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चीनी उत्पादों के सामने हार रहा कुम्हार

जे कुंदन, हावड़ा : पिछले छह महीनों‍ में मिट्टी की कीमत 9000 रुपये से बढ़कर 15 हजार रुपये हो गये. काश हमसबों की मेहनत की भी कीमत कुछ इस कदर बढ़ती लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पिछले साल की तुलना में इस साल सिर्फ 50 रुपये ही बढ़े हैं, जबकि महंगाई आसमान छू रही है. एक […]

जे कुंदन, हावड़ा : पिछले छह महीनों‍ में मिट्टी की कीमत 9000 रुपये से बढ़कर 15 हजार रुपये हो गये. काश हमसबों की मेहनत की भी कीमत कुछ इस कदर बढ़ती लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पिछले साल की तुलना में इस साल सिर्फ 50 रुपये ही बढ़े हैं, जबकि महंगाई आसमान छू रही है. एक साल में पेट्रोल आैर डीजल की कीमत बहुत बार बढ़ी होगी.
अखबार के पन्नों में ईंधन की कीमतों में वृद्धि होने की खबर आैर बढ़ती कीमत को लेकर हंगामा मचाने की खबर अक्सर नजर में पड़ती है लेकिन हम कुम्हारों के लिए किसी रहनुमा को हंगामा करते नहीं देखा है. हमारे बनाये हुए दीये से बेशक लोगों की दीपावली में चार चांद लग जाता है, लेकिन दीपवाली में हम कुम्हारों के दीये नहीं, बल्कि दिल जलता है.
उत्तर हावड़ा के फकीर बागान में कुम्हारों की बस्ती अब सिमट कर बहुत छोटी हो गयी है. दीपावली में दीया बनाने का आर्डर तो मिला है, लेकिन कीमत मन मुताबिक नहीं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. प्रत्येक साल की एक ही कहानी है. पिछले साल 1000 दीये की कीमत 650 रुपये था. इस बार हमलोग 700 रुपये में बेच रहे हैं. पिछले चार वर्षों में 50 रुपये ही प्रत्येक साल बढ़ रहा है, जबकि मिट्टी की कीमत प्रत्येक छह महीनों में बढ़ रहा है.
मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए कोयले की भी जरूरत पड़ती है. कोयले की भी कीमत कम नहीं है. संचम प्रजापति ने कहा कि बाप-दादा ने मिट्टी के सामान बनाना शुरू किया था. मेरी चौथी पीढ़ी इस काम में है, लेकिन अब हालत बहुत तंग है. इसके अलावा चाइनीज लाइट की चमक-धमक ने हमारी कमर तोड़ दी है. चाइनीज लाइट नहीं खरीदने को लेकर बड़ी-बड़ी बातें सिर्फ दीपवली के पहले ही सुनी जाती है.
दीपवाली के बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है. चाइनीज लाइटों को लेकर देशवासी भी बहुत उत्साहित रहते हैं. यहीं हमसबों का दुर्भाग्य है. कुम्हारों का कहना है कि शहर में अब मिट्टी का सामान बनाना संभव नहीं हो पा रहा है. फकीर बागान से हमलोगों को हटाने की साजिश रची जा रही है. मिट्टी के बर्तन बनाने के दौरान धुंआ निकलता है, जिससे आस-पास के लोगों को परेशानी होती है. बहुत मुश्किल से परिवार का परवरिश करना संभव हो पा रहा है.
मूर्तियां बनानेवालों के भी मुरझाये हुए हैं चेहरे
कोलकाता : वैसे तो दीपावली को लेकर छोटे-बड़े सभी व्यवसायियों के चेहरे पर मुस्कान नजर आती है, परंतु इस दीपावली विधाननगर कैनल के पास रहनेवाले मूर्तिकारों के चेहरे मुरझाये हुए हैं. चीन से आयातित गणेश लक्ष्मी की मूर्तियों की भारी मांग की वजह से इन लोगों का पुश्तैनी पेशा अब लाभदायक नहीं रहा.
यहां मूर्ति बनाने वाले सुमित पाल के पिता भी इसी पेशे में थे, परंतु अब मूर्ति बनाने के पेशे में कम हो रहे लाभ को देखकर वह इस पेशे को छोड़ने का मन बना चुके हैं. उनको कई तरह की कठिनाइयां आ रही हैं, जिसमें मांग की कमी तो है ही, साथ ही मिट्टी व अन्य सामग्रियों के मूल्य में बढ़त की वजह से भी मूर्तियां महंगी हो रही हैं. पहले लोग देश की मिट्टी की मूर्तियों की ही पूजा करना सही मानते थे, लेकिन अब मिट्टी की बजाय चीन से आयातित मूर्तियां लोग खरीदने लगे हैं.
वहीं इन मूर्तिकारों के पास आधुनिक तकनीक नहीं होना भी उनकी लागत में वृद्धि का एक कारण है. इसके अलावा इन लोगों को स्थानीय स्तर पर भी बाजार नहीं मिल पा रहा है. वैसे जहां कीमती मूर्तियों के खरीददार हैं, वहां इनको प्रवेश नहीं मिल सकता. कुछ संस्थाएं भले ही हस्तशिल्प के नाम पर इन लोगों की सहायता में जुटी है, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे की भांति ही है. यही कारण है कि दीपावली भले ही लोगों के लिए खुशियां लेकर आया हो, पर इनके चेहरे से आज भी मुस्कान गायब है.

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