लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व मंत्री आजम खां के 'हेट स्पीच' मामले में एमपी/एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश अमित वीर सिंह ने शिकायतकर्ता अनिल कुमार चौहान का बयान दर्ज कराकर निचली अदालत द्वारा सपा के वरिष्ठ नेता को पूर्व में दी गई तीन साल की सजा को पलट दिया. सरकारी कर्मचारी की गवाह इस मामले में आजम खां के बरी होने का का आधार बनी. एमपी/एमएलए कोर्ट ने बुधवार को दिए फैसले में अनिल कुमार चौहान के बयान की ओर इशारा भी किया. कोर्ट ने माना कि आजम ने "कोई सांप्रदायिक टिप्पणी नहीं थी और हिंसा भड़काने के लिए कोई बयान नहीं दिया गया था. 27 अक्टूबर, 2022 को निचली अदालत के फैसले में कई त्रुटियां थीं . निचली अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई थी. इसके बाद आजम खां की विधान सभा की सदस्यता खत्म हो गयी थी.
जिला मजिस्ट्रेट के साथ आजम के थे " खट्टे" रिश्ते
कृषि विकास अधिकारी (एडीओ) अनिल कुमार चौहान ने कोर्ट को बताया कि " मैंने जिला निर्वाचन अधिकारी (इस मामले में डीएम) के दबाव में शिकायत दर्ज कराई थी." अदालत ने पाया कि आजम और उनके परिवार के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट आंजनेय कुमार सिंह के साथ " खट्टे" रिश्ते थे. अदालत के आदेश में तत्कालीन डीएम पर टिप्पणियां करते हुए कहा कि वह एक आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकते थे या एक दीवानी मुकदमा दायर कर सकते थे, लेकिन " इसके बजाय उन्होंने चौहान पर शिकायत दर्ज करने के लिए दबाव डाला". अदालत ने पाया कि आजम खां पर लगे आरोप में आईपीसी की धारा 153-ए (दुश्मनी को बढ़ावा देना), 505-1 (सार्वजनिक शरारत) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत आने वाले अपराध के मूल तत्व "कहीं नहीं पाए गए.
साक्ष्य में बुनियादी निमयों का पालन नहीं हुआ
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का संदर्भ लिया और कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी (बयान वाले इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की पहचान करना और इसे पेश करने के तरीके का वर्णन करना) के बुनियादी अनुपालन का पालन नहीं किया गया था. न्यायाधीश अमित वीर सिंह ने अपने फैसले में "अभद्र भाषा" के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ के फैसले को आधार बनाया. इसमें कहा गया था कि केवल "असंसदीय" भाषा का उपयोग अभद्र भाषा की श्रेणी में नहीं आता है. अमीश देवगन बनाम भारत संघ में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असंसदीय शब्दों की जांच "उचित, मजबूत दिमाग वाले, दृढ़ और साहसी पुरुषों द्वारा की जानी चाहिए, न कि जो कमजोर हैं और अस्थिर दिमाग वाले हैं, और न ही जो खतरे को भांपते हैं.