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हीट आइलैंड बन गया है कोलकाता, खेती को हो रहा नुकसान

कोलकाता : जहां एक ओर उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों में भारी बारिश की वजह से बाढ़ आ गयी है, तो दूसरी ओर दक्षिण बंगाल के लोग बारिश के लिए तरस रहे हैं. एक तरह से कहा जाये, तो कोलकाता, हावड़ा के इसके आस-पास के जिले ‘हीट आइलैंड’ के रूप में परिणित हो गये हैं. […]

कोलकाता : जहां एक ओर उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों में भारी बारिश की वजह से बाढ़ आ गयी है, तो दूसरी ओर दक्षिण बंगाल के लोग बारिश के लिए तरस रहे हैं. एक तरह से कहा जाये, तो कोलकाता, हावड़ा के इसके आस-पास के जिले ‘हीट आइलैंड’ के रूप में परिणित हो गये हैं. इसकी वजह से यहां मानसून के मौसम में भी बारिश नहीं हो रही. कोलकाता शहर के भूगर्भ में पानी का स्तर नीचे चला गया है. इससे मिट्टी के नीचे का हिस्सा सूख चुका है और सतह गर्म हो चुकी है. अगर इस स्थिति में कोलकाता में कोई भूकंप आता है, तो इसका प्रभाव भयावह होगा. ऐसी ही जानकारी पर्यावरण शोधकर्ता सोमेंद्र मोहन घोष ने दी है.

क्या हैं इसके कारण व प्रभाव : निर्माण कार्यों में मेटल व ग्लास का व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जा रहा है, जिसकी वजह से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. वहीं, कोलकाता व आस-पास के जिलों में पेड़ों की कटाई भी जोरों से हो रही है. इस वजह से यहां हरियाली सिर्फ चार प्रतिशत बची है. यहां बारिश नहीं होने का प्रमुख कारण हरियाली का कम होना है. इसकी वजह से यहां गर्मी क्रमश: बढ़ती जा रही है. मौसम विभाग के पूर्वानुमान के बावजूद यहां बारिश नहीं हो रही. गर्मी के कारण वाष्प ऊपर जाकर ठंडा व घनीभूत नहीं हो पा रहा है. बादल घने नहीं हो पा रहे और टूट जा रहे हैं. श्री घोष ने कहा कि जुलाई महीने लगभग समाप्त होनेवाला है, लेकिन अब तक यहां बारिश नहीं हुई है. दुर्गापूजा के समय तक भी बारिश होगी या नहीं, यह कह पाना मुश्किल है.

बारिश के लिए पर्यावरण को बचाना जरूरी : श्री घोष ने कहा कि बारिश के लिए हमें पहले पर्यावरण को बचाना होगा. यहां अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे. साथ ही डीजल व पेट्रोल की बजाय प्राकृतिक गैसों का प्रयोग बढ़ाना होगा. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो भविष्य में कोलकाता में जल संकट पैदा हो सकता है.

खेती को हो रहा नुकसान : उत्तर बंगाल में अत्यधिक बारिश से धान के बीज नष्ट हो जा रहे हैं, तो वहीं दक्षिण बंगाल में बारिश नहीं होने से बीज सूख रहे हैं. पूरे राज्य में 42 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की पैदावार होती है, लेकिन अब तक मात्र तीन लाख हेक्टेयर जमीन पर ही धान की खेती हो पायी है. 35 लाख हेक्टेयर जमीन पर अब तक धान की खेती भी शुरू नहीं हो पायी है.

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