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कोलकाता : खुद को किंगमेकर की भूमिका में स्थापित कर रहीं ममता

कोलकाता : ममता बनर्जी का कद राष्ट्रीय राजनीति में वर्ष 2014 में भाजपा की जीत के बाद से अब काफी बढ़ गया है. जहां ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां हाशिये पर आ गयीं, वहीं ममता एक कद्दावर नेता के रूप में उभरीं, जिन्होंने भाजपा की नीतियों का विरोध किया. उन्होंने नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की […]

कोलकाता : ममता बनर्जी का कद राष्ट्रीय राजनीति में वर्ष 2014 में भाजपा की जीत के बाद से अब काफी बढ़ गया है. जहां ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां हाशिये पर आ गयीं, वहीं ममता एक कद्दावर नेता के रूप में उभरीं, जिन्होंने भाजपा की नीतियों का विरोध किया.
उन्होंने नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुलकर आलोचना की थी, जिसके बाद ममता बनर्जी विपक्ष के गठबंधन की अग्रणी नेता बन गयीं.
अब 19 जनवरी की ब्रिगेड रैली में सुश्री बनर्जी जिस तरह से भाजपा विरोधी पार्टियों को लोकसभा चुनाव के पहले एक मंच पर ला रही हैं, उससे उनकी छवि एक सर्वमान्य नेता के रूप में उभर रही है.
राजनीतिक जानकारों का भी मानना है कि 2019 में अगर भाजपा और कांग्रेस बहुमत लाने से चूक गये, तो ममता किंगमेकर की भूमिका निभा सकती हैं. कलकत्ता रिसर्च ग्रुप के प्रोफेसर रणबीर समाद्दार का मानना है कि 2019 लोकसभा चुनाव क्षेत्रीय पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
इस बार 2014 जैसे एकतरफा परिणाम की बेहद कम गुंजाइश है. वह कहते हैं कि ममता को उम्मीद है कि वह निश्चित तौर पर आनेवाले चुनाव में ट्रंपकार्ड साबित होंगी. लेकिन यह संभावना काफी हद तक कांग्रेस के प्रदर्शन पर निर्भर करती है.
वह कहते हैं कि ममता अभी एक राज्य में ही मजबूत हैं, लेकिन देखें तो बिहार, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में परिणाम काफी मायने रखते हैं. 2018 पर नजर डालें, तो ममता बनर्जी खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित कर चुकी हैं.
विपक्षी नेताओं से मुलाकात के लिए दिल्ली दौरे से लेकर, कर्नाटक में जदयू (एस) के नेता एचडी कुमारस्वामी को समर्थन देकर, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को यूपी उपचुनाव में अपनी कड़ी प्रतिद्वंद्वी बसपा की मुखिया मायावती के साथ आने की सलाह देकर ममता ने विपक्षी एकता को साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. इतना ही नहीं, जदयू (एस) को कांग्रेस द्वारा समर्थन देने के लिए राजी कराने में ममता बनर्जी ने अहम किरदार निभाया.
इसके बाद किंगमेकर बनने की इच्छा रखनेवाले एन चंद्रबाबू नायडू और के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने उनसे समर्थन पाने की कोशिशें तेज कर दीं. एक तरफ नायडू ने गैर भाजपा विपक्षी दल पर जोर दिया, तो वहीं केसीआर ने ममता से दो बार मुलाकात करके गैर-कांग्रेसी और गैर भाजपा फ्रंट की बात कही. हालांकि इसे बारे में ममता बनर्जी चुप हैं.
उन्होंने केसीआर को उनकी जीत पर बधाई दी थी, जबकि केसीआर ने नायडू के संसद में सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया था. फिलहाल ममता कुछ भी स्पष्ट रूप से कहने में बच रही हैं.
वह कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह का हिस्सा तो बनीं, लेकिन राजस्थान और मध्यप्रदेश में शामिल नहीं हुईं, जहां कांग्रेस को गैर भाजपा छोटे दलों ने समर्थन दिया है.
वह क्षेत्रीय नेताओं से मुलाकात कर रही हैं, लेकिन फिलहाल अभी तक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से उनकी मुलाकात नहीं हुई है. यही नहीं, डीएमके नेता स्टालिन के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में राहुल गांधी के नाम के प्रस्ताव को उनकी पार्टी ने असामायिक करार दिया था. उनका कहना था, ‘अभी नाम तय करने का समय नहीं है.’

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