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मुबारकपुर: बुनकर बेहाल, चुनाव में बात जाति-बिरादरी की

।।मुबारकपुर से अंजनी कुमार सिंह।। आजमगढ़ जिला सपा का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में मतदाताओं के मूड अलग-अलग हैं. कोई सपा सरकार को तिराहे पर खड़ा बता रहा है, तो कोई चौराहे पर. सपा के इस गढ़ को बचाने की चुनौती सबसे ज्यादा अखिलेश यादव के सामने है. चुनाव […]

।।मुबारकपुर से अंजनी कुमार सिंह।।

आजमगढ़ जिला सपा का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में मतदाताओं के मूड अलग-अलग हैं. कोई सपा सरकार को तिराहे पर खड़ा बता रहा है, तो कोई चौराहे पर. सपा के इस गढ़ को बचाने की चुनौती सबसे ज्यादा अखिलेश यादव के सामने है. चुनाव नजदीक आने के साथ इन क्षेत्रों में विकास के मुद्दे गौण हो रहे हैं और जाति-बिरादरी हावी होता जा रहा है. वोटों के ध्रुवीकरण की किस्सा-कहानी चौकों पर सुनी जा सकती है. जानकार बताते हैं कि इस जिले को समझना मुश्किल है. मतदान से एक दिन पहले सब कुछ संभव हो जाता है. हालांकि यहां के बुद्धिजीवियों की राय अलग है.

एशिया के प्रसिद्ध शिबली कॉलेज के प्राध्यापक डॉ जावेद अहमद बताते हैं कि जो भी लोग ऐसा सोच रहे हैं, वह भ्रम में हैं. मुसलमान टैक्टिकली वोट करेगा. उन्हें भी अपना हित पता है. यह सही है कि वह एक पार्टी को वोट न दें, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उनके वोटों के बंटवारे के कारण उन्हें(भाजपा) फायदा मिल जाये, क्योंकि अब समय निकल चुका है. यह सही है कि मुसलिमों का वोट भी बंटेगा, लेकिन यह भी सच है कि मुसलिमों का बहुसंख्यक वोट एक को ही मिलेगा.

सरकारी उपेक्षा का शिकार

जिले से 13 किलोमीटर की दूरी पर मुबारकपुर है. यह वही क्षेत्र है, जो कभी अपनी संपन्नता के लिए मिनी सऊदी के नाम से जाना जाता था. लेकिन, आज अपनी विपन्नता पर आंसू बहा रहा है. मुबारकपुर का यह हाल सरकारी उपेक्षा और कमीशन एजेंटों के कारण हुआ है. एजेंट काम कराते हैं, लेकिन पैसा समय से नहीं देते हैं. पैसा के लिए ज्यादा दबाव देने पर उस बचे समान को दो महीने बाद लौटा देते हैं. जिस सिल्क साड़ी को बनाने में 3000 से 5000 रुपये लगते हैं, उसे बाजार में 15 से 20 हजार रुपये में बेचा जाता है, लेकिन एक साड़ी जो तीन से पांच दिन में दो से तीन लोगों की मेहनत से तैयार होती है, उसका मेहनताना मात्र 1500 रुपये मिलता है. अबु सोफियान कहते हैं कि. चुनाव के समय ही नेताओं के दर्शन होते हैं. शायर घायल मुबारकपुरी कहते हैं, हमारी आमदनी का मुख्य जरिया पॉवरलूम और हैंडलूम ही है, लेकिन सरकार ने मुंह मोड़ लिया है.

मख्य पेशा बुनकरी

इस इलाके में मुसलिम आबादी करीब 85 फीसदी है. मुसलिमों में अंसारी और बोहरा कम्युनिटी के लोग मुख्य रूप से बुनकरी पेशा में ज्यादा हैं. उनकी प्रति परिवार आमदनी लगभग 4000 रुपये प्रतिमाह है. अधिकतर बुनकर कर्ज में डूबे हैं. कई बुनकरों का घर विभिन्न धार्मिक संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराये जानेवाले फूड सब्सिडी से चलता है. कोई कॉलेज नहीं है. बेहतर हॉस्पीटल भी नहीं है. पूछने पर हाजी समसुद्दीन बताते हैं, नेताओं को हमलोगों की फिक्र नहीं है. चुनाव के समय वोट मांगने आते हैं. फिर पता नहीं कहां चले जाते हैं. 1940 के आसपास यहां पर सिल्क की साड़ी खूब बनती थी, लेकिन हैंडलूम के आने के बाद बुनकरों की दिक्कत काफी बढ़ गयी. अब मऊ जिला में पॉवरलूम के आने से काम-काज बिल्कुल ठप सा पड़ गया. आजमगढ़ पॉवरलूम के उपयोग में पहला स्थान रखता है. हैंडलूम के उपयोग में वाराणसी के बाद दूसरा स्थान है. मुबारकपुर अब एक सस्ता एवं लो ग्रेड की सिंथेटिक जरी साड़ी बनवाने का आउटसोर्सिंग डेस्टीनेशन बन गया है. लगभग 6000 घर हैंडलूम में इंवॉल्व है, जिससे रोजाना लगभग 4000 साड़ियां तैयार होती हैं.

बसपा का पलड़ा भारी

दूसरों के शरीर पर चमकती सिल्क साड़ियां देख कर मुबारकपुरी खुश होते हैं, लेकिन उन्हें दुख है कि उनकी मेहनत के बाद भी उन्हें तन ढंकने के लिए कपड़े कम पड़ रहे हैं. मुबारकपुर थाना के पास एक विपणन केंद्र खोला गया है, लेकिन यहां के सभी दुकानदार मऊ या बनारस के हैं. क्षेत्र की जनता सरकार से नाराज है, वहीं अपनी बिरादरी के होने के कारण मुसलिमों का रुझान बसपा उम्मीदवार गुडु जमाली की ओर है. सपा से अखिलेश यादव, जबकि भाजपा के लक्ष्मण मोर्य लड़ाई को त्रिकोणात्मक बनाने में जुटे हैं. भाजपा को भरोसा मुसलिम मतों में बंटवारे पर है, जिसका फायदा मिलेगा. वहीं सपा का मानना है कि अखिलेश यादव के नाम पर मुसलिम सपा को ही वोट देंगे. इस्लामपुर में अबु सोफियान ओर केशव मौर्या भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि जमाली का पलड़ा भारी है. क्या ऐसा उनके मुसलिम होने की वजह से है? इस पर कासिम कहते हैं कि पिछले पांच वर्षों से जमाली सभी जाति के लोगों के सुख-दुख में शामिल होते हैं. सठियांव के अशोक यादव बताते हैं कि सपा सरकार ने विकास के कई काम किये.

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