक।।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के महासंग्राम में रथ आगे ले जाने के लिए सभी पार्टियां सारथी की तलाश में हैं.राजनीतिक दलचुनावी जीत के लिए गंठबंधन के लिए संभावनाएं तलाशना शुरू कर चुके हैं.इस साल के उत्तरार्द्ध में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होना है. वहां के दो बड़े राजनीतिक ध्रुव तृणमूल कांग्रेस वमाकपा केसाथ दो राष्ट्रीय दल कांग्रेस व भाजपाभी अपनी अपनी भूमिकाएं व संभावनाएं तलाश रही है. भारतीय जनता पार्टी जहां सीधे तौर तृणमूलके खिलाफ उपस्थिति दर्ज कराने का हुंकार भर रहीहैं, वही कांग्रेस यह संभावना तलाश रही हैकि क्यावहमाकपा से गठजोड़ कर राज्यकी सत्ता सेममता बनर्जी के नेतृत्व वाले तृणमूल को सत्ता से बाहर कर सकेगी या नहीं.

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क्या एक होगी कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां ?

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को हराने के लिए नीतीश कुमार और लालू यादव से गंठबंधन कर लिया.कांग्रेसके मार्जिन वोट बैंक ने नीतीश लालू के पूर्व से मजबूत सामाजिक गठजोड़ में सोने पे सुहागा का काम कियाऔर इन तीनों को वहां करिश्माई जीत मिली. लालू और नीतीश ने अपने बेस वोटको एक दूसरे के खाते में बहुत ही शानदार तरीके से ट्रांसफरभी करवाया, जिसका फायदा महागंठबंधन को मिला और भाजपा राज्य की सत्ता से दूर हो गयी.पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की ताकतवर मौजूदगी से जूझ रहे वाम मोर्चेकीइच्छा है कि कांग्रेस बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में उसका साथ दे. दूसरी तरफ कांग्रेस और लेफ्ट के गंठबंधन को लेकर पार्टी के नेताओं के अलग-अलग विचार है. पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य पिछले दिनों एक रैली में सीधे तौर पर कांग्रेस को अप्रत्यक्ष रूप से अपने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का निमंत्रण दे दियाथा और पूछाथा कि कांग्रेस को साफ कर देना चाहिए कि वो किस तरह है? सूत्रों की मानें तो 294 सीट वाली विधानसभा में कांग्रेस 80 सीट पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है ऐसे में लेफ्ट सेइतनीसीटेंहासिलकरनाठेढ़ीखीरहै.कांग्रेसकादावाइसमायनेमेंवाजिबहैकिपिछलेचुनावमेंउसेराज्यमें42सीटेंमिलीथी,वहींमाकपाकेलिए
मुश्किल यह होगी कि अगर वह इतनी सीटें कांग्रेस को देती है, तो उसके तीन सहयोगियों व खुद उसकी झोली से ही सीटें जायेंगी. ध्यान रहे कि पिछले चुनाव में माकपा ममता लहर में आश्चर्यजनक रूप से 40 सीटों पर व भाकपा में दो सीटों सीमित रह गयी थी.

क्या नहीं हो सकता कांग्रेस और लेफ्ट का गंठबंधन ?

इंडियन नेशनल कांग्रेस और तृणमूल का साथ बहुत पुराना रहा है दोनों साथ मिलकर चुनाव लड़तीरही हैं. चाहे वो विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों एक दूसरे का साथ देते रहे हैं लेकिन जब ममताबनर्जी की ताकत बढ़ी तो उन्होंने कांग्रेस को उन्होंने खुद से अलगकर दिया. हालिया निकाय चुनावों से भी यह संकेत मिला है कि ममता का जादू कायम है और वे बंगाल की सबसे ताकतवर नेता हैं. इसलिए संभावना जतायी जा रही है कि बिहार के तरह बदले हालात में लेफ्ट और कांग्रेस अब साथ आ सकते हैं. हालांकि कांग्रेस की लेफ्ट के साथ दूसरी परेशानी है, वह केरल में सीधे तौर पर लेफ्ट के मुकाबले में है. हालांकि राजनीति इन्हीं जटिलताओं में साम्य बैठाने का नाम है.
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भाजपा की पकड़ भी हुई है मजबूत

वर्द्धमान विस्फोट, मालदा में हुई हिंसक झड़प और सुभाष चंद्र बोस के दस्तावेद को सार्वजनिक करने के फैसले को भाजपा भुना रही है. हालांकि राज्य सरकार ने पहले ही सुभाष चंद्र बोस के वो दस्तावेज जो राज्य सरकार के पास थे उसे सार्वजनिक कर दियाथा, लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा द्वारा लिया गया यह फैसला कुछ न कुछ तो असर करेगा ही. नेताजी के प्रपौत्र भी पिछले दिनों अमित शाह की रैली में भाजपा में शामिल हो गये हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट प्रतिशत कांग्रेस से ज्यादा था, भाजपा 17 प्रतिशत वोट बैंक के साथअपनी ताकत दिखाने में कामयाब रही थी. लेकिन पिछले दिनों हुए निकाय चुनाव में इसमें गिरावट आयी.

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पिछले दिनों गृहमंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह ने एक बड़ी रैली की. स्मृति ईरानी ने भी मां दुर्गा का नाम लेकर हुंकार भरा. भाजपा ने अपने कई केंद्रीय नेताओं को राज्य में पहले ही तैनात कर दिया है. वहीं दूसरी ओर विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कमर कस ली है और सभाओं को संबोधित कर रहीहैं. उधर, राष्ट्रीय राजनीति में अपनी आभा खो चुकी लेफ्ट पार्टियां के लिए भी यह चुनाव अस्तित्व का सवाल बन गया है. ऐसे में यह देखना दिलचस्पचुनाव मैदान में किसकी सेना कैसे सजती है.

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