लखनऊ. मलियाना नरसंहार मामले में 41 अभियुक्तों को "सबूतों के अभाव में" बरी करने के एक महीने बाद मलियाना पीड़िता ने 41 आरोपियों को बरी किए जाने को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली इस नई याचिका को स्वीकार कर लिया है. इससे इससे जीवत बचे पीड़ितों में फिर से आशा की एक किरण देखी गयी है. 23 मई 1987 में एक भीड़ द्वारा 68 मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी, जिसमें कथित तौर पर उत्तर प्रदेश प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) के कर्मी शामिल थे .
नरसंहार के शिकार रईस अहमद की ओर से याचिका दायर
नरसंहार के शिकार रईस अहमद की ओर से याचिका दायर की गई है. वकील रियासत अली खान ने कहा कि मामला ( आपराधिक अपील यू / एस 372" संख्या 136/1987) को न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और मनीष कुमार निगम की अध्यक्षता वाली अदालत संख्या 48 में सूचीबद्ध किया गया था. कोर्ट ने इस संबंध में निचली अदालत का रिकॉर्ड तलब किया है.हमें उम्मीद है कि जल्द ही याचिका पर सुनवाई शुरू होगी. खान ने कहा, "उच्च न्यायालय में मामला वकील सैयद शाहनवाज शाह लड़ेंगे.
हाशिमपुरा में भी निचली अदालत से बरी हुए थे आरोपी
मेरठ से लगभग 10 किमी पश्चिम में स्थित गांव मलियाना में हत्याएं शहर के हाशिमपुरा में हुए नरसंहार के एक दिन बाद हुई थीं, जिसमें पीएसी कर्मियों ने हिरासत में कम से कम 38 मुसलमानों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. अक्टूबर 2018 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने पीएसी के 16 पूर्व कर्मियों को "लक्षित हत्या" के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. मलियाना अभियुक्तों के मामले की तरह, एक निचली अदालत ने 2015 में हाशिमपुरा के दोषियों को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि उनका दोष संदेह से परे स्थापित नहीं हुआ है. लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2018 में 16 पीएसी कर्मियों को सजा सुनाई थी.
बाबरी मस्जिद के ताले को फिर से खोलने पर हुए थे दंगे
रियासत अली खान ने कहा, "हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और उम्मीद है कि पीड़ितों के परिवारों और बचे लोगों को हाशिमपुरा में उनके भाइयों की तरह न्याय मिल सकता है." हाशिमपुरा और मलियाना में नरसंहार ऐसे समय में हुआ जब मेरठ जिले में फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद के ताले को फिर से खोलने से शुरू हुए सांप्रदायिक तनाव चरम पर थे.