लखनऊ. उत्तरप्रदेश विधानसभा के पहले चरण के चुनाव के लिए शाम प्रचार थम गया. पहले चरण में 11 फरवरी को 15 जिलों की 73 सीटों के लिए वोटिंग हाेगी. ये जिले हैं बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, हाथरस, गौतमबुद्ध नगर, मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, मथुरा, अलीगढ़, फिरोजाबाद, एटा, कासगंज और आगरा. इस चरण में मुजफ्फरनगर, कैराना, बुढ़ाना, चरथावल, नोएडा, दादरी सहित कई महत्वपूर्ण सीटों पर चुनाव होंगे, जहां से बड़े नेता चुनाव मैदान में हैं.
इन नेताओं के भाग्य का होगा फैसला
पहले चरण में जिन बड़े नेताओं के भाग्य के फैसले होने हैं, उनमें राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह भी शामिल हैं. इनके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री श्रीकांत शर्मा, पूर्व भाजपा उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी और संगीत सोम कह किस्मत का फैसला भी इसी चरण में होना है. मुजफ्फरनगर की सीट पर सपा की प्रतिष्ठा दांव पर होगी. पिछले चुनाव में यहां सपा को जीत मिली थी. इस बार उसने यहां अपने विधायक को ही टिकट दिया है. देखना होगा कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उभरे राजनीतिक समीकरण में सपा इस जीट को इस बार बचा पाती है या नहीं.
बसपा की प्रतिष्ठा दांव पर
पश्चिमी उत्तरप्रदेश का यह इलाका बसपा का गढ़ माना जाता है. पिछले चुनावों में इन इलाकों में बसपा को भारी सफलता मिली है. यहां बसपा की पकड़ इतनी मजबूत है कि जब 2012 के विधानसभा चुनाव में राज्य में परिवर्तन की लहर थी और सपा के पक्ष में हवा बह रही थी, तब भी इस क्षेत्र में बसपा का झंडा बुलंद रहा था, लेकिन इस बार समीकरण बदला हुअा है. वैसे कैराना, थानाभवन, बुढाना, मुजफ्फरनगर, किठौर और गढमुक्तेश्वर ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां बसपा का अब तक खाता नहीं खुला है. इस बार बसपा यहां कोई करामात कर पाती है या नहीं, यह देखना भी दिलचस्प होगा. आगरा बसपा का गढ़ माना जाता है, जहां विधानसभा की नौ सीटे हैं. 2007 के चुनाव में बसपा को इनमें से सात विधानसभा सीटें मिली थीं, लेकिन 2012 के चुनाव में इनमें से छह सीटों पर ही वह वासपी कर पायी थी. बाकी तीन में से दो सीटें भाजपा और एक सरट सपा ले गयी थी.
मुस्लिम-जाट बहुत क्षेत्र
पहले चरण के वोट वाले अलाके मुस्लिम और जाट बहुत हैं. इन इलाकाें में करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. मुजफ्फरनगर दंगे का असर इन वोटरों पर साफ दिख रहा है. बसपा काे पिछले चुनाव में मुसलमनों को भारी समर्थन मिला था. हालांकि इस बार कांग्रेस-सपा गंठबंधन वोट समीकरण में बड़ा बदलाव ला सकता है. वहीं भाजपा को इसी मुद्दे पर अपने वोटरों की गोलबंद का बड़ा भरोसा है. इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि सपा अपने इस गढ़ को कितना सुरक्षित रख पाती है. खास कर मुजफ्फरनगर जिले की सीटों पर.
सपा-कांग्रेस गंठबंधन कितना प्रभावी
राज्य में सपा-कांग्रेस गंठबंधन कितना प्रभावी है, इसका मोटा-मोटी संकेत पहले चरण के चुनाव में ही मिल जाने की उम्मीद है. इस चरण में चुनाव वाली कई ऐसी सीटें हैं, जहां सपा का प्रदर्शन पिछले चुनाव में निराशाजनक रहा था, लेकिन कांग्रेस ने अच्छी कामयाबी पायी थी. इनमें दादरी विधानसभा सीट भी है, जहां समाजवादी पार्टी को कभी जीत नहीं मिली, जबकि कांग्रेस ने चार बार तथा भाजपा और बसपा ने दो-दो बार जीत दर्ज की. इसी तरह हापुड़ विधानसभा सीट पर 2012 सहित आठ बार कांग्रेस के उम्मीदवार जीते. जेवर विधानसभा सीट पर भी सपा का कभी खाता नहीं खुला. कांग्रेस यहां से तीन बार चुनाव जीती है. भाजपा ने भी यहां 1991, 1993 और 1996 में यहां जीत दर्ज की थी. वैसे यह बसपा की मजबूत सीट मानी जाती है. पिछले तीन चुनाव में इस सीट पर बसपा लगातार तीन बार जीती और हर बार कांग्रेस ने उसे कड़ी टक्कर दी. इस बार सपा का साथ मिलने से उसकी स्थिति मजूबत होती दिख रही है.
भाजपा को बड़ी उम्मीद
भाजपा को मुस्लिम विरोधी मतों के ध्रवीकरण और उससे चुनावी लाभ की उम्मीद है. हालांकि इस फेज में जिन सीटों पर चुनाव हो रहा है, उनमें से कई सीटों पर उसकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. कुछ सीटों पर उसने तीन से भी ज्यादा बार चुनाव जीतती रही है. इनमें जेवर सीट भी शामिल है. भाजपा को नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक तथा नरेंद्र मोदी के आर्थिक सुधार जैसे कार्यक्रमों का भी लाभ मिलने की उम्मीद है.
बहरहाल, आज शाम से तमाम उम्मीदवार डोर-टू-डोर संपर्क और बूथ मैनेजमेंट में जुट गये हैं. सभी दलों के वैस प्रचारकों और कार्यकर्ताओं ने चुनाव आयोग के निर्देश पर जिला छोड़ दिया है, जो बाहर से आये थे.