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भाईचारे की मिसाल: मंदिर में रोजेदारों के लिए इफ्तार पार्टी, मंदिर में पढ़ी गयी नमाज

लखनऊ : अयोध्या का नाम लेते ही जेहन में जो सबसे पहला नाम आता है, वह है- राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद. इस विवाद के कारण हिंदू-मुस्लिम एकता पर काफी सवाल उठाये गये. लेकिन, सवाल उठाने वालों ने कभी वहां की जमीनी स्थिति का जायजा नहीं लिया. आज भी वहां के लोगों में न सिर्फ […]

लखनऊ : अयोध्या का नाम लेते ही जेहन में जो सबसे पहला नाम आता है, वह है- राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद. इस विवाद के कारण हिंदू-मुस्लिम एकता पर काफी सवाल उठाये गये. लेकिन, सवाल उठाने वालों ने कभी वहां की जमीनी स्थिति का जायजा नहीं लिया. आज भी वहां के लोगों में न सिर्फ एक-दूसरे के प्रति बल्कि एक-दूसरे के धर्म के लिए भी सम्मान बरकरार है.

एक बार फिर इसका नजारा देखने को मिला अयोध्या के 500 साल पुराने सरयू कुंज मंदिर में. राम मंदिर परिसर में स्थित इस मंदिर में सोमवार को इफ्तार का आयोजन किया गया. सरयू कुंज के महंत जुगल किशोर शरण शास्त्री ने इस इफ्तार का आयोजन किया था. कार्यक्रम के बारे में मंदिर के एक पंडित ने कहा कि दोनों समुदायों के बीच की दूरियों को कम करने के प्रयास होने चाहिए. मुस्लिमों के लिए इफ्तार का आयोजन दोनों समुदायों को नजदीक लाने का अच्छा मौका है.

किसी राजनीतिक हस्ती को नहीं किया गया शामिल: इफ्तार के आयोजन में केवल आम लोगों को बुलाया गया. कोई राजनीतिक हस्ती या वीआइपी को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया. सरयू कुंज के महंत जुगल किशोर शरण शास्त्री ने बताया कि हम यह संदेश देना चाहते हैं कि इस कदम के पीछे कोई राजनीतिक मंशा नहीं है. हम अयोध्या से दुनिया को शांति का संदेश देना चाहते हैं. कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में दोनों संप्रदाय के लोग मौजूद थे.

मंदिर में पढ़ी गयी नमाज

मंदिर में इफ्तार के दौरान साधु अयोध्या के प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी से आये लड्डू और खजूर बांट रहे थे. इफ्तार के बाद मगरिब की नमाज भी मंदिर परिसर में ही पढ़ी गयी. इससे पहले सांप्रदायिकता के खिलाफ एक सेमिनार का आयोजन भी मंदिर परिसर में किया गया.

हनुमानगढ़ी में दो बार हुई है कोशिश
अयोध्या के मशहूर हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत ज्ञान दास ने इससे पहले दो बार मंदिर परिसर में इफ्तार का आयोजन करने की कोशिश की थी. लेकिन, प्रतिरोध के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा था.

अयोध्या में अल्पसंख्यक होकर भी हमें कभी डर नहीं लगा. हिंदू भाइयों को धन्यवाद, जिन्होंने कभी किसी खतरे से परेशान नहीं होने दिया.
मुजम्मिल, उर्दू के शायर

दोनों समुदाय के बीच दरार पाटने और शांति का संदेश देने के लिए रोजा इफ्तार का आयोजन किया है.
रघुशरण दास, महंत

Prabhat Khabar Digital Desk
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