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Friday, March 29, 2024

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बंगाल की बड़ी उपलब्धि, लघु बचत के मामले में देश में अव्वल, वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट

कोरोना काल में लोगों की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा है, वहीं बंगाल ने न्यूनतम बचत पर जोर दिया

कोलकाता : कोरोना काल में भी पश्चिम बंगाल राज्य सूक्ष्म व लघु बचत के मामले में अव्वल स्थान पर है. इसकी जानकारी केंद्रीय वित्त मंत्रालय अंतर्गत एक नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट से जारी रिपोर्ट में दी गयी है. बताया गया है कि कोरोना काल में जहां छोटे से बड़े हर स्तर के लोगों की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा है, वहीं इस दौर में भी बंगाल के लोगों ने न्यूनतम बचत पर विशेष जोर दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष के दौरान बंगाल में न्यूनतम बचत योजना के तहत डाकघर में जमा राशि एक लाख तीन हजार करोड़ रुपये से भी अधिक है. वहीं, मामले में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है. इसी वित्त वर्ष में सूक्ष्म बचत योजना के तहत वहां कुल 93 हजार 980 करोड़ रुपये जमा किये गये हैं.

देश में सूक्ष्म बचत के मामले में राज्य के अव्वल आने के पीछे राज्य की सजग जनता व आर्थिक संस्थाएं हैं. वेस्ट बंगाल स्मॉल सेविंग्स एसोसिएशन के राज्य सचिव निर्मल दास ने कहा कि यहां के लोग बचत के प्रति जागरूक हैं और महामारी के बीच भी लोग बचत पर ध्यान दे रहे हैं.

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वित्त मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करेंगे, तो पायेंगे कि वर्ष 2014-15 और उससे पहले ही बंगाल ने महाराष्ट्र और गुजरात सरीखे विकसित राज्यों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे प्रदेशों को भी स्मॉल सेविंग्स के मामले में पीछे छोड़ दिया था.

वर्ष 2014-15 में बंगाल के लोगों ने 32,713 करोड़ रुपये पोस्ट ऑफिस में जमा कराये थे. वर्ष 2015-16 में यह रकम बढ़कर 52,856 करोड़ हो गयी. वर्ष 2016-17 में बंगाल के लोगों ने 71,670 करोड़ रुपये पोस्ट ऑफिस में जमा कराये.

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वर्ष 2017-18 में प्रदेश के आम लोगों ने पोस्ट ऑफिस की लघु बचत योजनाओं में 89,992 करोड़ रुपये जमा कराये, जबकि वर्ष 2018 के अप्रैल से नवंबर के बीच यह राशि 58,271 करोड़ रुपये रही.

डाकघर के एजेंटों को असंगठित श्रमिक का दर्जा देने की मांग

वेस्ट बंगाल स्मॉल सेविंग्स एसोसिएशन के श्री दास ने डाकघर के एजेंटों को असंगठित क्षेत्र के श्रमिक का दर्जा देने की मांग की. कहा कि कई बार अपील के बाद भी राज्य सरकार डाकघरों के एजेंटों को असंगठित श्रमिक का दर्जा देने को तैयार नहीं हुई. इन एजेंटों को सरकारी परिचय-पत्र भी नहीं दिया जाता है, जिससे हमें विभिन्न सरकारी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है.

Posted By: Mithilesh Jha

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